शुगर की बीमारी का काट डोपिंग ड्रग
२१ जून २०१०शुगर की बीमारी के दौरान कई बार पैर सुन्न पड़ जाते हैं. पैरों तक खून का पहुंचना कठिन हो जाता है. पैरों की नसों में पानी भरने लगता है और वे सूज जाती हैं. किसी तरह का अहसास नहीं होता है. चलना फिरना तो दूभर हो ही जाता है, पैरों पर मामूली खरोंच भी भयंकर घाव बन सकती है. दवाएं काम नहीं आतीं. हो सकता है कि रोगी की जान बचाने के लिए उसके पैरों की बलि देनी पड़े.
लेकिन कुछ समय से आशा की एक किरण भी दिखाई पड़ने लगी है. खेल प्रतियोगिताओं में नशीली और उत्तेजक समझी जाने वाली एक दवा राम बाण बन कर उभरी है. जर्मनी के डॉक्टर इससे बेहद उत्साहित हैं.
"दुर्भाग्य से डायबेटीज के 10 से 15 प्रतिशत रोगियों के पैरों में पुराने पड़ गए घाव पैदा हो ही जाते हैं. पैरों में खून का बहाव इतना कम हो जाता है कि अकसर पैर काटने की नौबत आ जाती है. हम एपो (EPO) नाम की जिस दवा के साथ परीक्षण कर रहे हैं, उसका लक्ष्य है तीन महीने के भीतर पैर के घाव को रोक देना, ताकि और जटिलताएं न पैदा हों और पैर काटने की ज़रूरत न पड़े." -डॉक्टर वोल्फगांग रुइडिंगर
नाम बदनाम, काम सुनाम
एपो मानवीय प्रोटीन वाला एक हॉर्मोन है. इसका पूरा नाम है एरिथ्रोपोयटिन. यह हॉर्मोन हमारे गुर्दों में बनता है. वहां से ख़ून में मिलने के बाद जब बोन मैरो यानी हड्डियों के गूदे में पहुंचता है, तो वहां एरिथ्रोसाइट कहलाने वाली लाल रक्त कोषिकाओं के निर्माण को बढ़ावा देता है. इसीलिए डॉक्टर ख़ून में लाल रक्त कणों की कमी वाली बीमारी अनेमिया के इलाज के लिए कई बार एपो यानी इरिथ्रोपोयटिन का भी उपयोग करते हैं.
लेकिन इस बीच यह हॉर्मोन बदनाम भी हो गया है. उसके कारण बने लाल रक्त कणों से शरीर को ऑक्सीजन भी अधिक मात्रा में मिलने लगती है. लाल रक्त कणों का हिमोग्लोबीन ऑक्सीजन का संवाहक होता है. इसलिए कुछ खिलाड़ी इस हॉर्मोन का एक डोपिंग दवा के तौर पर दुरुपयोग करने लगे हैं.
लेकिन इस बात का भी ख्याल रखा जा रहा है कि इस दवा का गलत इस्तेमाल न हो. इससे बचने के लिए जर्मनी में हनोवर मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर हेर्मन हालर ने एपो के साथ कम मात्रा में इलाज का तरीका निकाला है. उनका कहना है कि वे जिस कम मात्रा का उपयोग करते हैं, वह लाल रक्त कणों के निर्माण के लिए ज़रूरी मात्रा से नीचे होती है.
"हमने घाव वाले शुगर के रोगियों में दो तरह के प्रभाव पाए. एक तो यह कि घाव वाली जगहों में छोटी छोटी नई रक्त वाहिकाएं बनने लगती हैं. दूसरा यह कि घाव के टिश्यू कोषिकाओं का मरना कम हो जाता है. इससे घाव भरने लगते हैं." -हेर्मन हालर
घाव भरने की प्रक्रिया
एपो की बहुत कम मात्रा वाले इलाज के तरीके से पहले एक ऐसी पतली त्वचा सी बनती है, जो घाव को बंद कर देती है. इसके बाद घाव में बहुत ही महीन क़िस्म की रक्त नलिकाएं बनने लगती हैं. खून के साथ बोन मैरो से वहां ऐसे सर्वगुणी स्टेम सेल पहुंचने लगते हैं, जो घाव भरने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं. सबसे अच्छी बात यह पाई गई कि ऐसे लाल रक्त कण नहीं बनते, जो महीन रक्त नलिकाओं को रोक देते हों.
"पहले प्रयोग में तीन रोगी थे. वे बहुत लंबे समय से ऐसे गंभीर घावों से जूझ रहे थे, जो ठीक नहीं हो रहे थे. हमने देखा कि एपो ने उन पर तेजी से असर किया. निश्चित है कि ऐसा हर रोगी के साथ नहीं होगा, इसीलिए हम अब बड़े पैमाने पर इसे आजमाने जा रहे हैं. पहले प्रयोग से हम इतने उत्साहित हैं कि हमने कहा कि यह इलाज का नया तरीका हो सकता है." -हेर्मन हालर
क्लिनिकल टेस्ट शुरू
2009 से क्लिनिकल टेस्ट शुरू हो गए हैं. जर्मनी के 18 मेडिकल सेंटर इस टेस्ट में हिस्सा ले रहे हैं. कुल 90 रोगियों पर यह दवा आजमाई जाएगी. इस बारे में न तो डॉक्टरों को पता होगा और न रोगियों को. इसे डबल ब्लांइड टेस्ट कहते हैं. हनोवर मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर हांस ओलिवर रेनेकाम्प को बड़ी ख़ुशी है कि अब तक कोई खराब साइड एफेक्ट नहीं दिखा है.
जर्मनी में एपो से शुगर की बीमारी के घाव वाले पैर के इलाज का ख़र्च 400 यूरो (लगभग 24 हज़ार रुपये) बैठता है, जो यहां के हिसाब से बहुत कम है. यदि प्रयोग सफल रहा तो यह इलाज कई तरह के पुराने पड़ गए घावों के लिए इलाज का नया तरीका बन सकता है.
रिपोर्टः राम यादव
संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य