सत्ता में नहीं रहेंगे करजई अगर...
५ अक्टूबर २०१२बीते महीनों में करजई सरकार की लोकप्रियता लगातार कम हुई है और कयास यह भी लग रहे हैं कि सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति चुनाव का समय सुरक्षा के नाम पर आगे बढ़ाएंगे. 2014 तक नाटो फौजों की वापसी का समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तय किया है और यह चर्चा काफी गर्म है कि पूरे अफगानिस्तान की सुरक्षा का भार संभाल पाने में वहां की सेना सक्षम नहीं है और करजई इसी नाम पर चुनाव टालेंगे. राष्ट्रपति हामिद करजई का कहना है कि ऐसा नहीं होगा. काबुल में एक प्रेस कांफ्रेंस बुला कर उन्होंने कहा, "चुनाव निश्चित रूप से होंगे. जाइए और अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनिए. मेरा दौर अगर एक दिन भी आगे बढ़ा तो वह अवैध होगा."
अफगानिस्तान में पिछले महीने 20 राजनीतिक दलों ने मिल कर "सहयोग परिषद" बनाई है. परिषद ने चेतावनी दी है कि अगर चुनाव टाले गए तो देश में गंभीर संकट पैदा हो जाएगा. विपक्षी पार्टियां भी चिंता जता रही हैं कि चुनाव का समय टालने के लिए राष्ट्रपति संविधान के दायरे से बाहर जा कर भी कदम उठा सकते हैं. करजई ने विदेशी मीडिया पर आरोप लगाया कि अंतरराष्ट्रीय सहायता और सुरक्षा सहयोग जारी रखने का वादा करने के बावजूद नाटो सैनिकों की वापसी को अफगानिस्तान के लिए कयामत का दिन बताने पर जुटी है. करजई ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने देश की छवि के खिलाफ मनोवैज्ञानिक जंग छेड़ रखी है.
हामिद करजई ने अपने कैबिनेट के सहयोगियों को भी खरीखोटी सुनाई है. करजई का कहना है कि कई वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों के परिवार वाले विदेश में रहते हैं और वह अफगानिस्तान की बुराई करते हैं. करजई ने कहा है, "मैंने कई लोगों से कहा है कि वह अपने परिवार को अफगानिस्तान में वापस लाएं क्योंकि यहां जीवन और वातावरण अच्छा और खुशनुमा है. जिन लोगों के परिवार वाले विदेश में हैं और यहां की अस्थिरता के बारे में बोल रहे हैं मैं उन्हें जल्दी ही पद से हटा दूंगा."
विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद वहां की सुरक्षा स्थिति पर जर्मन खुफिया एजेंसियों ने जो अनुमान लगाया है उसके आधार पर जर्मन अखबार श्पीगल का कहना है कि नाटो की वापसी के बाद 35 हजार विदेशी सैनिक देश में स्थिरता के लिए वहां रखे जा सकते हैं. इनमें से ज्यादातर सैनिक अमेरिका के होंगे हालांकि नाटो के करीब 10 हजार सैनिक वहां रहेंगे ऐसा अनुमान है. इनमें विशेष सैन्य बल और सलाहकार भी शामिल हैं.
हाल ही में वर्ल्ड बैंक ने अफगानिस्तान की स्थिति का जायजा लिया और बताया कि देश की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों में मजबूती से बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय सहायता से देश की जीडीपी 2010-11 में 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी. हालांकि इसके साथ ही वर्ल्ड बैंक का यह भी अनुमान है कि विदेशी फौजों की वापसी के बाद विकास की दर आधी घट जाएगी. इसी साल जुलाई में टोक्यो में अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं के सम्मेलन में अफगानिस्तान के लिए अगले चार सालों में 16 अरब डॉलर की सहायता का वादा किया गया. हालांकि इसके साथ ही दान देने वाले देशों ने करजई सरकार से भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की शर्त भी रखी है.
नाटो के लिए तो जंग 2014 में खत्म हो जाएगी लेकिन कुछ जानकार आशंका जता रहे हैं कि इसके बाद पश्चिमी देशों के समर्थन वाली सरकार गिर जाएगी और देश में ऐसा गृह युद्ध छिड़ेगा जो 1990 में सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद छिड़ी जंग से भी बुरा होगा. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप से जुड़े केंडेंस रोन्डॉक्स का कहना है, "मेरे ख्याल में सरकार गिरने से पहले यह बस वक्त की बात है और यह तय है. 2014-15 में काबुल हिंसा और अव्यवस्था में घिरा होगा. 1990 से हम अगर तुलना करें तो जान सकते हैं कि देश में अब ज्यादा हथियार और ज्यादा क्रूरता को बढ़ाने वाले तत्व मौजूद हैं." कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस से जुड़े गिलेस डॉरोनसोरो तो इससे और आगे जा कर तालिबान की सत्ता में वापसी की बात कह रहे हैं. अफगानिस्तान और उसमें दिलचस्पी रखने वालों के मन में यह सवाल लगातार बना हुआ है कि विदेशी फौज के लौटने के बाद का यह एशियाई देश कैसा होगा.
एनआर/एएम (एएफपी, रॉयटर्स)