शरणार्थियों के मुद्दे पर इटली और जर्मनी में तकरार
११ अप्रैल २०११इटली ने हाल ही में यह घोषणा की कि वह ट्यूनीशियाई शरणार्थियों को अपने देश में जगह देने को तैयार है. दोनों देशों के बीच हुई संधी के तहत यह कदम उठाया गया. इटली ने कहा है कि वो शरणार्थियों को ऐसे प्रवेश पत्र देगा जिनके चलते वो शेनगन जोन में बिना किसी रोक टोक के आ जा सकेंगे. इटली यूरोपीय संघ के एक ऐसे कानून को सक्रिय करना चाहता है, जिसके तहत संघ के सभी सदस्य देशों को शरणार्थियों का भार बराबरी से उठाना होगा. यह कानून 2001 में बना था, लेकिन फिलहाल इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा और शरणार्थियों को कम से कम शरण देनी की प्रक्रिया के पूरे होने तक आगमन के देश में ही रहना जरूरी है.
इटली के इसी निर्णय पर शेनगन जोन के कई देशों में नाराजगी है. जर्मनी के गृहमंत्री हांस पेटर फ्रीडरिष ने कहा कि यह नियम यूगोस्लाविया के शरणार्थियों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था और अब हालात अलग हैं. इस साल की शुरुआत से इटली के द्वीप लाम्पेदूसा पर उत्तरी अफ्रीका के कई देशों से 25,000 प्रवासी आ चुके हैं. जर्मनी और फ्रांस इन प्रवासियों का बोझ नहीं उठाना चाहते हैं.
दक्षिणी जर्मनी के राज्य बवेरिया के गृहमंत्री योआखिम हेरमन ने कहा है कि यदि हालात ऐसे रहे तो जर्मनी और ऑस्ट्रिया की सीमा पर नियंत्रण को बहाल कर दिया जाएगा, ताकि शरणार्थी जर्मनी में ना घुस पाएं. जर्मनी के साप्ताहिक समाचार पत्र वेल्ट एम जॉनटाग को दिए एक इंटरव्यू में हेरमन ने कहा कि इटली अस्थायी वीजा देने की बात पर दोबारा सोच विचार करे. हेरमन ने कहा, "हम यह किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे कि इटली की सरकार ट्यूनीशियाई शरणार्थियों को सैलानी कह कर दूसरे देशों में भेज दे."
शेनगन जोन से हट सकता है जर्मनी
हेरमन ने माना कि जर्मनी के रुख से दोनों देशों के संबंधों में बुरा असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि इस समय यह जरूरी है कि यूरोपीय संघ इस पर किसी नतीजे पर पहुंचे. हेरमन ने साफ कर दिया कि ट्यूनीशियाई शरणार्थियों के लिए जर्मनी में कोई जगह नहीं है. कड़े शब्दों में हेरमन ने कहा, "उन्हें अपने देशों में वापस भेज देना चाहिए." इसी तरह से हेसे राज्य के गृहमंत्री बोरिस राइन ने कहा कि यदि इटली ने अपना निर्णय नहीं बदला तो हो सकता है कि जर्मनी अस्थायी रूप से शेनगन जोन से खुद को हटा ले.
इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बैर्लुस्कोनी ने इस हफ्ते लाम्पेदूसा की यात्रा के बाद कहा कि वहां हालात एक "मानवीय सूनामी" जैसे हैं. बैर्लुस्कोनी ने यूरोपीय संघ से मदद की मांग करते हुए कहा, "या तो यूरोप कोई ठोस सिद्धांत है, या फिर कुछ भी नहीं है. और अगर यह कुछ भी नहीं है, तो बेहतर होगा कि हम सब अपने अपने रास्ते निकल पड़ें और अपनी राजनीति को अपने स्वार्थ भरे ढंग से चलाएं." ट्यूनीशियाई शरणार्थियों के भविष्य को लेकर सोमवार को यूरोपीय संघ के गृह और न्याय मंत्री बातचीत करेंगे.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया
संपादन: ओ सिंह