समुद्र में शोर से मछलियां परेशान
७ दिसम्बर २०११हालांकि समुद्र के गर्भ को सभ्यता से दूर स्वर्गिक शांति का प्रतीक माना जाता है लेकिन पिछले 50 सालों में पानी के अंदर होने वाले शोर में 20 डेसीबल की वृद्धि हुई है. इसका समुद्री जीवन पर भयानक असर हो रहा है. व्हेल और डॉलफिन संरक्षण संस्था के अंतरराष्ट्रीय निदेशक मार्क साइमंड्स कहते हैं, "व्हेल और डॉलफिन जैसे बड़े समुद्री जीव ध्वनि के जरिए संवाद करते हैं. उनके लिए ध्वनि का वही महत्व है जो इंसानों के लिए आंखों का. यदि बहुत शोर होता है तो वे संभवतः उतनी अच्छी तरह संवाद नहीं कर पाएंगे."
ध्वनि से संवाद
समुद्र में ध्वनि की "धुंध" का नुकसानदेह असर यह है कि वह बड़े समुद्री जीवों की क्षमता को कम करता है जो अच्छी परिस्थितियों में रास्ता और खाना खोजने या प्रजनन के लिए दर्जनों मील से एक दूसरे के साथ संवाद कर सकते हैं. लेकिन हाल के एक अध्ययन का कहना है कि शांत जल में धीमी गति से होने वाले नौका परिवहन से डॉलफिन की सुनने की क्षमता 26 प्रतिशत और पाइलट व्हेल के मामले में 58 फीसदी घट जाती है.
समुद्र की देखभाल के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन के निकोलास एंटरुप का कहना है कि बड़े जीवों के लिए समुद्र वह बनता जा रहा है जो मनुष्य के लिए नाइट क्लब है. "आप उसे कुछ समय तक के लिए बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन वहां रह नहीं सकते." वे कहते हैं, "कल्पना कीजिए कि आप अपने परिवार के साथ बात ही न कर सकें, आप को हमेशा चिल्लाकर अपनी बात कहनी पड़े."
नया परिवेश, मुश्किल जीवन
समुद्र बहुत बड़ा है और बढ़ते शोर से परेशान जीव कहीं और जा सकते हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके लिए नए परिवेश में अपने को ढालना आसान नहीं है. खासकर आर्कटिक में स्थिति खास तौर पर जटिल है जहां ध्रुवीय बर्फ गल रहा है और इंसान तेल और गैस की खोज कर बहुत शोर पैदा कर रहे हैं. साइमंड्स कहते हैं, "नरवाल एक बहुत छोटे इलाके में रहते हैं. वे अत्यंत ठंडे परिवेश में ढल गए हैं. यदि वहां शोर बढ़ जाता है तो वे कहां जाएंगे."
यही बात अत्यंत संवेदनशील उजले व्हेल बेलुगा के लिए भी लागू होती है जो कनाडा के उत्तरी तट पर जाते है. ये जीव जहाजों को 30 किलोमीटर दूर से भांपने में सक्षम हैं, लेकिन उन्हें बफीन द्वीप के पास से होकर जाने वाले अपने रास्ते पर रहने में मुश्किल होगी क्योंकि एक बड़ी खनन परियोजना के कारण इलाके में नौवहन बढ़ने का खतरा है. साइमंड्स कहते हैं, "हमें पता नहीं कि कुछ जीव किस तरह अपने को ढालेंगे या वे ऐसा करेंगे भी या नहीं?"
कुछ मामलों में को मानव निर्मित शोर अत्यंत घातक है. संदेह है कि एंटी सबमरीन सोनार के कारण व्हेल बड़ी संख्या में भटक कर तट पर जाने लगे हैं. 2002 में कनारी समुद्र में नाटो के एक सैनिक अभ्यास के बाद 15 व्हेल मछलियां मर गईं. एंटरुप कहते हैं, "चूंकि हम सैनिक मामलों पर बात कर रहे हैं, कोई पारदर्शी सूचना मौजूद नहीं है और हम समस्या के सही आयाम के बारे में बहुत कम जानते हैं."
खनिज की खोज से खतरा
समुद्री जीवों को तेल और गैस की खोज से भी खतरा हो रहा है, जिसमें नीचे छुपे खनिज का पता लगाने के लिए हवा के दबाव से समुद्रतल में कंपन पैदा किया जाता है. अमेरिका के पूर्वोत्तर में कुछ साल पहले चली एक परियोजना ने उस इलाके में रहने वाली व्हेल मछलियों को गूंगा कर दिया था. ऑपरेशन के दौरान संवाद की उनकी क्षमता खत्म हो गई थी.
इसके अलावा समुद्र तट पर बड़े टरबाइन वाले पवनचक्की लगाने से इस पर्यावरण सम्मत टेक्नॉलॉजी से भी खतरे पैदा हो सकते हैं. फ्रेंच शोधकर्मी मिशेल आंद्रे का कहना है, "स्थिति गंभीर है लेकिन हमारे पास कुछ समस्याओं से निबटने की जानकारी और समाधान मौजूद है." वे मोटर बोट का उदाहरण देते हैं और कहते हैं सेना को पता है कि शोर कैसे कम किया जाए.
यूरोप इस मामले में अगुआ है. यूरोपीय संघ जहाजों के शोर और कंपन को कम करने के लिए एक कार्यक्रम को वित्तीय मदद दे रहा है. जहाजों के लिए ग्रीन लेवल तय करने की इस परियोजना में 14 देश शामिल हैं. वह शोर के स्तर को कम करने के लिए एक निर्देश भी जारी करने जा रहा है.
रिपोर्ट: एएफपी/महेश झा
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन