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लोकप्रिय होता मेड इन तिहाड़ ब्रांड

२४ मई २०११

खूंखार और हाई प्रोफाइल कैदियों के लिए सुर्खियों में रहने वाली दिल्ली की तिहाड़ तेज अब अपने उत्पादों के लिए चर्चा में है. मेड इन तिहाड़ के ठप्पे के साथ वहां बनी चिप्स और बिस्कुल लोगों तक पहुंच रहे हैं.

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Tihar is the largest complex of prisons in South Asia. It is located at Tihar village, approximately 7 km from Chanakya Puri, to the west of New Delhi, India. Amit Kumar Jha, a convict who has been given a job as a marketing executive.
Besuch im Tihar Prison im März 2011 Indienतस्वीर: DW/M.Krishnan

जेल में सजा काट रहे कैदियों को ट्रेनिंग के साथ छोटी मोटी चीजें बनाना सिखाया जाता है ताकि जेल से बाहर जाने के बाद वे अपने परिवार का पेट पाल सकें. इसी का नतीजा है कि वहां करारे आलू चिप्स, बिस्कुट और फॉर्मल शर्ट्स जैसे प्रोडक्ट्स बन रहे हैं. यह एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में बंद कैदियों की जिंदगी को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश है.

नई शुरुआत

अलग-अलग क्षेत्रों में ट्रेनिंग पाकर कैदियों ने जो सामान तैयार किए हैं वे टीजे ब्रांड के नाम से मशहूर हैं. खाने-पीने की चीजों और हर्बल प्रोडक्ट्स के अलावा वहां स्कूलों में इस्तेमाल के लिए डेस्क भी बनाए जाते हैं जिनकी बिक्री भी होती है. जेल प्रशासन ने इसके लिए एक वेबसाइट भी शुरु की है. तिहाड़ जेल में सजा काट रहे संजीवन राय का कहना है, "मैं जो जेल के भीतर हुनर सीख रहा हूं, उससे मुझे बाहर की दुनिया में बेहतर जिंदगी और इज्जत पाने में मदद मिलेगी." वह जेल में सजा पूरी करने के बाद स्नैक्स बनाने का काम शुरु करेंगे.

तिहाड़ जेल के डीआईजी राम निवास शर्मा कहते हैं, "कैदियों के हाथों से बने सामान आप खरीदते हैं, उन्हें इसके बदले मेहनताना मिलेगा. ऐसा करके आप एक परिवार की मदद कर रहे हैं. चंद हजार लोग जेल में काम कर रहे हैं. इस तरह से उनके परिवार को फायदा हो रहा है."

कैदी के सहारे कारोबार

जेल के डीआईजी राम निवास बताते हैं कि कैदी अपने समय का सही इस्तेमाल कर रहे हैं. उनके मुताबिक वे हुनर सीख कर बाहर इज्जत के साथ जिंदगी बसर कर सकते हैं. जेल के बाहर पूर्व कैदियों की जिंदगी आज भी मुश्किल हैं. उन्हें जेल में सजा काटने के धब्बे से जूझना पड़ता है. इस वजह से अपराधियों का समाज में घुलना मिलना मुश्किल हो जाता है.

मेड इन तिहाड़ ब्रांड के उत्पादों की बिक्री पिछले साल 11 करोड़ रुपये रही, जो इस साल बढ़कर 15 करोड़ रुपए हो सकती है. अगले साल का लक्ष्य और महत्वाकांक्षी है. लगभग 23 करोड़ रुपये. जाहिर है कि जेल में बने सामान को समाज में पहचान मिली है. यह चीजें फिलहाल दिल्ली के कोर्ट परिसरों और जेल आउटलेट्स में बिक रहे हैं. लेकिन जेल प्रशासन उत्पादों को रिटेल स्टोर के साथ करार कर ज्यादा से ज्यादा बेचना चाहता हैं. तिहाड़ में बने सामानों की खरीददार रूबी बग्गा के मुताबिक, "जो लोग इन सामानों को बना रहे हैं उन्हें इससे रोजगार मिल रहा है. वे इस वजह से व्यस्त रहते हैं और उन्हें फायदा होता हैं."

रिपोर्टः एजेंसियां/ आमिर अंसारी

संपादनः ए कुमार

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