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सौरव का गौरव रसातल में

९ जनवरी २०११

काश क्रिकेट का खेल सिर्फ क्रिकेट से जुड़ा होता. सिर्फ ग्राउंड पर चलने वाले बल्ले गेंद से क्रिकेट के सारे फैसले हो जाया करते. ऐसा होता तो सौरव गांगुली की मुंहमांगी बोली लगती. लेकिन क्रिकेट सिर्फ ग्राउंड पर नहीं होता है.

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तस्वीर: AP

सौरव गांगुली को नहीं खरीदा जाना भी उनके क्रिकेट से जुड़ा नहीं है. बल्कि उन तमाम विवादों से जुड़ा है, जो उन्हें एक खतरनाक संपत्ति बनाता है. सिर्फ पैसे कमाने के लिए खेले जाने वाले आईपीएल में प्रतिष्ठा और सम्मान की जगह नहीं होती. पैसा होता है. मालिक शुद्ध रूप से बिजनेस कर रहे होते हैं और उन्हें पता होता है कि कहां पैसा लगाने से क्या होगा.

कुछ दिनों पहले जब कोलकाता की टीम ने सौरव गांगुली को बेच देने का फैसला किया, तब पहला विस्फोट हुआ. दूसरा तब हुआ, जब सौरव की बेस प्राइस दूसरे वरिष्ठ खिलाड़ियों से काफी कम दो लाख डॉलर रखी गई. और सौरव ने अपनी बेस प्राइस बढ़ा कर अपने ही दरवाजे पर ताला ठोंक दिया. आईपीएल की नई टीम सहारा पुणे ने एक बार जिक्र किया था कि वह सौरव को साथ रखना चाहती है लेकिन इधर दादा ने दाम बढ़ाया, उधर सहारा छूटा.

जिद्दी और मुंहफट सौरव ने अपनी जिद से टीम इंडिया को ऐसी जगह ला खड़ा किया, जहां से आज वह दुनिया की सबसे ताकतवर टीम समझी जाने लगी है. लेकिन खुद सौरव के लिए यह जिद बहुत महंगी साबित हुई. अनुशासनहीनता की वजह से उन्हें कभी जुर्माना, तो कभी मैचों की पाबंदी झेलनी पड़ती. अगर आईपीएल का इतिहास भी देखें तो सौरव के साथ ऐसा ही हुआ है.

Shah Rukh Khan Kolkata Knight Riders
दादा बिना 'करबो लड़बो जीतबो रे'तस्वीर: UNI

तीन साल पहले कोलकाता नाइट राइडर्स में तीन स्तंभ हुआ करते थे. मालिक शाहरुख खान, कोच जॉन बुकानन और कप्तान सौरव गांगुली. टीम के फैसले तीनों मिल कर किया करते थे. लेकिन आईपीएल 1 में टीम की ऐसी दुर्गति हुई कि कोच बुकानन और कप्तान गांगुली में छत्तीस का आंकड़ा बन गया. बुकानन ने आईपीएल के अंदर वैसा ही काम किया, जैसा कभी ग्रेग चैपल ने टीम इंडिया में दादा के साथ किया था.

आईपीएल 2 में सौरव से कप्तानी छीन ली गई. इस फैसले के पीछे सौरव के खेल का कुछ लेना देना नहीं था. पर शायद यह गांगुली का कद ही था कि पिछले साल कप्तान के तौर पर उनकी वापसी हुई और उन्होंने अपनी टीम के लिए सबसे ज्यादा रन भी बनाए.

जहां तक खेल का सवाल है, सौरव गांगुली सिर्फ अच्छे क्रिकेटर नहीं, बल्कि करिश्माई खिलाड़ी हैं. गेंदबाज के तौर पर करियर की शुरुआत करने दादा इतने खूंखार ओपनर बन कर छा गए कि आईसीसी ने जब सर्वकालिक महान टीम बनाने की योजना बनाई, तो उसमें भी गांगुली को नजरअंदाज नहीं किया जा सका. अभी भी वह दिन याद है, जब सौरव गांगुली को कप्तान रहते भारतीय क्रिकेट टीम से हटा दिया गया और सौरव ने इसके बाद किसी बल्लेबाज के रूप में नहीं, बल्कि गेंदबाज के रूप में टीम इंडिया में वापसी की.

Indian Premier League Südafrika
आईपीएल खत्म!तस्वीर: AP

यह उनकी जिद और लगन है, जो उन्हें ग्राउंड में बार बार कामयाब करता है. लेकिन यह उनका स्वभाव और किस्मत है, जो उन्हें मैदान तक पहुंचने ही नहीं देता.

एक मुश्किल यह भी है कि आईपीएल में किसी भी खिलाड़ी को तीन साल के लिए खरीदा जाता है, एक साल के लिए नहीं. एक साल बाद उसे ट्रांसफर के लिए बाजार में उतारा जा सकता है लेकिन अगर ट्रांसफर नहीं हुआ, तो उसे टीम का हिस्सा बने रहना होगा. शायद सौरव गांगुली को लेकर कोई भी टीम यह जोखिम नहीं उठाना चाहती.

लेकिन नफे नुकसान से दूर, कोलकाता और बंगाल की जनता की भी तो कोई पूछे. क्रिकेट तो उनके लिए भी खेला जा रहा है. कोलकाता ने भले ही गंभीर और यूसुफ पठान जैसे सितारे भर लिए हों लेकिन टाइगर के बगैर क्या बंगाल के किसी व्यक्ति की टीम पूरी होती है. दादा से बेइम्तिहां प्यार करने वाले लोग उन्हें क्रिकेटर तो क्या, एक टीवी होस्ट के रूप में भी देखने को बेकरार रहते हैं. यह सौरव का करिश्मा ही है कि उनकी मेजबानी में चल रहा एक टेलीविजन धारावाहिक जबरदस्त लोकप्रिय हुआ है.

भले ही इस बार आईपीएल की 10 टीमों ने सौरव से किनारा कर लिया हो, लेकिन लोगों का गुस्सा तो शाहरुख पर ही टूटेगा. वह तो उन्हें ही जिम्मेदार मानेंगे कि आखिर शाहरुख ने दादा को जाने ही क्यों दिया.

क्या कोलकाता सौरव के बगैर रह पाएगा. क्या शाहरुख कोलकाता की जनता से उस तरह दो चार हो पाएंगे, जैसा वो आज तक होते आए हैं. थोड़ी थोड़ी बानगी तो अभी से दिख रही है. इंटरनेट पर सौरव गांगुली से जुड़ी किसी भी खबर पर जाइए और देखिए वहां बंगाल के लोगों ने शाहरुख के बारे में क्या राय रखी है.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ओ सिंह

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