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सहवाग कहीं बलि का बकरा न बन जाएं

१० जनवरी २०१२

लगातार हार से टूटने के कगार पर पहुंच चुकी टीम इंडिया में अब बलि का बकरा तलाशा जा रहा है. ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में जिस तरह वीरेंद्र सहवाग की खबरें आ रही हैं, कहीं खराब प्रदर्शन करने वालों की जगह वीरू की बलि न चढ़ जाए.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

ऑस्ट्रेलिया के बड़े अखबार हेराल्ड सन ने खबर छापी है कि ड्रेसिंग रूम में भारतीय क्रिकेट टीम बंट गई है. एक तरफ धोनी की तरफदारी करने वाले लोग हैं, जबकि दूसरी तरफ कुछ खिलाड़ी वीरेंद्र सहवाग को टीम का कप्तान बनाना चाहते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि वीरू टीम के दूसरी धुरी बनते जा रहे हैं और कई खिलाड़ी उनके समर्थन में आ चुके हैं.

Virender Sehwag Cricketspieler
तस्वीर: AP

लेकिन इस रिपोर्ट में न तो किसी सूत्र का हवाला दिया गया है और न ही यह बताया गया है कि वे कौन से खिलाड़ी हैं, जो वीरेंद्र सहवाग को कप्तान बनाना चाहते हैं. बस इतना लिखा गया है कि धोनी ने सिडनी टेस्ट में संघर्ष करने की जगह समर्पण करने का फैसला किया. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेली जा रही है, जिसमें से पहले दो टेस्ट मैच भारत हार चुका है. दोनों टेस्ट चार चार दिनों में खत्म हो गए हैं. सहवाग ने पहले भारतीय टीम का नेतृत्व किया है और कभी कभी धोनी के साथ उनके बहुत अच्छे रिश्ते नहीं होने की भी खबर आ चुकी है.

अखबार ने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर रेयान हैरिस का हवाला दिया है, जिन्होंने हाल ही में कहा है कि भारतीय खिलाड़ी आपस में लड़ रहे हैं. इसके बाद ऑस्ट्रेलियाई खेमे में इस बात की खुशी है कि दो हार के बाद भारतीय क्रिकेट टीम आपस में उलझ कर रह गई है.

Der indische Cricketspieler Virender Sehwag
तस्वीर: AP

ऐसा आम तौर पर होता है कि हार के बाद किसी भी टीम को सूली पर चढ़ाया जाता है. विदेशी धरती पर लगातार छह टेस्ट मैच हारने और टेस्ट रैंकिंग में दूसरा नंबर भी गंवाने की कगार पर खड़ी भारतीय टीम के लिए भी कुछ ऐसा ही मौका है. मीडिया में उनके खिलाफ खबरें छपना कोई ताज्जुब की बात नहीं. लेकिन ऑस्ट्रेलियाई अखबार ने टीम और ड्रेसिंग रूम में उनके बर्ताव पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं.

रिपोर्ट में लिखा गया है कि इंग्लिश छोड़ कर ड्रेसिंग रूम में छह भाषाएं बोली जाती हैं और खिलाड़ियों में किसी बात को लेकर एकता नहीं है. खिलाड़ियों को टीम इंडिया के लिए खेलने पर ज्यादा फीस नहीं मिलती, बल्कि ज्यादा पैसे विज्ञापन से मिलते हैं और इस वजह से अमीरों और गरीबों का फासला बढ़ रहा है.

भारत के पूर्व कोच ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल का भी जिक्र किया गया है. चैपल ने कभी कहा था कि भारतीय टीम सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के भेद में फंसी है और इस वजह से जूनियर खिलाड़ी अपनी बात नहीं कह पाते हैं. चैपल ने कहा था, "एक बार मैं एक टीम मीटिंग में था, जहां जूनियर खिलाड़ी कुछ नहीं कह रहे थे. जब बाद में मैंने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने कुछ कह दिया तो सीनियर इस बात को पकड़ कर रख लेंगे." हालांकि विदेशी कोचों को भारतीय संस्कृति के साथ मिल कर चलने में भी परेशानी होती है. हो सकता है कि चैपल जिसे सीनियर जूनियर का भेद समझ रहे हों, वह भारतीय तहजीब में छोटे बड़े का लिहाज हो.

इन सब चुनौतियों के बीच भारतीय टीम को फूट से निजात पाते हुए पर्थ में 13 जनवरी से शुरू हो रहे टेस्ट मैच पर ध्यान देना है. और उधर, करियर के आखिरी पड़ाव पर टीम इंडिया के कोच डंकन फ्लेचर को इस टीम को संजो कर आगे बढ़ना होगा.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

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