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शिक्षा नहीं तो अभिशाप बन सकती है आबादी

७ दिसम्बर २०१०

वित्तीय संकट के बाद फिर से पूरी गति के साथ आर्थिक विकास की पटरी पर आने वाले देशों में भारत भी है. विशेषज्ञों का कहना है कि उसकी युवा आबादी आने वाले सालों में विकास का मोटर बन सकती है या सामजिक उथल पुथल का कारण बन सकती है

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तस्वीर: picture alliance / dpa

डॉयचे बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले दो दशकों में भारत की काम करने वाली आयु की आबादी में 24 करोड़ की वृद्धि होगी, जो ब्रिटेन की कुल आबादी का चौगुना है. लेकिन एशियन डेवलपमेंट बैंक के प्रबंध निदेशक रजत नाग ने हाल ही में नई दिल्ली में निवेशकों के एक सम्मेलन में चेतावनी दी कि शिक्षा के बिना आबादी का ये लाभ आबादी के अभिशाप में बदल सकता है.

Schülerinnen in Indien
तस्वीर: picture-alliance/Mark Henley/Impact Photos

विवादों के बीज इस समय भी इस बात में देखे जा सकते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 80 करोड़ आबादी 20 रुपए रोजाना से कम पर जी रही है और राष्ट्रीय आर्थिक विकास से वंचित गरीब इलाकों में माओवादी विद्रोह बढ़ रहा है.

उसी गोष्ठी में बजाज ऑटो कंपनी के चेयरमैन राहुल बजाज ने कहा, "सुपर पावर बनने की महात्वाकांक्षा भूखे पेट नहीं बनाए रखी जा सकती. भारत को सभी नागरिकों को समृद्ध जीवनशैली की गारंटी देने वाली आय के स्तर पर पहुंचने के लिए लंबा रास्ता तय करना है." अच्छी स्थिति में भारत की बढ़ती युवा आबादी निर्भरता अनुपात को कम कर कमाई, बचत, उत्पादकता और आर्थिक विकास की वृद्धि में योगदान देगी. 15 से 65 साल की आयु काम करने वाली आयु मानी जाती है जबकि 15 से नीचे के बच्चों और 65 से ऊपर के वृद्धों को निर्भर माना जाता है. वरिष्ठ भारतीय विश्लेषक दीपक लालवानी का कहना है, "यदि आर्थिक लाभ सभी लोगों को शामिल करने वाले, रोजगार देने वाले और जीवन स्तर ऊंचा उठाने वाले न हों तो सामाजिक समरसता प्रभावित होगी."

विशेषज्ञों के अनुसार भारत उस स्तर पर पहुंचने वाला है जहां श्रम बाजार में घुसने वाले युवा कामगारों की बड़ी संख्या बचत और निवेश के जरिए महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ का कारण बन सकती है. चीन ने 1980 के दशक में इस स्तर पर पहुंचने के बाद आर्थिक विकास की ऊंची छलांग लगाई थी. भारत की 120 करोड़ आबादी का आधा से अधिक हिस्सा 25 साल से कम आयु का है. 2020 तक बारतीयों की औसत आयु 29 होगी जबकि उस समय चीन की औसत आयु 37 होगी. चीन की कामकाजी आबादी अगले पांच साल में चोटी पर होगी और उसके बाद उसका गिरना शुरू हो जाएगा, जो आंशिक रूप से उसकी एक बच्चे वाली नीति का नतीजा है.

2035 तक भारत की आबादी 150 करोड़ होगी और उसमें कामकाजी आबादी 65 फीसदी होगी. लेकिन रजत नाग का कहना है कि भारत को लाभ तभी मिलेगा जब उसके कामगार प्रशिक्षित हों. युवा आबादी को शिक्षा देने की चुनौती बहुत व्यापक है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत इसमें बहुत पीछे छूट रहा है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने इस साल अप्रैल में 14 साल की उम्र तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून पास किया है लेकिन इस पर अमल के लिए स्कूलों और शिक्षकों का अभाव है. इस कानून पर अमल के लिए 12 लाख शिक्षकों की जरूरत है लेकिन इस समय भारत में सिर्फ 7 लाख शिक्षक हैं और उनमें भी 25 फीसदी काम पर नहीं जाते. भारत में साक्षरता दर 65 प्रतिशत है जबकि चीन में यह 91 प्रतिशत और यहां तक कि केन्या में 85 प्रतिशत है.

Kapil Sibal Minister HRD und Harshvardhan Neotia
तस्वीर: UNI

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार स्कूल में भर्ती होने वाले बच्चों में से 39 फीसदी 10 की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं और 15 से 19 की आयु के किशोरों में सिर्फ 2 फीसदी का व्यावसायिक प्रशिक्षण मिलता है. भारतीय उद्योग महासंघ के अध्यक्ष हरि भारतीय कहते हैं, "हमारी सबसे बड़ी चुनौती स्कूल के स्तर पर है. ड्रॉप आउट दर बहुत ऊंची है." लेकिन जो स्कूल पास कर जाते हैं उन्हें ऊंची शिक्षा के कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना होता है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की 1700 सीटों के लिए लगभग 3 लाख लोग आवेदन देते हैं.

भारत के शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल 2020 तक हाई स्कूल पास करने वाले बच्चों की संख्या इस समय के 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना चाहते हैं. लेकिन ऐसा करने के लिए सैकड़ों नए कॉलेज और विश्वविद्यालय बनाने होंगे. इस मांग को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस बनाने की अनुमति देने वाले कानून का मसौदा तैयार किया है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए जमाल

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