वह साल जिसने बदल दी दुनिया
१६ सितम्बर २००९1989 एक ऐसा साल था, जिसमें दुख और सुख दोनों देखने को मिले. एक ऐसा साल, जिसकी कई घटनाओं को याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. यूरोप पर इस साल का क्या असर पड़ा.
चलते हैं सबसे पहले एक ऐसी राजनीतिक घटना की ओर जिसने पूरे विश्व के स्वरूप को बदल दिया. सोवियत संघ के अंत के साथ शीत युद्ध और साथ ही साम्यवाद के टुकड़े टुकड़े हो गए और 40 वर्षों से दो भागों में बंटा जर्मनी एक हो गया.
1989 में जब भारत में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, पूर्वी यूरोप के कई देशों में परिवर्तन की एक आंधी चल पड़ी. भूतपूर्व पूर्वी जर्मनी से लेकर, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया, पोलैंड और रूमानिया तक सभी देशों में लोगों के दबाव पर सरकारें गिरी और वहां की साम्यवादी व्यवस्थाएं ताश के पत्तों की तरह वे एक के बाद एक ढहती गईं. हर जगह लोकतंत्र की तूती बोलने लगी. इन देशों पर सोवियत संघ की पकड़ भी नहीं रही. सोवियत संघ में शामिल दसियों क्षेत्रों ने अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई का बिगुल बजा दिया. साथ ही अफग़ानिस्तान से सोवियत संघ को अपने सैनिक वापस बुलाने पड़े, क्योंकि न सिर्फ़ अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव बढ़ गया था, बल्कि सोवियत संघ के लिए यह युद्ध जीत सकना संभव ही नहीं रह गया था.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि 1989 पर कुछ ऐसे अनोखे राजनितिज्ञों की छाप भी पड़ी, जिनकी वजह से यह सारी घटनाएं मुमकिन हुईं. उनमें से एक थे सोवियत संघ के उस वक्त के राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट पार्टी नेता मिखाइल गोर्बाचोव, जिन्हे जर्मनी में प्यार से "गोर्बी" कह कर पुकारा जाता है और जिन्हें अपने देश के विपरीत यहां हीरो माना जाता है. 1989 में गोर्बाचोव ने कहा,"मुझे लगता है कि ख़तरे उन्हीं की राह देखते हैं जो ज़िंदगी की सच्चाइयों से कतराते हैं." इस पर उस वक्त के जर्मन विदेश मंत्री हांस दीत्रिश गैंशर ने सालों बाद भी कहा, "मिखाईल गोर्बाचोव ने दुनिया बदल दी और उसको बेहतर बनाया. शीत य़ुद्ध ख़त्म हुआ और उन्होंने सोवियत संघ की राजनीति की दिशा को ही बदल दिया". "ग्लास्नोस्त" यानी पारदर्शिता और "पेरेस्त्रोइका" यानी आर्थिक पुनर्गठन-यह थे गोर्बाचोव की राजनीति के सिद्धांत, जिनके लिए उन्हे 1990 में शांति के नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. मिखाइल गोर्बाचोव के अलावा उस वक्त के जर्मन चांसलर हेलमुट कोल ने भी समझ लिया था कि दशकों से विभाजित दोनो जर्मन राज्यों और जर्मन परिवारों को एक देश के रूप में फिरसे् एकजुट करने का यही ऐतिहासिक मौका है. एक तरफ महिनों तक पूर्वी जर्मनी में लाखों लोगों ने प्रदर्शोन किए थे. दूसरी तरफ मई 1989 में हंगरी ने भी पश्चिम की तरफ अपनी सीमा खोल दी, जिस वजह से अगले कुछ महिनों में हज़ारों पूर्वी जर्मन नागरिकों को हंगरी के रास्ते से पश्चिमी जर्मनी भागने का मौका मिला. पूर्वी जर्मन नागरिकों को सिर्फ साम्यवादी देशों में ही छुट्टियां मनाने या वहां जाने की अनुमति दी जाती थी. हंगरी से भाग कर ऑस्ट्रिया पहुँचे एक पूर्वी जर्मन नागरिक ने कहा,"मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं कि मैं अब ऑस्ट्रिया की ज़मीन पर खड़ा हूं. मै हंगरी के शहर शोप्रोन आया था और वहां से बस से सीमा से करीब 100 मीटर की दूरी तक पहुंच गया था. इस के बाद तो मैं बस सीमा की तरफ चलता गया. मैं भागने वालों की लंबी लाइन के साथ चलता गया और सीमा पर की बाड़ को पार कर ऑस्ट्रिया पहुंच गया."
