लीबिया के दूसरे अफगानिस्तान बनने की आशंका
८ नवम्बर २०११फव्वाद अली तकबाली ने कई लीबियाई लोगों को जर्मनी में शरण दिलवाने में मदद की है. मुआम्मर अल गद्दाफी के खिलाफ हुई क्रांति के बाद उन्होंने त्रिपोली फ्री एड संगठन की स्थापना की. यह संगठन शरणार्थियों की मदद करता है.
गद्दाफी काल के बाद लीबिया की सबसे बड़ी मुश्किलें क्या हैं?
त्रिपोली की सड़कें ऐसे लोगों से भरी हैं जिनके हाथ में हथियार हैं. एक और बड़ी मुश्किल है देश के अंदर विस्थापित हुए लोग. वे अपने घर नहीं लौट सकते क्योंकि घर नष्ट हो चुके हैं. वे शिविरों में रह रहे हैं. त्रिपोली के शिविर में ही उदाहरण के लिए 120 परिवार हैं लेकिन संख्या और ज्यादा हो सकती है. इन लोगों में से अधिकतर बुरे हालात में रह रहे हैं. हम फिलहाल कोशिश कर रहे हैं कि उनके लिए कंटेनरों की व्यवस्था करें. लीबिया में लोगों को एक दूसरे पर विश्वास नहीं है. कई लोग बदला लेना चाहते हैं और यह शायद फिलहाल देश में सबसे बड़ी अड़चन है. एक ही दृष्टिकोण से हम भविष्य को मुट्ठी में नहीं बांध सकते.
लड़ाई तो वैसे खत्म हो चुकी है तो फिर सड़कों पर लोगों के हाथों में हथियार क्यों हैं?
इसके कई कारण हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है अविश्वास. कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है. मिसराता के लोग चाहे जिंटान हों या बेर्बेर, सब कह रहे हैं कि हम अपने हथियार नहीं देंगे क्योंकि उन्हें दूसरे लोगों से डर है. यह डर गद्दाफी ने अपने चार दशक के शासन के दौरान लोगों में भर दिया है. एक और कारण है कि कई लड़ाकों के पास कोई डिग्री या प्रशिक्षण नहीं है, इसलिए उन्हें भविष्य का भी डर है. उनके पास करने के लिए कुछ नहीं है इसलिए भी वे हथियार लिए सड़कों पर घूम रहे हैं और तब तक रहेंगे जब तक उन्हें कोई काम नहीं मिल जाता. मुझे डर है कि नई सरकार के पास उनसे हथियार खरीद लेने के अलावा कोई और उपाय नहीं होगा.
क्या आपको विश्वास है कि राष्ट्रीय एकता की सरकार इस मुश्किल को संतुलित तरीके से हल करने की कोशिश में है?
बिलकुल नहीं. वे विदेश नीति में व्यस्त हैं और देश की जनता को भूल गए हैं. वे ऐसे वादे कर रहे हैं जिनके पूरा होने पर किसी को विश्वास नहीं है. लोगों में एक दूसरे के लिए और अंतरिम सरकार के लिए भी अविश्वास है. लीबिया के लोग फिलहाल तो अपने पड़ोसियों से ज्यादा यूरोपीय लोगों पर विश्वास कर रहे हैं. यह गद्दाफी की सत्ता की धरोहर है.
अंतरिम सरकार के प्रमुख मुस्तफा अब्दुल जलील ने साफ किया था कि नए लीबिया के निर्माण में सभी का समाधान महत्वपूर्ण है. लेकिन हाल ही में गद्दाफी के समर्थक रहे लोगों पर हिंसा होने की खबरें आई हैं. इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
अंतरिम सरकार खोखले वादे कर रही है. बानी वालिद, अबु सलिम, तावारगा और सिर्त के शरणार्थी, गद्दाफी के समर्थकों वाले इलाके में शरणार्थी बहुत बुरे हाल में हैं उनके साथ दुर्व्यव्हार होता है खासकर काले लोगों के साथ. उत्पीड़न और इलेक्ट्रिक शॉक दिए जाने की भी रिपोर्टें हैं. 26 साल बाहर रहने के बाद मैं यह मान ही नहीं सकता कि नई सरकार भी कई मामलों में गद्दाफी जैसे ही तरीके अपना रही है. अगर जल्द ही एक व्यवस्थित न्याय व्यवस्था नहीं बनी तो लीबिया जल्द ही दूसरे अफगानिस्तान में बदल जाएगा. त्रिपोली को पूरे देश के लिए एक उदाहरण बनना चाहिए था लेकिन यहां स्थिति लगातार खराब होती जा रही है. हमें एक समाज बनाने की जरूरत है जो 40 तक कहीं नहीं था.
तख्ता पलट में विदेशी सहायता के बावजूद लोगों को अब लगता है कि प्राकृतिक संसाधन पर उनका नियंत्रण नहीं रह पाएगा. आपको क्या लगता है?
यह तो गद्दाफी के समय में भी ऐसा ही था, इस पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता. अमेरिका, इटली सहित कई देशों ने हमारे प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाया है. इकलौता फर्क है कि गद्दाफी ने हमें दुनिया से अलग थलग कर रखा था और अब हम दुनिया से संपर्क बनाना कर अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करना चाहते हैं. विदेशी मदद के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते. आज जब मैं नाटो की ओर देखता हूं तो लगता है कि हमने नाटो की मदद की है नाटो ने हमारी नहीं. लीबिया की मदद कर उसने अपनी छवि सुधारी है जो अफगानिस्तान के कारण धूल में मिल गई थी.
इंटरव्यूः कार्लोस जुरुतुजा (आभा मोंढे)
संपादनः ए कुमार