शोषण के मामले में हॉलीवुड से अलग नहीं बॉलीवुड
१३ नवम्बर २०१७भारतीय अभिनेत्री दिव्या उन्नी साल 2015 में जब केरल जा रही थीं, तब उन्हें यही पता था कि वे किसी बिजनेस मीटिंग के लिए जा रही हैं. सोचती भी क्यों नहीं, आखिर बुलाया जो उन्हें एक अवॉर्ड विनिंग डायरेक्टर ने था. अभिनेत्री तो अपने मन में लाखों उम्मीदें पाल कर चल रही थीं लेकिन वहां पहुंच कर उन्हें बड़ा झटका लगा. डायरेक्टर ने उन्हें अपने होटल के कमरे में आने के लिए कहा. कमरे में डायरेक्टर के बदले हाव भाव देखकर एक पल तो अभिनेत्री को भरोसा ही नहीं हुआ कि क्या होने वाला है. वहां डायरेक्टर ने भी बिना समय बर्बाद किये उससे कह दिया कि अगर तुम्हें फिल्म इंडस्ट्री में सफल होना है तो सेक्स सरीखे मामले में तो समझौता करना ही होगा.
उन्नी ने बताया कि उन्होंने डायरेक्टर की यह पेशकश तुरंत ही खारिज कर दी जिसके बाद उन्हें फिल्म में काम नहीं मिला. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में अभिनेत्री ने डायरेक्टर का नाम नहीं बताया इसलिए इस वाकये की पुष्टि नहीं की जा सकी.
क्या है बॉलीवुड का हाल
फिल्म उद्योग से जुड़ी महिलायें उन्नी के इस अनुभव को आम बात मानती हैं. हॉलीवुड के ऑस्कर विजेता डायरेक्टर हार्वे वाइनस्टीन का मामला सामने आने के बाद दुनिया में इस मुद्दे पर जमकर बात हो रही है, लेकिन बॉलीवुड में इस पर कोई बात भी नहीं करता. लिपस्टिक अंडर माय बुर्का जैसी फिल्म का निर्देशन करने वाली अंलकिृता श्रीवास्तव कहती हैं, "इस मामले के बाद जिस तरह से हॉलीवुड में पुरुषों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, मुझे नहीं लगता कि वह कभी भारत में हो पायेगा. पितृसत्तामक समाज का जो मनोविज्ञान है, वह यहां ज्यादा काम करता है."
फिल्म डायरेक्टर मुकेश भट्ट कहते हैं, "इस मामले में आप और हम क्या कर सकते हैं, हम हर वक्त मॉरल पुलिसिंग नहीं कर सकते और न ही कॉप्स को हर दफ्तर के बाहर खड़ा कर सकते हैं और न ही नजर रख सकते हैं कि जो लड़की दफ्तर में घुस रही है उसका कहीं शोषण तो नहीं किया जा रहा."
फिल्म एंड टेलीविजन प्रॉड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष रहे भट्ट कहते हैं कि झूठे आरोपों के प्रति भी फिल्म जगत को सतर्क रहना चाहिये, "साथ ही यह भी नहीं माना जा सकता है कि यहां शोषण पुरुषों का नहीं होता. साथ ही यह भी समझा जाना चाहिये कि आज कि महिलायें भी वैसी नहीं है." उन्होंने कहा जैसे अच्छे आदमी बुरे आदमी होते हैं वैसे ही महिलायें भी होती हैं.
शिकायतों का पुलिंदा
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली फाल्विया अग्नेस कहती हैं कि तमाम कानूनों के बावजूद चंद मामले ही पुलिस तक पहुंच पाते हैं. यहां तक कि दफ्तरों में यौन शोषण जैसी शिकायतों की जांच के लिए कमेटी के भी आदेश हैं लेकिन ऐसा सब दफ्तरों में अब तक नहीं किया गया है. फिल्म जगत से यौन शोषण की खबरें भी कम आती हैं और शायद इसलिए कि फिल्म जगत में कोई सुनने वाला भी नहीं है.
अग्नेस कहती हैं,"बॉलीवुड में कंगना रनौत ही पहली ऐसी बड़ी अभिनेत्री हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से ये माना कि उन्होंने काम की जगहों पर यौन शोषण और उत्पीड़न को झेला है. इसके अलावा लोगों को अपने ऐसे अनुभवों को साझा करने में भी शर्म महसूस होती है." कार्यकर्ता मानते हैं कि पीड़ित को शर्म का भाव महसूस कराना इस समाज में काफी ठोस रूप से जमा हुआ है.
इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन के एक सर्वे के मुताबिक तकरीबन 70 फीसदी भारतीय महिलाओं ने माना कि वे दफ्तर या अपने काम की जगह होने वाले यौन उत्पीड़न या शोषण की शिकायत नहीं करेंगी क्योंकि उन्हें शिकायत तंत्र पर पूरी तरह से भरोसा नहीं है. साथ ही वे पीड़ित होने का कलंक भी नहीं झेलना चाहती.
एए/आईबी (रॉयटर्स)