विचारों से चलने वाली कार
२८ फ़रवरी २०११इस खास कार के प्रयोग में सामने आया कि विचारशक्ति से कार चलाई जा सकती है. यह प्रयोग बर्लिन के पुराने टेम्पलहोफ एयरपोर्ट पर किया गया. बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी ने बताया कि वैज्ञानिक इस नई तकनीक से कार की गति बढ़ाने, ब्रेक लगाने और गाड़ी को मोड़ने में सफल हुए.
दिमाग से चलने वाली कार की सफलता के पीछे है एक हेडफोन जो चालक के मस्तिष्क की तरंगों को पहचान सकता है. इसके बाद एक कंप्यूटर के जरिए मस्तिष्क में जारी सोच को इलेक्ट्रॉनिक कमांड में बदला गया इससे ही कार चली.
दिमागी हल्ला समस्या
विचारों से नियंत्रित होने वाली कार के पीछे थ्योरी नई नहीं है. शोधकर्ता काफी समय से इस पर काम कर रहे हैं कि दिमाग को सीधे कंप्यूटर से जोड़ दिया जाए. इस ज्ञान के जरिए भविष्य में उन लोगों को काफी मदद मिल सकती है जो किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण अपने हाथ पैरों पर नियंत्रण नहीं रख सकते लेकिन उनका दिमाग पूरी तरह सक्रिय है. यह लोग अपने शरीर पर नियंत्रण इसलिए नहीं रख पाते क्योंकि उनके मस्तिष्क से निकले आदेश शरीर के विभिन्न अंगो तक नहीं पहुंच पाते.
फिलहाल विचारों से चलने वाली कार सिर्फ प्रयोग के दौर में है और वैज्ञानिक निकट भविष्य में किसी बड़े शोध का वादा भी नहीं कर रहे.
कुछ सफलताएं
इस विचार के पीछे की तकनीक काफी जटिल है. त्वचा पर लगाए सेंसर्स के जरिए मस्तिष्क से निकली तरंगों को पहचानना आसान है लेकिन दिमाग में जारी विचारों तूफान से सही आदेश निकाल पहचान सकना मुश्किल है. इस तकनीक पर कई इंजीनियर काम कर रहे हैं लेकिन वह प्राथमिक स्तर से आगे नहीं बढ़ सके हैं. लेकिन बर्लिन के तकनीक संस्थान के छात्र यह साबित करने में सफल हुए हैं कि सिर्फ विचारों के जरिए पिनबॉल खेला जा सकता है.
बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी में आईटी जानकार कारों के साथ कई जटिल प्रयोग कर रहे हैं. वह मनुष्य की आंख से गाड़ियों को नियंत्रित करने, मोबाइल फोन से नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त की है. लेकिन इनका कहना है कि त्वचा पर लगाए गए सेंसर से नए आयाम खुले हैं.
खास प्रशिक्षण
इस नए प्रयोग के लिए टेस्ट चालक और कंप्यूटर को खास प्रशिक्षण दिया गया. शुरुआती प्रशिक्षण दौर में चालक से कहा गया कि वह अलग अलग दिशा में जाते क्यूब पर ध्यान लगाएं. ऐसा करने से मस्तिष्क के पैटर्न को आंका जा सका. चार क्यूब्स की गति को बाएं मुड़िए, गति बढ़ाइए जैसे कंमाड्स से जोड़ा गया. कंप्यूटर ने इन निर्देशों को समझा और फिर इससे कार को नियंत्रित किया. इसके बाद शोधकर्ता ने कार के स्टीयरिंग व्हील, एक्सेलरेटर और ब्रेक्स को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से जोड़ा.
हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि इस प्रयोग के पूरी तरह से सफल होने के लिए अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
संपादनः एमजी