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सीबीआई कांड से भारतीय सर्वरों पर सवाल

५ दिसम्बर २०१०

भारत में सीबीआई की वेबसाइट हैक किए जाने के बाद भारत के सर्वरों पर सवाल उठ गए हैं. क्या सर्वरों को सुरक्षा देने वाली संस्था नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर का सुरक्षा जाल इतना कमजोर है कि इसे आसानी से तोड़ा जा सकता है.

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तस्वीर: dpa

नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) ने इस मुद्दे पर खामोशी बनाए रखने का फैसला किया है लेकिन सूत्रों का कहना है कि एनआईसी का सुरक्षा तंत्र भेद दिए जाने लायक है और इस बारे में पहले भी नोटिस आ चुका है कि उन्हें अपने जाल को अपडेट करने की जरूरत है.

तीन और चार दिसंबर की रात को "पाकिस्तान साइबर आर्मी" ने सीबीआई की वेबसाइट हैक कर ली तो जांच एजेंसी का दम फूल गया. बाद में शनिवार को अनजान लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया गया है.

इस साल के शुरू में कनाडा के एक थिंक टैंक ने अंदेशा जताया था कि भारत के सरकारी प्रतिष्ठानों की वेबसाइट पर साइबर हमले का खतरा है. उनका कहना था कि तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के कंप्यूटर को भी खतरा हो सकता है. कनाडा के एक फर्म ने जांच में पाया कि चीनी हैकरों ने दलाई लामा के कंप्यूटर और एनआईसी के कम से कम 12 कंप्यूटरों को भेदने की कोशिश की.

इस दौरान गोपनीय आंकड़े बाहर आ गए. राजनयिकों की बात सामने आ गई. दो दस्तावेज सामने आए, जिन पर "गुप्त" लिखा था. "सीमित" लिखे हुए छह दस्तावेजों तक भी पहुंच बना ली गई और पांच फाइलें तक ऐसी निकाल ली गईं, जिनमें "गोपनीय" लिखा था. हालांकि कनाडा की इस कंपनी का कहना है कि वे पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि इन दस्तावेजों को भारतीय सुरक्षित कंप्यूटर से ही उड़ाया गया है और हो सकता है कि इन्हें किसी कंप्यूटर में कॉपी किया गया हो और वहां से ये हाथ लग गए हों.

इसका दावा है कि दलाई लामा ने जनवरी से नवंबर 2009 तक जो 1500 चिट्ठियां भेजी हैं, उनकी प्रतियां भी प्राप्त कर ली गईं. जिस तरह के दस्तावेज उड़ाए गए, उससे पता लगता है कि हैकर किस तरह काम कर रहे थे.

एनआईसी के सूत्रों का कहना है कि थिंक टैंकों के अलावा कई दूसरे स्तर पर भी अंदेशा जताया गया था कि भारत के कुछ मंत्रालयों पर भी पाकिस्तान या चीन से साइबर हमले का अंदेशा बना हुआ है. एजेंसियों ने मंत्रालय के लोगों को चेतावनी दी है कि उन्हें अपने कंप्यूटरों या लैप टॉप को किसी दूसरे इंटरनेट प्रोवाइडर के साथ नहीं जोड़ना चाहिए.

खास तौर पर चीन के कंप्यूटर हैकरों के आतंक को देखते हुए रक्षा, विदेश, गृह और प्रधानमंत्री कार्यालय मंत्रालयों को सलाह दी गई है कि वे अपने सरकारी कंप्यूटरों को इंटरनेट से न जोड़ें.

लेकिन शायद इस बात पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई और इसे सिर्फ एक सलाह मान कर छोड़ दिया गया. हाल में हैकरों की बढ़ती गतिविधियों के बाद मंत्रालय में लोगों को निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं. अति महत्वपूर्ण वेबसाइटों की जांच के बाद नेशनल टेक्निकल एंड रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने मंत्रालय के अधिकारियों को मल्टीटास्किंग वाले ब्लैकबेरी फोन से परहेज करने को कहा है.

प्रधानमंत्री कार्यालय के कई लोग भी ऐसे फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस साल के शुरू में जांच के दौरान पता लगा था कि प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ अधिकारियों ने अपने आधिकारिक ईमेल को ब्लैकबेरी से लिंक कर दिया है, जिसकी कतई इजाजत नहीं है.

विदेश मंत्रालय के कंप्यूटरों और विदेशों में भारतीय मिशन के कंप्यूटरों को सुरक्षा जांच और वाइरस चेक की वजह से कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. भारत के गृह मंत्रालय के पास अलग सर्वर है और हाल में इंटरनेट सुविधा नहीं होने तक इस पर हमले की कोई कोशिश नहीं की गई थी. सभी कंप्यूटरों का औचक निरीक्षण किया जाता है.

कनाडा के थिंक टैंक का कहना है कि चीन के गुप्त चेंग्दू प्रांत में दो निजी हैकरों पर शक किया जा सकता है. इनकी कारस्तानी ऐसी है कि वे घोस्टनेट सिस्टम से ऐसे ट्रोजन वाइरस को डाउनलोड करने पर बाध्य कर देते हैं, जिसे घोस्टरैट कहा जाता है और अगर यह कंप्यूटर में आ गया तो दूसरा व्यक्ति कंप्यूटर की हर गतिविधि पर साथ के साथ नजर रख सकता है. यहां तक कि माइक्रोफोन और वेबकैम पर भी दूसरे शख्स का नियंत्रण हो सकता है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ए जमाल

संपादन: एस गौड़

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