रोकना होगा जीवाश्म उर्जा का इस्तेमाल
कोयला और गैस जैसे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत लोगों के लिए खुशहाली लेकर आए लेकिन अब वे ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह बन रहे हैं. विश्व पर्यावरण परिषद का कहना है कि धरती को बचाने के लिए कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन खत्म करना होगा.
पर्यावरण का दुश्मन
कार्बन डाय ऑक्साइड अव्वल दर्जे की ग्रीनहाउस गैस है. कोयला, तेल और गैस को जलाने से 65 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस पैदा होती है. जंगल काटने से 11 प्रतिशत कार्बन गैस बनती है. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली मीथेन (16 प्रतिशत) और नाइट्रस ऑक्साइड (6 प्रतिशत) औद्योगिक कृषि से पैदा होती है.
सोच में बदलाव जरूरी
यदि सब कुछ पहले जैसा रहता है तो विश्व पर्यावरण परिषद आईपीसीसी के अनुसार 2100 तक धरती का तापमान 3.7 से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा. लेकिन तापमान को 2 डिग्री पर रोकना अभी भी मुमकिन है. इसके लिए जीवाश्मों का इस्तेमाल अधिकतम 2050 तक बंद करना होगा.
सौर ऊर्जा का कमाल
इस बीच सौर ऊर्जा सस्ती होती जा रही है. पिछले पांच साल में सूरज से बीजली पाने का संयंत्र 80 प्रतिशत सस्ता हो गया है. जर्मनी में इस बीच सौर बिजली 7 सेंट प्रति किलोवाट के दर से पैदा की जा सकती है जब गर्म देशों में 1 किलोवाट बिजली बनाने पर पांच सेंट का ही खर्च आता है. कीमतें और गिर रही हैं.
बड़े और कुशल
पवन बिजली भी बहुत किफायती है और विश्व भर में उसका प्रसार हो रहा है. जर्मनी में पवन चक्कियों से देश की कुल 9 प्रतिशत बिजली पैदा की जाती है जबकि डेनमार्क में इसका अनुपात 40 प्रतिशत और चीन में तीन प्रतिशत है. चीन 2020 तक पवन बिजली का हिस्सा दोगुना करना चाहता है.
अक्षय ऊर्जा वाले घर
अगर घरों को अच्छी तरह इंसुलेट किया गया हो तो उन्हें गर्म रखने पर बहुत कम ऊर्जा खर्च होती है. फिर छत पर सोलर पैनल बिजली और घर को गर्म रखने के लिए काफी होता है. कुछ घर तो इस तरह के सोलर पैनल से अतिरिक्त बिजली भी पैदा करते हैं. उसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कार के लिए किया जा सकता है.
कुशलता से बचत
पर्यावरण की सुरक्षा में ऊर्जा के कुशल उपयोग का भी महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है. अच्छे एलईडी लैंप सामान्य बल्ब की तुलना में कम बिजली खाते हैं. इससे कार्बन डाय ऑक्साइड की भी बचत होती है और धन की भी. यूरोपीय संघ में सामान्य बल्ब पर रोक से एलईडी को फायदा हुआ है.
पर्यावरण सम्मत परिवहन
अब तक परिवहन के लिए खनिज तेल जरूरी है. लेकिन स्थिति बदल रही है. कोलोन के निकट यह बस हाइड्रोजन गैस से चलती है जिसे पाने के लिए पवन और सौर बिजली की मदद ली जा सकती है. पावर टू गैस तकनीक की मदद से सिंथेटिक डीजल और केरोसीन भी बनाया जा सकता है.
पहली हाइड्रो गाड़ियां
टोयोटा की यह गाड़ी हाइड्रोजन गैस से चलती है और टैंक फुल करने पर 650 किलोमीटर का सफर कर सकती है. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विशेषज्ञ निजी कारों के बदले अधिक बस और रेलगाड़ियों के इस्तेमाल की वकालत कर रहे हैं. इसके अलावा वे वैकल्पिक ऊर्जा वाली गाड़ियों की भी मांग कर रहे हैं.
वैकल्पिक ईंधन
ब्रिटेन के ब्रिस्टल शहर में बनी यह बस बायोमिथेन गैस से चलती है. यह गैस इंसानी मल और कचरे से बनती है. पांच लोग साल भर में जितना मल और कचरा पैदा करते हैं, उससे प्राप्त मिथेन गैस से एक बस 300 किलोमीटर का सफर कर सकती है.
अक्षय ऊर्जा और बैटरी
अभी तक बिजली को जमा करना मुश्किल है. लेकिन इस इलाके में भी तेजी से प्रगति हो रही है, कीमतें गिर रही हैं और बाजार फैल रहा है. इसकी वजह से इलेक्ट्रिक कारें सस्ती हो रही हैं और ज्यादा से ज्यादा लोगों के परिवहन का वैकल्पिक साधन बनती जा रही हैं.
स्वच्छ तकनीक
अभी भी दो अरब लोग बिना बिजली के जीते हैं.जैसे जैसे सौर ऊर्जा, बैटरी और एलईडी लैंप सस्ते होते जा रहे हैं, इस तकनीक का गांवों में भी प्रसार हो रहा है, जैसे यहां सेनेगल में. सोलर कियॉस्क पर एलईडी लैंपों को रिचार्ज किया जाता है. इस तरह लाखों लोगों को पहली बार बिजली मिल रही है.
पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन
पर्यावरण सुरक्षा के लिए समर्थन बढ़ रहा है और पर्यावरण आंदोलन मजबूत हो रहा है. जर्मनी की प्रमुख बिजली कंपनी ईयॉन अब अक्षय ऊर्जा से बिजली बनाने पर ध्यान दे रही है. दुनिया भर में निवेशक जीवाश्म ऊर्जा कंपनियों से अपना पैसा वापस खींच रहे हैं.