शिक्षा की दुकान में परेशान छात्र
२१ जून २०१२जिन चंद छात्रों को प्रवेश परीक्षाओं के जरिए दाखिला मिल गया है वह तो निश्चिंत हैं. लेकिन लाखों छात्र ऐसे भी हैं जिनको अब तक कहीं दाखिला नहीं मिल सका है.
एक ओर जहां छात्र और उनके अभिभावक एक सुरक्षित करियर की तलाश में देश भर के कालेजों और विश्वविद्यालयों को खंगाल रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अरबों का कारोबार बन चुके शिक्षा उद्योग और हजारों संस्थानों के लिए भी यह एक शानदार मौका है. छात्रों और अभिभावकों सपनों को भुनाने के लिए यह लोग तमाम तरीकों से उनको लुभाने की कवायद में जुटे हैं. इसके लिए जगह-जगह शिक्षा मेलों का आयोजन किया जा रहा है.
स्पॉट एडमिशन
उद्योग मेलों की तर्ज पर आयोजित होने वाले इन शिक्षा मेलों की खासियत यह है कि छात्रों को संबंधित संस्थानों की जानकारी देने के साथ ही मौके पर ही दाखिला (स्पॉट एडमिशन) दिया जा रहा है. तमाम अखबार ऐसे कालेजों और देश-विदेश के नामी-गिरामी संस्थानों में दाखिला दिलाने वाली एजेंसियों के विज्ञापनों से भरे पड़े हैं. कोई चीन और नेपाल में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में दाखिला कराने की गारंटी दे रहा है तो कोई छात्रों को अमेरिका, इंग्लैंड, पैलोंड और आस्ट्रेलिया के शिक्षण संस्थानों में दाखिले के सपने दिखा रहा है.
पश्चिम बंगाल से हर साल भारी तादाद में छात्र इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए खासकर दक्षिणी राज्यों का रुख करते हैं. यही वजह है कि इन दिनों महानगर में ऐसे मेलों की बहार है. पिछले एक महीने के दौरान ऐसे कम से कम पांच मेले हो चुके हैं. ऐसे ही एक मेले में आए छात्र अनिकेत पाल कहते हैं, ‘बेहद भ्रामक स्थिति है. बंगाल में निजी इंजीनियरिंग कालेजों में आधारभूत सुविधाओं का अभाव है. इसलिए मैं दक्षिण भारत के किसी कालेज में दाखिला लेना चाहता हूं. यह मेला इस लिहाज से काफी मददगार है. हमें घर बैठे तमाम सूचनाएं मिल जाती हैं.' 12वीं के बाद मेडिकल की पढ़ाई का सपना देखने वाली शुचिता दास प्रवेश परीक्षा में बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर सकी. इसलिए वह विदेश के किसी कालेज में पढ़ना चाहती थी. उसे चीन के एक मेडिकल कालेज में दाखिला मिल गया है. इसी मेले के जरिए. वह कहती है, ‘मेरे कई मित्र वहां जा रहे हैं. हम सब एक साथ वहां पढेंगे.'
कम नंबर लेकिन उम्मीद बड़ी
देवयानी को बहुत कम अंक मिले हैं. नियमों के मुताबिक, 12वीं में 45 प्रतिशत से कम अंक वाले को किसी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला नहीं मिल सकता. लेकिन मेले में आने के बाद देवयानी निश्चिंत है. उसे बैंगलोर के एक कालेज में एनिमेशन की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया है.
मेले में स्टाल लगा कर छात्रों को लुभाने आए एक उत्तर भारतीय विश्वविद्यालय के प्रभारी अनिकेत जैन कहते हैं, ‘ऐसे मेलों के जरिए छात्रों को तो सहायता मिलती ही है, हमें भी सीटें भरने में आसानी होती है.' वह बताते हैं कि पिछले साल उनके विश्वविद्यालय में कई सीटें खाली रह गईं थी. लेकिन इस बार चार-पांच मेलों में हिस्सा लेने के बाद लगभग सभी सीटों की बुकिंग हो गई है.
चेन्नई की भारत यूनिवर्सिटी के ए.पेरियार भी यही बात कहते हैं. वह कहते हैं कि आम तौर पर छात्रों को सभी कालेजों और वहां उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी नहीं मिल पाती. इन मेलों के जरिए उनको एक साथ करियर के तमाम विकल्प एक छत के नीचे ही मिल जाते हैं. इसमें दोनों का फायदा है. तमिलनाडु की वेल्लूर यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. जी. विश्वनाथन कहते हैं, ‘तमिलनाडु में 1794 में देश का पहला इंजीनियरिंग कालेज खुला था. अब राज्य में पांच सौ इंजीनिरिंग कालेज हैं. आधारभूत सुविधाओं की वजह से ज्दायातार छात्र दक्षिण भारतीय कालेजों को तरजीह देते हैं. वहां शिक्षण का स्तर विश्वस्तरीय है.'
सुविधाएं नहीं
आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल तक देश के कुल 3,393 इंजीनियरिंग कालेजों में 14.86 लाख सीटें थीं. अब ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेकनिकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने सौ नए कालेजों को मंजूरी दी है. ऐसे में कम से कम 50 हजार सीटें और बढ़ जाएंगी. लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. इन कालेजों में पिछले साल एक लाख से ज्यादा सीटें खाली रह गईं थी. एआईसीटीई के अध्यक्ष एस.ए.मांथा कहते हैं, ‘आधारभूत सुविधाएं नहीं होने की वजह से वहां सीटें नहीं भर पातीं.इसी वजह से हमने एक सौ से ज्यादा कालेजों की मान्यता रद्द कर दी है.'
बेहतर कालेज नहीं मिलने की वजह से हजारों छात्र बेहतर कालेजों में सामान्य ग्रेजुएशन की पढ़ाई का मन बना रहे हैं. कुल मिला कर उनके लिए बेहद ऊहापोह की स्थिति है. शिक्षा मेले में आए रत्नेश कुमार कहते हैं, ‘अभी कुछ तय नहीं है. किसी बेहतर कालेज में इंजीनियरिंग में दाखिला नहीं मिला तो बीएससी(आनर्स) करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करूंगा.' झारखंड से आए रोहित ने तो मैनेजमेंट करने का फैसला किया है. वह कहते हैं कि जुलाई के पहले सप्ताह तक इंतजार के बाद ही दाखिला लेने के बारे में कोई फैसला करूंगा.
12वीं पास करने वाले छात्रों के दाखिले का इंतजार कुछ ज्यादा ही लंबा हो जाता है. तमाम बोर्ड के नतीजे तो मई के आखिर तक आ गए. लेकिन दाखिला होने में जुलाई का दूसरी सप्ताह बीत जाएगा. इन लाखों छात्रों में से कितनों के सपने पूरे होंगे, यह उसी समय पता चलेगा. लेकिन हर सप्ताह आयोजित होने वाले शिक्षा मेले इन छात्रों को सपना दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः आभा मोंढे