विरोध के बीच भारत का खुदरा बाजार खुला
२५ नवम्बर २०११गुरूवार की देर शाम कैबिनेट ने खुदरा बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने का फैसला किया और इसके साथ ही विपक्षी पार्टियों ने अगले दिन के लिए संसद में काम न करने देने का एजेंडा भी तय कर लिया. शुक्रवार की सुबह एक दम तय कार्यक्रम के मुताबिक ही हुई. वाणिज्य मंत्री को कैबिनेट के फैसले के बारे में संसद में बयान देना था, बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने संसद को हंगामे से गुलजार रखा. नतीजा आनंद शर्मा बाहर आ कर पत्रकारों से बोले कि नई नीति छोटे दुकानों, किसानों के हितों को देखते हुए बनाई गई है. वालमार्ट जैसी बड़ी कंपनियों के भारतीय बाजार में कदम रखने के बावजूद उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा.
आनंद शर्मा के मुताबिक सुपरबाजारों में 51 फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति देने से बुनियादी सुविधाओं में काफी सुधार होगा और ऐसे देश में जहां कुपोषण और महंगाई का बोलबाला है, खाने पीने की चीजों की बर्बादी को रोका जा सकेगा. शर्मा ने बताया कि नया नियम सिर्फ उन शहरों में लागू होगा जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है और इसके लिए कम से कम 10 करोड़ डॉलर का निवेश करना जरूरी होगा जिसका आधा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं, नियंत्रित तापमान वाली माल ढुलाई की व्यवस्था और ठंढे गोदामों के विकास पर खर्च करना होगा. सुपरबाजारों में बिकने वाली चीजों का 30 फीसदी छोटे और मध्यम उद्योगों से लेना जरूरी किया गया है.
वाणिज्य मंत्री ने तो नई नीति की अच्छी बातों के बारे में बता दिया लेकिन देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी इससे सहमत नहीं. बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है, "खुदरा बाजार में विदेशी निवेश की जरूरत नहीं है. कोल्ड स्टोरेज की सुविधा कोई रॉकेट साइंस नहीं है जिसके लिए विदेशी निवेश कराया जाए. इससे बेरोजगारी बढ़ेगी और देश के हजारों व्यापारियों को नुकसान पहुंचेगा. हम इसका विरोध करेंगे." बीजेपी नेता एस एस आहलूवालिया ने कहा कि, "दो कमेटियों ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के खिलाफ अपनी रिपोर्ट दी है. इसके बावजूद सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी. निश्चित रूप से इस कदम को वापस लिया जाना चाहिए."
उधर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अकाली दल ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. वाणिज्य मंत्री को लिखे एक पत्र में शिरोमणि अकाली दल ने के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा है, "हमें यकीन है कि कई ब्रांड वाले खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश से विदेशी खुदरा व्यापारियों की कुशलता, अनुभव और उनका संसाधन हमारे देश में आएगा. इसका बड़ा फायदा हमारे किसानों को होगा."
खुदरा बाजार की नई नीति के बारे में बाजार विश्लेषक अरविंद सिंघल कहते हैं, "लंबे समय से इसका इंतजार था और बड़े विदेशी और घरेलू खुदरा बाजारों के मालिक इसका स्वागत करेंगे. अर्थव्यवस्था अभी भी भविष्य में बड़े पैमाने पर विकास के इंतजार में है. बुनियादी सुविधाओं की दिक्कतें और खराब आपूर्ति तंत्र को सुधारना होगा." ये तो हुई बाजार की बात लेकिन क्या लोग अपने गली मुहल्ले की लाला जी वाली दुकानों को छोड़ कर इन बड़ी दुकानों में जाएंगे. अरविंद सिंघल को उम्मीद है कि भारत में खरीदारी की आदतें यूरोप और दूसरी जगहों की तरह गाड़ी से दुकान जाने वाली नहीं हैं यहां लोग फोन या इंटरनेट पर ऑर्डर दे कर घर पर डिलीवरी लेना चाहते हैं और उम्मीद की जा रही है कि बाजार के नए खिलाड़ी इन्हीं आदतों पर अपना ध्यान लगाएंगे. हालांकि खराब सड़कें और सुस्त ट्रैफिक इस रास्ते की सबसे बड़ी बाधा है.
अमेरिका की कई ब्रांड वाली बड़ी खुदरा कंपनी वालमार्ट फिलहाल भारत में थोक व्यापार करती है उन्हें माल सीधे ग्राहकों को बेचने की इजाजत नहीं है. नई नीति का एलान होने के बाद वाल मार्ट के भारत प्रमुख राज जैन कहते हैं, "सरकार के इस कदम से भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय कारोबारियों का स्वागत करने वाले देश के रूप में बनेगी." भारत का रिटेल सेक्टर कृषि के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा लोगों को नौकरी मिलती है. दिल्ली में एक स्टोर चलाने वाले दीपक सेठी कहते हैं, "विदेशी सुपरबाजारों के आ जाने के बाद हमें बचाने के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं है. वो बेहतर कीमतें देंगे और इससे हमारा कारोबार घटेगा."
सरकार के फैसले पर शेयर बाजार ने खुशी जताई है. एलान के दूसरे दिन पैंटालून रिटेल के शेयर 18.2 फीसदी, शॉपर्स स्टॉप के शेयर 15 फीसदी और टाटा की खुदरा इकाई ट्रेंट के शेयर 17.2 फीसदी उछल गए. ये हालत तब है जब बाजार गिर रहा है और सेंसेक्स 0.29 फीसदी नीचे चला गया है.
वैसे खुदरा बाजारों में विदेशी खिलाड़ियों का प्रवेश इतना आसान भी नहीं है क्योंकि इस बारे में राज्य सरकारों की भी बड़ी भूमिका है. विदेशी निवेशकों को यह भी डर है कि अगर विपक्षी पार्टियो के शासन वाले बड़े राज्यों की सरकारें इस नीति के पक्ष में नहीं आईं तो उनका क्या होगा.
रिपोर्टः पीटीआई, एएफपी, रॉयटर्स/ एन रंजन
संपादनः महेश झा