शेंगन का विस्तार फिलहाल टला
७ मार्च २०१३जर्मनी के गृह मंत्री हंस-पेटर फ्रीडरिष ने गुरुवार को यूरोपीय संघ के गृह मंत्रियों की बैठक में कहा कि इसके लिए सही परिस्थितियां नहीं आई हैं. इस साल के अंत में ईयू के गृह मंत्री फिर से इस मुद्दे पर विचार करेंगे.
जर्मनी का यह रुख इस साल होने वाले संसदीय चुनावों के कारण है या शेंगन समझौते में बुल्गारिया और रोमानिया को शामिल करने से अमीर देशों को नुकसान होने का खतरा है. जर्मनी और नीदरलैंड्स जैसे देश दक्षिण यूरोप के अपेक्षाकृत गरीब देशों के आप्रवासियों से परेशान हैं, क्योंकि वे नौकरी की तलाश में आ रहे हैं. लेकिन यह परेशानी क्या उचित है.
शेंगन लक्जेमबर्ग में एक छोटा सा गांव है. 1985 में यहां यूरोपीय देशों के बीच एक संधि हुई जिसमें इन देशों ने आपसी सीमाओं को खत्म करने और एक साझा बाहरी सीमा बनाने का फैसला किया. अब शेंगन में यूरोपीय संघ के 22 देशों के अलावा स्विट्जरलैंड, लिष्टेनश्टाइन, नॉर्वे और आइसलैंड शामिल हैं. शेंगन सीमा में अब रोमानिया और बुल्गारिया भी शामिल होना चाहते हैं. कुछ देशों का मानना है कि इन दोनों को शेंगन संधि में आने की अनुमति दे दी जानी चाहिए. लेकिन जर्मनी और नीदरलैंड्स कहते हैं कि दोनों इस स्थिति में नहीं हैं कि वे गैर ईयू देशों से लगी अपनी सीमाओं की सुरक्षा करें, गैर कानूनी आप्रवासन को रोकें और अपराध में कमी लाएं.
बुल्गारिया और रोमानिया पहले से ही शेंगेन में हैं. यानी 2007 में यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद से दोनों देश कानूनी तौर पर शेंगन क्षेत्र में आ गए हैं. यूरोपीय संघ की संधि के मुताबिक शेंगेन क्षेत्र में शामिल होना, खुले बाजार और ईयू देशों में बिना वीजा के दाखिला पाना हर ईयू नागरिक का अधिकार है. रोमानिया और बुल्गारिया ने संधि पर हस्ताक्षर के साथ वादा किया है कि वे अपनी बाहरी सीमाओं पर नियंत्रण कड़ा करेंगे, ड्रग्स, महिलाओं और मानव तस्करी पर काबू करेंगे. दोनों देश गैर कानूनी रूप से आने वाले प्रवासियों पर काबू पाने के लिए भी खास कदम उठा रहे हैं.
लेकिन वास्तव में हालत कुछ अलग है. हाल ही में जर्मन गृह मंत्री हांस पेटर फ्रीडरिश ने श्पीगेल पत्रिका से बातचीत में कहा कि जो व्यक्ति केवल सरकारी पैसा लेने आता है और ईयू में आजाद घूमने का गलत फायदा उठाता है, उसे रोका जाना चाहिए. इसलिए जर्मनी आ रहे रोमा समुदाय के कई लोगों को वापस उनके देश भेज दिया गया है और उन्हें वापस जर्मनी आने से रोका जा रहा है. 2014 से बुल्गारिया और रोमानिया के नागरिक जर्मनी में लंबे समय तक रह सकेंगे, बशर्ते वे काम या पढ़ाई करने आ रहे हैं.
जर्मन सरकार के अनुमान के मुताबिक पिछले पांच सालों में बुल्गारिया और रोमानिया से आ रहे आप्रवासियों की संख्या दुगुनी हो गई है. अब उन्हें डर है कि 2014 के बाद हालत और बुरी हो जाएगी. जर्मनी में कई शहरों के प्रशासन तो गरीबी-आप्रवासन की शिकायत कर रहे हैं. डुइसबुर्ग शहर हर साल आप्रवासियों को समाज में शामिल करने पर एक करोड़ 90 लाख यूरो खर्च करता है. इस पैसे से दक्षिण यूरोप से आ रहे आप्रवासियों को मदद मिलती है. लेकिन इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है और कोलोन, डॉर्टमुंड और हनोवर जैसे शहर आप्रवासियों की संख्या को लेकर शिकायत कर रहे हैं.
आर्थिक मंदी से पहले ज्यादातर दक्षिण यूरोपीय लोग स्पेन और इटली जाया करते थे. लेकिन वहां बेरोजगारी बढ़ने के बाद वे जर्मनी का रुख कर रहे हैं. लेकिन जहां जर्मन शहर प्रशासनों को इस बात से परेशानी हो रही है, वहीं न्यूरेम्बर्ग में श्रम बाजार पर शोध कर रहे हर्बर्ट ब्रुकर कहते हैं कि स्पेन और इटली के श्रम बाजार में बुल्गारिया और रोमानिया के लोग आराम से शामिल हो गए हैं और वहां शहर प्रशासन के खाते को बहुत नुकसान भी नहीं हुआ. ब्रुकर कहते हैं कि इन देशों से आने वाले लोगों के पास अच्छी डिग्रियां हैं. इनमें से 35 प्रतिशत लोगों के पास विश्वविद्यालय की डिग्री है. इससे शहर और अर्थव्यवस्था को फायदा होता है.
रिपोर्टः बेर्न्ड रीगर्ट, मार्टिन कोख/एमजी
संपादनः महेश झा