लुप्त होते गिद्धों को बचाने में जुटा नेपाल
१७ मार्च २०११नेपाली पक्षी संरक्षण, बीएनसी के वैज्ञानिकों ने काले सफेद बालों वाले गिद्धों पर जीपीएस लगाने का काम शुरू कर दिया है. बीएनएसी के अधिकारी डॉक्टर हम गुरंग ने कहा, ''जीपीएस ट्रांसमीटर लगाने से गिद्धों की गतिविधियों को पता चलेगा. यह भी पता चलेगा कि कितने बड़े इलाके को इन पक्षियों की सुरक्षित पनाहगाह घोषित किया जाना चाहिए.''
अधिकारियों ने दक्षिण पश्चिमी नेपाल के जिलो को पक्षियों के लिए सुरक्षित इलाका भी घोषित कर दिया है. गिद्घों को बचाने की ऐसी ही योजना पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में चल रही है. प्रोटेक्शन ऑफ द बर्ड्स, द जूलॉजिक सोसाइटी ऑफ लंदन और नेपाल सरकार इस काम को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं.
नेपाल सरकार के आंकड़ों मुताबिक 1990 से 2010 के बीच नेपाल में गिद्धों की संख्या 97 फीसदी कम हुई है. 15 साल पहले नेपाल में 50,000 गिद्ध थे. लेकिन अब ये विलुप्त होने के कगार पर हैं. इसकी वजह घटते जंगल और पशुओं को दी जाने वाली दवाएं हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में मवेशियों को बीमार होने पर दवाएं दी जाती हैं. लेकिन दवाएं देने के वाबजूद अगर मवेशी मर जाएं तो उन्हें खुले में फेंक दिया जाता है. पर्यावरण को साफ रखने वाले गिद्ध इस मांस को खाते हैं और दवाओं की वजह से मारे जाते हैं. उन्हें गंभीर बीमारियां होती हैं. कई दवाएं उनके प्रजनन तंत्र को खत्म कर देती हैं.
वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं. भारत में गिद्धों की हालत बुरी ही है. उत्तराखंड, हिमाचल, यूपी, बिहार और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में अब गिद्ध न के बराबर दिखाई पड़ते हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: वी कुमार