स्टाफ की भारी कमी से परेशान जर्मनी के रेस्तरां और होटल
२१ जुलाई २०२३स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बीच जर्मनी में यह समय लोगों के घूमने फिरने का होता है. कई सालों के बाद इस साल कोरोना की पाबंदियां नहीं होने की वजह से लोग खूब बाहर निकल रहे हैं लेकिन उनकी खातिर करने में होटलों को काफी दिक्कत हो रही है. होटल संघ के मुताबिक यह कारोबारियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है जो पिछले कुछ समय से लगातार बनी हुई है.
भारतीयों को परिवार सहित वीजा देना आसान करेगा जर्मनी
भारी संख्या में स्टाफ की कमी
जर्मनी के संघीय रोजगार एजेंसी के मुताबिक यहां के होटल उद्योग में 33,100 खाली पदों की सूचना दर्ज कराई गई है. हालांकि होटल यूनियन संघ देहोगा की श्रम बाजार विशेषज्ञ सांड्रा वार्डेन का कहना है, "हम मान के चल रहे हैं कि वास्तविक संख्या इससे कम से कम दोगुनी ज्यादा है क्योंकि बहुत से होटल अपने खाली पदों की जानकारी जॉब सेंटर को नहीं देते हैं."
वार्डेन ने ध्यान दिलाया कि जून 2019 में खाली पदों की संख्या 40,000 दर्ज कराई गई थी. उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि समस्या उसके बाद से बहुत ज्यादा बढ़ी है." वार्डेन ने यह भी कहा, "खासतौर से फिलहाल छुट्टियों का मौसम है जिसमें घूमने फिरने वाले ठिकानों पर मांग वैसे ही बहुत बढ़ जाती है."
जर्मनी में विदेशी कामगारों का आना आसान करने वाला प्रस्ताव पास
ऐसे हाल में होटल उद्योग किसी तरह अपना काम चलाने की कोशिश कर रहा है. वार्डेन ने बताया, "कुछ कारोबारों को अपने खुलने के घंटे कम करने पड़े हैं, कुछ दिनों में इन्हें बंद रखा जा रहा है या फिर मेन्यू में शामिल चीजों पर ध्यान दिया जा रहा है." कुछ रेस्तरां टेबल सर्विस की बजाय सेल्फ सर्विस पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.
आप्रवासन नीति में सुधार
वार्डेन का कहना है कि देहोगा के सदस्यों को उम्मीद है कि उद्योग जगत को हाल ही में जारी हुए आप्रवासन नीतियों में सुधार से फायदा होगा. इसके साथ ही शरणार्थियों में से कुछ लोगों को काम पर रख कर स्थिति को संभाला जायेगा. संघ के मुताबिक अलग अलग कामों के लिए ट्रेनिंग पर जोर देने के साथ ही व्यवहारिक पेशे और हुनर पर ध्यान देना होगा.
जर्मनी में कुल मिला कर कुशल कामगारों की भारी कमी है. कई उद्योंगों को इसकी वजह से मुश्किल झेलनी पड़ी है. कोराना के दौर में काम घटने की वजह से कई जगहों पर बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी गई अब उन्हीं क्षेत्रों में जल्दी से लोगों को वापस लाना भी मुश्किल साबित हो रहा है. वीजा की प्रक्रिया में भी समय लगता है और भाषा समेत कई और दिक्कतें भी हैं. इन्हीं सब को देखते हुए जर्मनी ने अपनी आप्रवासन नीति में सुधार की योजना बनाई है.
एनआर/एसबी (डीपीए)