9 नवंबर 1989 को जर्मनी के विभाजन का प्रतीक बन गयी बर्लिन दीवार गिरी. बिल्कुल अनजान लोग एक दूसरे से गले मिले. खुशी के मारे सभी के आंखों में आँसू थे. उस वक्त के जर्मन चांसलर हेलमुट कोल ने कहा," मैं इस घड़ी में सभी जर्मन नागरिकों से अपील करता हूँ कि हम दिलों से भी एक हो जाएं, अब से साथ साथ चलते हुए अपना भविष्य खुद बनाएं. सवाल राष्ट्रीय एकता, न्याय और स्वतंत्रता का है. स्वतंत्र जर्मन पितृभूमि ज़िंदाबाद, स्वतंत्र और एकीकृत यूरोप ज़िंदाबाद". जर्मनी के पूर्व चांसलर और शांति नोबल पुरस्कार विजेता विली ब्रांट ने कहा, "यह जो हो रहा है और जिसके हम गवाह हैं, दिखाता है कि जो एक दूसरे के अपने हैं, वे अब एकसाथ पनप रहे हैं." 1989 सिर्फ अपूर्व राजनीतिक घटनाओं के लिए ही मशहूर नहीं हैं. विज्ञान की दुनिया में भी क्रांति हुई, इंटरनेट के साथ.
क्या आप इंटरनेट के बिना इस दुनिया की कलपना कर सकते हैं. बीस साल पहले टिम बार्नर्स ली ने स्विट्ज़रलैंड के जिनीवा शहर में स्थित सेर्न प्रयोगशाला में वर्ल्ड वाइड वेब पर अपना काम शुरू किया. यह वही सेर्न प्रयोगशाला है, जहां पिछले साल प्रोटोनों की टक्कर का महाप्रयोग शुरू हुआ था. वर्ल्ड वाइड वेब उस इंटरनेट का एक ऐसा व्यापक रूप है, जिसे 1960 से ही अमेरिकी रक्षा विभाग में इस्तेमाल किया जा रहा था. लेकिन ली ने उसे एक सार्वजनिक रूप दिया. आज दुनियाभर में एक अरब 40 करोड़ लोग ऑनलाइन हैं. टिम बर्नर्स ली के साथ काम कर रहे थे बेल्जियम के रोबर्ट काईलिआउ, हमें एक सर्वमान्य मानक की ज़रूरत थी. उस समय वह नहीं था. ऐसी सूचनाएं तो थीं, जो सारी दुनिया के लिए खुली थीं, लेकिन उन्हें आज जैसे टर्मिनल चाहिये थे, पासवर्ड चाहिये थे. उस समय तरह तरह की फ़ीस देनी पड़ती थी. सब बड़ा जटिल था. ऐसे में इंटरनेट का आसानी से उपयोग कर सकना ही सबसे ख़ास बात थी. लोग अब मनचाही चीज़ें पढ़ सकते थे. वे केवल क्लिक कर सकते थे और एक लिंक उन्हें किसी दूसरे पते से जोड़ती थी. वे असीम सूचनाओं के एक ब्रह्मांड में घूम-फिर सकते थे."
भारतीय लेखक सलमान रुशदी भी इसी साल सुर्ख़ियों में आए, जब उनकी किताब सैटेनिक वर्सेज़ रिलीज़ हुई. रुशदी के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी हो गया और उनकी जान मुसीबत में पड़ गई. बरसों छिपे रहने के बाद रुशदी ने यूरोपीय देश ब्रिटेन को अपनी पनाहगाह बनाई.
खेलों की दुनिया में यह साल था जर्मन टेनिस स्टार्स बोरिस बेकर और स्टेफी ग्राफ़ का साल. स्टेफी ग्राफ़ ने चार में से तीन ग्रैंड स्लैम जीते-- ऑस्ट्रेलियन ओपन, विम्बलडन और यूएस ओपन. बोरिस बेकर विम्बलडन और यूएस ओपन के विजेता बने. फ़िल कॉलिन्स जैसे गायक भी उसी साल उभर कर सामने आए, जिन्होंने म्यूज़िक की दुनिया में बड़ा नाम कमाया.
रिपोर्ट- प्रिया एसेलबॉर्न
संपादन-एम गोपालकृष्णन