साधना है सोने पर निशानाः डोला बनर्जी
२४ अगस्त २०१०कोलकाता के भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) परिसर में लगातार अभ्यास में जुटी डोला कहती हैं कि भारत में घरेलू दर्शकों के सामने खलने की वजह से दबाव कुछ बढ़ जाता है. लेकिन इससे बेहतर प्रदर्शन की प्रेरणा भी मिलती है.
अभ्यास के बीच ही डोला विदेशों में विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेती रही हैं. बीते दिनों अमेरिका में विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर लौटी डोला अब शंघाई में 31 अगस्त से होने वाली विश्व स्टेज फॉर चैंपियनशिप में शिरकत करने की तैयारी कर रही हैं. वह कहती हैं कि इन प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन से कॉमनवेल्थ खेलों में बेहतर प्रदर्शन के लिए मनोबल बढ़ेगा.
पश्चिम बंगाल और खासकर कोलकाता को फुटबॉल का मक्का कहा जाता है. सौरव गांगुली के भारतीय टीम में शामिल होने के बाद लोगों में क्रिकेट के प्रति भी लगाव बढ़ा. लेकिन ऐसे में, आखिर महानगर के बरानगर इलाके की एक युवती ने बचपन में ही पुरुषों का खेल कही जाने वाली तीरंदाजी में कदम कैसे रखा. डोला बताती हैं, "यह एक संयोग ही था. मेरे पिता बचपन में मुझे सैर के लिए बरानगर क्लब के मैदान में ले जाते थे. वहां तीरंदाजी का प्रशिक्षण होता था. उसी समय कई लोगों ने कहा कि आप इस बच्ची को तीरंदाजी क्यों नहीं सिखाते. मेरी मां पहले बहुत डरती थी. उसे इस बात की आशंका सताती थी कि कहीं आंख में तीर लग गया तो क्या होगा. लेकिन धीरे-धीरे उनका डर दूर हो गया."
डोला बताती हैं कि पहले तो लोगों को पता ही नहीं था कि तीरंदाजी भी कोई खेल है. खेलों के नाम पर तो लोगों के जेहन में यहां फुटबॉल और क्रिकेट का नाम ही उभरता है. लेकिन 1907 में जब उन्होंने दुबई में विश्व चैंपियनशिप जीती तो इस खेल को कोलकाता में कुछ पहचान मिली. अब तो दो-दो बार ओलंपिक और कई विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के बाद लोग डोला को पहचानने लगे हैं और उनके खेल को भी.
डोला दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों में सोना जीत कर देश और अपने राज्य का नाम रोशन करना चाहती है. वह चाहती है कि इस खेल को और सरकारी सहायता मिले ताकि ज्यादा से ज्यादा युवतियां तीरंदाजी के क्षेत्र में आगे आ सकें.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए कुमार