लंबा खिंचेगा माली विवाद
१६ जनवरी २०१३माली में फ्रांस के सैनिक हस्तक्षेप का लक्ष्य अल कायदा से जुड़े इस्लामी कट्टरपंथियों को राजधानी पर कब्जा करने से रोकना था. लेकिन इसके पांच दिन बाद उसने वादा किया है कि सैनिक तब तक माली में रहेंगे जब तक उसका पुराना उपनिवेश फिर से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता. इसमें कितना वक्त लगेगा कहना मुश्किल है, लेकिन अफ्रीका के ताजा युद्ध में फ्रांस को लंबा रहना पड़ सकता है. वहां से वापसी सहयोगी देशों पर भी निर्भर करेगी जिन्हें अभी साबित करना है कि वे लड़ने के लिए तैयार हैं.
फ्रांसीसी रक्षा मंत्री जां-इव्स ले ड्रियान ने कहा, "हमें यह मान लेना चाहिए कि हम माली और अफ्रीकी टुकड़ियों के साथ एक अहम मिशन शुरू कर रहे हैं." नतीजा फ्रांस के लिए अफ्रीका में लंबी सैनिक कार्रवाई हो सकता है. यह एक देश को संकट से उबारने का मौका भी है जो 2011 में लीबिया युद्ध के बाद आए हथियारों की वजह से अस्थिर हो गया है. पूर्व राष्ट्रपति निकोला सारकोजी के नेतृत्व में फ्रांस ने इस युद्ध को बढ़ावा दिया था. अगर पासा गलत पड़ता है तो फ्रांस पर अफ्रीका में नव उपनिवेशवाद का आरोप लगेगा, जिसकी उसे अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए पार्टनर के रूप में जरूरत है.
पिछले हफ्ते हवाई हमाला शुरू करते समय फ्रांस ने कहा था कि वह जिम्मेदारी जल्द से जल्द माली के पड़ोसियों को सौंपना चाहता है. लेकिन मंगलवार को राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने साफ किया कि सैनिक तब तक माली में रहेंगे जब तक विद्रोहियों को दबा नहीं दिया जाता और माली में स्थिरता नहीं आ जाती. फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय ने इस पर जोर दिया कि फ्रांस की प्राथमिकता इस्लामी विद्रोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का औपचारिक नेतृत्व जल्द से जल्द अफ्रीकी नेतृत्व वाली टुकड़ियों को सौंप देना है.
फ्रांसीसी अधिकारी माली में कार्रवाई के तीन चरण देख रहे हैं. पहले चरण का लक्ष्य हवाई हमलों के जरिए इस्लामी कट्टरपंथियों को भारी नुकसान पहुंचाना है. दूसरे चरण का लक्ष्य जमीनी लड़ाई में उत्तरी माली के प्रमुख शहरों के कब्जा होने तक अफ्रीका टुकड़ियों की मदद करना है. तीसरा चरण 6,000 विदेशियों की सुरक्षा और अव्यवस्थता की वापसी को रोकने के लिए स्थिरता मिशन है. लेकिन पिछले साल राष्ट्रपति चुने गए ओलांद को हर मोड़ पर अनजान स्थितियों से निबटना होगा, जो पूरी समय सारिणी को उलट पुलट सकता है.
फ्रांस ने शुरुआती दौर में रफाएल और मिराज विमानों से हमला किया है और ऑपरेटिंग अड्डों तथा हथियार के भंडारों को नष्ट कर विद्रोहियों को दक्षिण की ओर बढ़ने से रोक दिया है. जिन सैनिकों को वहां तैनात किया गया है वे अफगानिस्तान में अनुभव बटोर चुके हैं. सैनिकों की कुल संख्या बढ़ाकर 2,500 करने का इरादा है लेकिन नेतृत्व अफ्रीकी टुकड़ी को सौंप देगा जिसका वादा पश्चिम अफ्रीकी देशों के संगठन इकोवास ने किया है. यूरोपीय संघ ने माली के सैनिकों को प्रशिक्षण देने का आश्वासन दिया है. इकोवास और यूरोपीय संघ तेज फैसलों के लिए नहीं जाने जाते हैं.
फ्रांस का कहना है कि ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक की समस्याओं से निबटना है. अफ्रीकी देशों के पास सैनिकों के परिवहन की सुविधा नहीं है. ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी जैसे नाटो सहयोगी देशों की मदद से कुछ दिनों के अंदर अफ्रीकी सैनिक माली में पहुंचने लगेंगे. कुछ हफ्ते में इकोवास के 3,000 सैनिक इकट्ठा हो जाएंगे. लेकिन ईयू का ट्रेनिंग मिशन शुरू होने में हफ्तों लग सकते हैं. यूरोपीय संघ के एक अधिकारी का कहना है कि मध्य फरवरी तक मिशन शुरू करने का फैसला हो सकता है.
माली में विवाद का जर्मन राजनीतिशास्त्री हंस-गियोर्ग एयरहार्ट कोई जल्द हल नहीं देखते, "आने वाले दिनों में न तो स्वतंत्र चुनाव और न हीं मौजूदा सरकार का स्थायित्व संभव दिखता है. राजनीतिक हल के विवाद में शामिल गुटों को एक मेज पर लाने का लक्ष्य भी संभव नहीं दिखता." एयरहार्ट चेतावनी देते हैं कि यदि माली टूटता है तो यह पूरे साहेल इलाके के लिए जोखिम होगा. खतरे में पड़ी जातियों के संगठन ने कहा है कि विवाद का हल सिर्फ बातचीत से संभव है. संगठन के उलरिष डेलिउस का कहना है कि 1960 में औपनिवेशिक शासन खत्म होने के बाद से ही उत्तरी माली में टुआरेग और दूसरी जातियां स्वायत्तता की मांग कर रही हैं.
इस बीच जर्मन विकास मंत्री डिर्क नीबेल ने कहा है कि माली के शरणार्थियों के लिए जर्मन मदद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. उन्होंने यह नहीं बताया कि शरणार्थियों की मदद के लिए उनके मंत्रालय के पास कितना धन है. उन्होंने कहा कि माली की सरकार के साथ सहयोग फिर से तब शुरू होगा जब वहां संवैधानिक व्यवस्था फिर से बहाल कर दिया जाएगा, लेकिन विवाद से प्रभावित लोगों की सीधी सहायता जारी रहेगी. विकास मंत्री ने कहा, "हम प्रयास कर रहे हैं कि खास कर शरणार्थियों के लिए आपूर्ति की गारंटी कर सकें." उन्होंने कहा कि माली के अंदर और पड़ोसी देशों में काफी लोग विस्थापित हो गए हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल आज बर्लिन में इकोवास के प्रमुख अलासाने उआतारा से मिल रहे हैं. जर्मन विमानों से इकोवास टुकड़ियों को माली पहुंचाया जाएगा.
एमजे/एजेए (रॉयटर्स, डीपीए)