वनों का साल 2011
८ फ़रवरी २०११हर साल भारतीय राज्य हरियाणा से भी बड़े इलाके के वन साफ कर दिए जाते हैं. जनता और देशों की सरकारों में वनों के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए 2011 वनों का साल है. इस साल दो फरवरी को न्यूयॉर्क में योजना की घोषणा की गई.
दुनिया में कई सारे लोगों के लिए वन उनके जीवन का आधार है. जलवायु और वनों में रह रहे अलग अलग तरह के पौधों और प्राणियों की वजह से वन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र यानी इकोसिस्टम है. जलवायु, जैव विविधता और मरुस्थलों के लिए विश्व स्तर पर समझौते बनाए गए हैं लेकिन वनों के लिए ऐसा कुछ नहीं है. पर्यावरण संस्थान डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की आस्ट्रिड डाइलमान कहती हैं कि वनों को और प्रचार की जरूरत है और इसलिए इस साल संयुक्त राष्ट्र वनों के बारे में और जागरुकता पैदा करना चाहता है, "वन हमारे लिए इतना कुछ करते हैं जिसे हम ठीक तरह से गिन भी नहीं सकते. जंगल हमारे लिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं, वे कार्बन डायॉक्साइड को बचाकर रखते हैं और पानी को भी बचाने में मदद करते हैं. वे हमें बाढ़ से बचाते हैं और मिट्टी को बहने से रोकते हैं. हमारी रोजमर्रा की जरूरतें भी वन पूरा करते हैं, जैसे लकड़ी, कागज. वे जैव विविधता के लिए बहुत ही अहम हैं."
वन्य उत्पादों की ज्यादा खपत
इसके बावजूद वनों को बेइंतहा बर्बाद किया जा रहा है. डाइलमान इसके लिए कुछ कारण बताती हैं, "हम अपने वनों का बुरी तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर हम कुछ ज्यादा ही लकड़ी या कुछ ज्यादा ही कागज का प्रयोग करते हैं. हमें और ज्यादा वनों की जरूरत होती है और वनों को खेतों या फिर बगीचों में बदल दिया जाता है. मूलभूत संरचनाओं के लिए वनों को काट दिया जाता है या उन्हें जला दिया जाता है. और फिर जगंल अपने आप भी जलने लगते हैं जिसका असर मौसम पर पड़ता है. आखिरकार मनुष्य ही जंगलों के लिए सबसे बड़ा खतरा है."
इस बीच मांस खाने की वजह से भी जंगलों को हानि पहुंचती है क्योंकि जानवरों के लिए चारा जंगलों से ही आता है. बायो ऊर्जा भी वनों को अपनी चपेट में ले रही है. जले हुए जंगलों की जगह बगीचों के लगाने से कोई खास फायदा नहीं हुआ है. जर्मन प्रकृति संरक्षण संस्थान की आंके होएल्टरमान का कहना है, "हम चाहते हैं कि वनों को उनकी मूल स्थिति में बनाए रखा जाए, मतलब जंगल, जिनमें कोई बदलाव न किए गए हों. लेकिन हम उन योजनाओं का भी समर्थन करते हैं जिनमें वनों को कुदरती तरीके से पनपने का मौका दिया जाता है. यह जलवायु परिवर्तन के नजरिए से भी ज्यादा स्थिर है और बाहरी चीजों का असर इन पर कम पड़ता है. और जिस तरह के बगीचों में एक ही तरह के पेड़ उगाए जाते हैं, उनमें ऐसा नहीं होता. वे केवल आर्थिक फायदे के लिए उगाए जाते हैं और इसमें इकॉलजी की कोई भूमिका नहीं होती."
वन संरक्षण पर समझौता
पूरी दुनिया में एक ही तरह से वन विलुप्त नहीं हो रहे .होएल्टरमान कहती हैं कि सबसे ज्यादा वन ट्रॉपिकल इलाकों में विलुप्त हो रहे हैं: "दक्षिण पूर्वी एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में वन सबसे ज्यादा गायब हो रहे हैं, हालांकि चीन और भारत जैसे देशों के जंगल बढ़ रहे हैं, लोगों को पता चल गया है कि जंगलों के गायब होने का मनुष्यों पर बुरा असर पड़ सकता है. रेगिस्तान भी बढ़ रहे हैं और इकोसिस्टम अपने बहुत सारे काम पूरा नहीं कर पाता."
वनों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आरईडीडी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं. 2013 से यह जलवायु समझौते का हिस्सा बन जाएगा. इसके तहत वनों को काटने और जंगलों को बर्बाद होने से रोका जा सकेगा. होएल्टरमान कहती हैं. "इसके साथ हमारे पास एक मौका है जिससे जो कार्बन जंगलों में है, उसके साथ हम एक आर्थिक अहमियत जोडेंगे. इससे यह होगा कि जंगल को बचाना और उसका इस्तेमाल आसपास रहने वाले लोगों के लिए आर्थिक तौर पर फायदेमंद होगा."
जंगलों के बारे में जानकारी बढ़ाने से पृथ्वी को जलावायु परिवर्तनों के बुरे असर से बचाया जा सकता है. आरईडीडी या रेड के जरिए ऐसा किया जा सकता है.
रिपोर्टः आईरीन क्वेल, मानसी गोपालकृष्णन
संपादनः विवेक कुमार