सभी को है शिक्षा का अधिकार
३० मई २०१२इस साल के शुरू में यूनिवर्सिटी के निजीकरण का विरोध कर रहे स्पेनी छात्रों ने तख्तियों पर लिख रखा था, "हम मानव संसाधन नहीं हैं, हम शिक्षा चाहते हैं." उनकी मांग थी कि सरकार शिक्षा के मानवाधिकार को लागू करे. जर्मन मानवाधिकार संस्थान की क्लाउडिया लोरेनशाइट कहती हैं, "यह सरकारों का काम है कि आर्थिक पृष्ठभूमि से स्वतंत्र सभी लोगों को स्कूल और शिक्षा उपलब्ध कराए." इस तरह सरकार मानवाधिकार घोषणा में किए गए शिक्षा के अधिकार के वादे की गारंटी करेगी.
शिक्षा के मानवाधिकार को लागू करने में सिर्फ पिछड़े देशों को परेशानी नहीं है, बल्कि पश्चिमी औद्योगिक देशों को भी. वित्तीय हलकों के दबाव में हो रहा भूमंडलीकरण, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास संगठन अंकटाड ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है, विश्व भर में परिवर्तन लेकर आया है. जहां सरकार पीछे हट रही है, वहां प्राइवेट या चर्च के पैसे से शिक्षा संस्थान बन रहे हैं.
सरकारी हस्तक्षेप
जर्मनी में यूनेस्को समिति के लुत्स मोएलर भी पिछले सालों में इस तरह का विकास देख रहे हैं. वे कहते हैं, ताकि गैर सरकारी पैसे से दिया जाने वाला प्रोत्साहन गरीब परिवार के बच्चों के लिए भेदभाव न बन जाए, इसलिए अच्छी सरकारी संरचनाओं की जरूरत है, जो समाज में शैक्षिक न्याय देने की हालत में हैं.
यदि शिक्षा के पीछे सिर्फ रोजगार हो तो उसका मानवाधिकार होने का लक्ष्य पूरा नहीं होता. मानवाधिकार कार्यकर्ता क्लाउडिया लोरेनशाइट कहती हैं, "इसके साथ शिक्षा को तकनीकी औजार समझा जाता है जिसकी मदद से लोगों को रोजगार बाजार के लिए फिट किया जाता है. यह ऐसी शिक्षा है जिसमें इंसान के व्यक्तित्व विकास पर ध्यान नहीं दिया जाता." यदि सीखे को इस्तेमाल में न लाया जाए तो इंसान उसे जल्द ही भूल जाता है.
शिक्षा की जरूरत
ब्राजील के शिक्षाशास्त्री पाउलो फ्रायर ने कुछ ऐसा ही 1970 के दशक में साक्षरता अभियान के दौरान देखा था. जब लोग लिखना और पढ़ना सीखते हैं, लेकिन अपनी जिंदगी में उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते तो जल्द ही यह क्षमता खो बैठते हैं. इसलिए लोरेनशाइट कहती हैं, "शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए उसका इस्तेमाल अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कर सकना." ऐसा नहीं होने पर लोग शिक्षा की जरूरत नहीं समझते.
इस तरह की शिक्षा की गारंटी दिलवाना विश्व समुदाय का काम है. और इस सिलसिले में प्रमुख रूप से उन लोगों के शिक्षा का अधिकार देने और उसे बेहतर बनाने की जरूरत है जो गरीबी या भेदभाव का सामना कर रहे हैं और युद्ध या विवाद क्षेत्र में रहते हैं. क्लाउडिया लोरेनशाइट कहती हैं, "कमजोर वर्ग के लिए शिक्षा की संभावनाओं पर ही समाज की सभ्यता और मानवीय प्रगति मापी जाती है."
शिक्षा के अवसर
इसी कारण से काटरीना टोमाशेव्स्की ने शिक्षा के अधिकारों की जरूरत बताई. वे शिक्षा के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट तैयार कर चुकीं हैं. उन्होंने चार सूत्री कार्यक्रम का विकास किया जिसे ए स्कीम कहते हैं - उपलब्धता, पहुंच, अनुकूलन और स्वीकार्यता. यानि शिक्षा का उपलब्ध होना, बच्चों की उस तक पहुंच होना, बच्चों, किशोरों और वयस्कों की जरूरत के हिसाब से उसे ढाला जा सकना और उसे स्वीकार किया जा सकना, मतलब कुल मिला कर मानवाधिकारों के अनुकूल होना.
खासकर पिछड़े इलाकों में शिक्षा तक पहुंच की समस्या है. यदि देहाती इलाकों में स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए सिर्फ एक टॉयलेट हो तो लड़कियां अक्सर स्कूल नहीं जाती हैं. धरती के दक्षिणी हिस्से में यूनेस्को के अनुभव से लुत्स मोएलर बताते हैं कि इसे सांस्कृतिक और सफाई के कारणों से स्वीकार नहीं किया जाता.
शिक्षा का स्तर
शिक्षा के अवसर सुधारने के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनेस्को ने 2000 में सेनेगल की राजधानी डकार में विश्व शिक्षा फोरम का आयोजन किया था. 164 सदस्य देशों ने शिक्षा के छह लक्ष्य तय किए थे. उसमें 2015 तक सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा देने का लक्ष्य भी था. अभी भी प्राइमरी स्कूल जाने की उम्र वाले 7 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जाते. समस्या खासकर दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिणवर्ती अफ्रीका में है. लेकिन प्राइमरी शिक्षा में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले बढ़ी है. लुत्स मोएलर इसे सफलता मानते हैं.
शिक्षा का स्तर यूनेस्को की मुख्य चुनौतियों में शामिल है. दुनिया भर में करीब 20 लाख प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरत है. क्लास में अभी भी बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है. इसके अलावा स्कूलों में किताबों और दूसरी सहायक सामग्रियों की स्थिति बेहतर बनानी होगी. इस पर जोर देते हुए यूनेस्को ने 2011 की अपनी शिक्षा रिपोर्ट में दाता देशों से अपना वादा निभाने की मांग की है. इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा देने की प्रक्रिया को स्थायी बनाने पर भी विचार करना होगा.
शिक्षा का लक्ष्य
विश्व समुदाय में शांतिपूर्ण और भेदभाव रहित जीवन के लिए शिक्षा के मानवाधिकार को लागू करना सभी राष्ट्रों की जिम्मेदारी है. क्लाउडिया लोरेनशाइट इसके लिए वयस्कों को जीवन भर सीखने के लिए प्रोत्साहित करने को भी जरूरी मानती हैं. शिक्षा के मानवाधिकार का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब वह लोगों को आत्मनिर्भर बनाएगा ताकि वे स्वयं सक्रिय हों और अपनी जिंदगी अपने हाथों में लें. लोरेनशाइट कहती हैं, "शिक्षा हर किसी का अधिकार है, व्यक्तित्व का पूरा विकास भी ताकि वे मानवाधिकारों और मौलिक आजादी का सम्मान और उसका महत्व सीख सकें."
रिपोर्ट: उलरीके मास्ट किर्शनिंग/मझा
संपादन: आभा मोंढे