लीबिया में स्कूल खुलने का इंतजार
२३ जून २०११14 वर्षीय रुविद ओमर अपना सारा दिन बेनगाजी की सड़कों पर घूम कर बिताता है. हाथ में विरोधियों का झंडा लिए वह गद्दाफी विरोधी नारे लगता हुआ प्रदर्शनों में शामिल हो जाता है. विदेशी पत्रकार मिलें तो फर्राटेदार अंग्रेजी में उन्हें अपने देश का हाल भी बयान करता है.
खराब हालात के बावजूद उसे अपने देश से बहुत प्यार है. वह कहता है, "मैं आठ साल तक अपने माता पिता के साथ मैनचेस्टर में रहा, लेकिन मुझे बेनगाजी ज्यादा पसंद है. हम सारा दिन या तो यहां चौराहे पर बैठ कर प्रदर्शन करते हैं या फिर घर पर टीवी के सामने बैठ कर आंदोलन की खबरे सुनते हैं."
पाठ्यक्रम बदलने की जरूरत
लीबिया के पूर्व में विरोधियों का दबदबा है. यहां फरवरी से ही स्कूल और विश्वविद्यालय बंद पड़े हैं. विरोधियों का कहना है कि पाठ्यक्रम बदलने की जरूरत है. स्कूलों में बच्चों को 'ब्रदर गद्दाफी' के गुणगान करना सिखाया जाता था. बच्चों को हर रोज घंटों तक 'हरी किताब' पढ़ाई जाती थी जिसमें गद्दाफी के जीवन और राजनैतिक उपलब्धियों पर लेख लिखे गए हैं. पाठ्यक्रम के अनुसार बच्चों और टीचरों को सरकार के बारे में सवाल करने की अनुमति नहीं थी.
बच्चे भी समझते हैं
बेनगाजी में फातमा अल हजरा स्कूल में प्रदर्शनकारी हफ्ते में कई बार बच्चों के साथ इकट्ठा होते हैं और मिल कर सरकार के खिलाफ नारे लगाते हैं और गाने लिखते हैं जिनमें कुछ इस तरह की बातें कही जाती हैं, "हम लीबिया के रहने वाले हैं, अपना सर उठाओ और इस बात पर गर्व करो. मुअम्मर, तुम देखना हम तुम्हारा क्या हाल करते हैं."
13 वर्षीय नूर अलहुदा अली बताती है, "अब यहां कोई स्कूल नहीं है. हम बस यहां आते हैं और मुअम्मर के खिलाफ चित्र बनाते हैं और गाने गाते हैं. पहले मुझे गद्दाफी के बारे में नहीं पता था, लेकिन आंदोलन के बाद मैं देख सकती हूं कि हर कोई उससे कितनी नफरत करता है. इसलिए गद्दाफी जरूर बहुत बुरा आदमी होगा. नहीं तो लोग उससे इतनी नफरत क्यों करते?"
विरोधी चाहते हैं कि स्कूल जल्द से जल्द खुल सकें, लेकिन एक नए पाठ्यक्रम के साथ. और नया पाठ्यक्रम तैयार करने में काफी समय लग सकता है. उन्होंने यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों के साथ मिल कर इस पर इस पर काम करना शुरू कर दिया है.
रिपोर्ट: रॉयटर्स/ईशा भाटिया
संपादन: वी कुमार