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समाज

समलैंगिकता की सजा भुगती द. अफ्रीकी महिलाएं

४ मार्च २०११

दक्षिण अफ्रीका में बलात्कार एक बड़ी समस्या है, लेकिन अब इस अपराध ने नया रूप ले लिया है. खासकर वहां समलैंगिक महिलाओं को बलात्कार का निशाना बनाया जा रहा है, वह भी एक हद तक समाज की सहमति के साथ.

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दक्षिण अफ्रीका में समलैंगिक शादियों की इजाजत हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

आंकड़ें इतने दुखद हैं कि ऐसे समाज में जीने की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है. दक्षिण अफ्रीका में हर दस मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है. पुलिस के मुताबिक पांच करोड़ की आबादी वाले दक्षिण अफ्रीका में हर दिन 150 महिलाओं के बारे में ऐसी खबर मिलती है.

दक्षिण अफ्रीका के तीस प्रतिशत नाबालिग यह भी बताते हैं कि वे यौन शोषण के शिकार हुए हैं. लेकिन अब एक नए तरह का क्रूर अपराध दक्षिण अफ्रीका में उभर रहा है. वहां महिलाओं का बलात्कार करना इसलिए सही ठहराया जा रहा है क्योंकि वह समलैंगिक हैं. ऐसा करने वालों का कहना है कि इससे समलैंगिक महिलाएं ठीक हो सकती हैं, यानी उनकी चाहत को बदला जा सकता है. महिलाओं की इस क्रूर अपराध की वजह से मौत हो जाए तो भी अपराधियों को कम ही मामलों में सजा दी जाती है.

समलैंगिकता या श्राप

पैम नग्वाबेनी समलैंगिक है और वह एक थियटर प्ले में अपनी कहानी बताती हैं. उनके एक गीत के बोल हैं - आओ और मेरी दुनिया में जो अकेलापन और दर्द है देखो, देखो मेरे दर्द को और मुझे एक रास्ता दिखाओ कि मैं दर्द को महसूस न करूं. वह कहती हैं, "कुछ गुंडे किसी भी वक्त आ सकते हैं और कह सकते हैं कि आज हम तुम्हें बताएंगे कि तुम एक महिला हो. बलात्कार की वजह से एड्स हो सकता है. मेरी एक सहेली है. उसके अपने मामा ने उसके साथ ऐसा किया. महीने भर बाद पता चला कि इससे उसे एचआईवी एड्स का संक्रमण हुआ था और कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई. इस अपराध को करेक्टिव यानी ठीक रने वाला बलात्कार कहा जाता है. इस बीच ऐसे कई मामले सुनने को मिलते हैं जिनमें अपराधी रिश्तेदार या भाई भी हो सकता है."

Flash-Galerie CSD Christopher Street Day 2000 Köln
तस्वीर: AP

पैम अभिनेत्री और थिएटर निर्देशक हैं. वह बतातीं हैं कि उन्हें रात को केप टाउन में घूमने से डर लगता है. कई बार गुंडों ने उनका पीछा किया. जिन महिलाओं के बारे में पता होता है कि वे समलैंगिक हैं, उनके घरों में घुसकर बलात्कार किए जाने की भी खबरें मिलीं. गुंडे गुटों में आते हैं. ऐसे गैंग में अकसर 10 पुरूष होते हैं. इनमें 12-13 साल तक की उम्र के लड़के भी होते हैं और वे मिलकर इस तरह के अपराध करते हैं. अकसर अपराधियों को सजा भी नहीं मिलती हैं क्योंकि ज्यादातर शिकार होने वाली महिलाएं अश्वेत होती हैं.

विरोधाभासों का देश

मोर्गन विलियम्सन ऐसी महिलाओं की मदद करने वाले गैर सरकारी संगठन में कम करती हैं. वह कहती हैं, "हमारे देश में यह मिथक फैल रहा है कि अगर एक समलैंगिक महिला के साथ ऐसा किया जाता है तब वह उसके बाद समान्य हो जाएगी यानी समलैंगिक नही रहेगी. साथ ही गुंडे उसे समलैंगिक होने की सजा भी देना चाहते हैं. वे तय करना चाहते हैं कि महिलाओं को कैसे जीना चाहिए और वह महिलाओं को तोड़ना चाहते हैं. वे यह बर्दाश्त नहीं कर सकते कि समलैंगिक महिलाओं की जिंदगी में पुरुषों की कोई भूमिका नहीं हैं. और इसलिए वह उन पर अपनी शक्ति को जबरदस्ती साबित करना चाहते हैं."

समाजसेवी मोर्गन विलियम्सन कहती हैं कि दक्षिण अफ्रीका विरोधाभासों का देश है. एक तरफ संविधान में समलैंगिक शादियों की भी अनुमति है. अश्वेत और श्वेत लोगों के बीच भेदभाव की भी मनाही है. लेकिन हकीकत कुछ और ही है. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार अब तक 30 समलैंगिक महिलाओं की हत्या की गई, लेकिन अनुमान है कि उनकी संख्या सैकडों में भी हो सकती है.

समाज की सहमति

समाज आर्थिक तरक्की के बावजूद रूढीवादी है और पुरूष प्रधान है. इसलिए भी जिन महिलाओं के साथ ऐसा किया गया है, वे शर्म की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं करती हैं. मोर्गन विलियम्सन कहतीं हैं, "जब एक महिला पुलिस को बताती है कि वह समलैंगिक हैं तो उसका मजाक उड़ाया जाता है और उसे नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है. अकसर पुलिस वाले यह भी कहते हैं कि यह महिलाओं का कसूर है कि उनके साथ ऐसा किया गया है. कभी कभार उन्हें घर भेजा दिया जाता है और केस दर्ज ही नहीं होता. जब महिलाएं समलैंगिक हों और उन्होंने ऐसा कभी किसी को बताया भी न हो, तब भी वे पुलिस में केस नहीं दर्ज करातीं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके बाद अपने ही गांव या समुदाय के बीच कोई उनकी हत्या न कर दे."

CSD Köln 2010

अफसोस की बात यह है कि अकसर माएं भी परिवारों में पुरूषों से कहती हैं कि वे समलैंगिक महिलाओं से बलात्कार करें. जागरूकता और शिक्षा के आभाव की वजह से वे चाहती हैं कि उनकी बेटी सामान्य हो जाएं. उनके लिए समलैंगिकता एक बीमारी की तरह है जिसका इलाज हो सकता है. ऐसे में महिलाएं बिल्कुल ही अलग थलग हो जाती हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह भी एक कारण है जिसके चलते महिलाओं में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबोर्न

संपादनः ए कुमार

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