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स्टेडियम झमाझम पर खिलाड़ी कम

१ अगस्त २०११

चीन में खेल का मौका होता तो बेहतरीन और शानदार स्टेडियम दुनिया के सामने पेश हो जाते हैं. लेकिन खेल के बाद ये बेकार हो जाते हैं. तैराकी चैंपियनशिप में भी ऐसे ही शानदार स्टेडियम दिख रहे हैं पर पता नहीं कल यहां क्या होगा.

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तस्वीर: Fars

शंघाई शहर में ह्वांगपू नदी के किनारे बेहतरीन स्टेडियम में विश्व तैराकी चैंपियनशिप चल रही है लेकिन खेल प्रेमियों को इस बात का डर है कि यहां का स्टेडियम भी उन इमारतों में न शामिल हो जाए, जो सिर्फ नाम के खेल केंद्र हैं. ग्रेटर लंदन से करीब तीनगुना आबादी वाले शहर शंघाई के पास ही फॉर्मूला वन का ट्रैक भी है, जो साल भर वीरान पड़ा रहता है और एक बार यहां रफ्तार की बाजी लगती है.

पास में ही क्वी झूंग टेनिस स्टेडियम भी है, जहां साल में एक बार एटीपी का मुकाबला होता है और बाकी के वक्त यहां की कुर्सियों पर धूल जमती रहती है. कभी कभार टेनिस का कोई प्रेमी यहां पहुंच कर रैकेट भांज लेता है लेकिन अच्छे स्तर पर इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है.

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तस्वीर: AP

ओलंपिक के बाद क्या

और दूर क्यों जाएं, राजधानी पेइचिंग के बर्ड्स नेस्ट स्टेडियम पर ही नजर डालें. तीन साल पहले ओलंपिक के मौके पर चीन ने इस स्टेडियम के दर्शन करा कर पूरी दुनिया को सन्न कर दिया था. एक भव्य खेल आयोजन के लिए किसी महल की तरह तैयार यह स्टेडियम पश्चिम के उन देशों को मुंह चिढ़ा रहा था, जिन्होंने चीन के ओलंपिक आयोजन पर सवाल खड़े किए थे. लेकिन तीन साल बाद यह जगह खेल के लिए कम ही जाना जाता है. दर्शक यहां जरूर पहुंचते हैं लेकिन सिर्फ साज सज्जा के कौतूहल के साथ. यहां कई तरह के खेल के साधन हैं, इस्तेमाल में कोई नहीं. हालांकि ओलंपिक खेलों के दौरान चीन ने न सिर्फ अपने आयोजन की क्षमता का प्रदर्शन किया था, बल्कि खुद भी खेल का बादशाह बन कर उभरा था.

इसी तरह से अब ओरिएंटल स्पोर्ट्स सेंटर के बारे में सवाल उठ रहे हैं. यहां शानदार डाइविंग पूल बना है और 18,000 दर्शकों के बैठने की जगह है. एक विशालकाय प्रशासनिक विभाग भी है. शंघाई के अधिकारियों का कहना है कि वर्ल्ड तैराकी चैंपियनशिप खत्म होने के बाद इसे जनता के लिए खोल दिया जाएगा और यहां लोग तैरने का मजा भी ले सकेंगे. उन्होंने बताया कि अगले साल यहां शॉर्ट ट्रैक स्पीड स्केटिंग चैंपियनशिप होगी. सिर्फ एक प्रतियोगिता.

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तस्वीर: AP

सिर्फ दिखावे पर जोर

शंघाई के खेल प्रशासन प्रमुख ली यूयी ने बताया, "इस चैंपियनशिप के पूरा होने के बाद इस स्टेडियम को जनता के लिए खोल दिया जाएगा. इस साल के आखिर तक यहां के लोग वैसे खेलों का मजा उठा सकेंगे, जो आम तौर पर सिर्फ उत्तर चीन के लोग ही खेल पाते थे."

देश के अलग अलग शहरों में विशालकाय स्टेडियमों के बनने के बावजूद चीन में ज्यादा ध्यान बास्केटबॉल और भ्रष्टाचार में लिप्त फुटबॉल लीग पर ही दिया जाता है. इस वजह से दूसरे खेलों पर कम ही ध्यान दिया जा सका है.

पिछले साल दुनिया ने अचानक ग्वांगझू शहर का नाम सुना. हांग कांग के पास इस शहर में एशियाई खेलों के लिए कीमती स्टेडियम तैयार किए गए और यहां तक कि एक क्रिकेट स्टेडियम भी बनाया गया. एशियाई खेलों में 2010 में पहली बार क्रिकेट को भी शामिल किया गया. हालांकि तकनीकी कारणों से भारत ने इस मुकाबले में हिस्सा नहीं लिया.

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तस्वीर: dapd

भ्रष्टाचार की नींव पर खेल की इमारतें

लंदन के राजनयिक और चीनी मामलों के जानकार केरी ब्राउन का कहना है कि इस तरह के निर्माण कार्य से भ्रष्टाचार में लिप्त देश के बारे में और शक पैदा होता है. उनका कहना है, "मुझे लगता है कि अगर हम यह सोचें कि ऐसा नहीं होता है, तो हम बहुत भोले हैं. भ्रष्टाचार का मामला हमेशा बना रहता है. खास तौर पर इस तरह के खेल आयोजनों में क्योंकि ये बहुत बड़े होते हैं और लोगों को पता होता है कि उन्हें इससे अच्छी कमाई हो सकती है."

उनका कहना है कि मुश्किल यह है कि कुछ हजार डॉलर कमाने वाले कुछ अधिकारी अरबों रुपये के प्रोजेक्ट के बारे में फैसला करते हैं और यहीं से सारी मुश्किलें शुरू होती हैं. उन्होंने बताया कि किस तरह फॉर्मूला वन ट्रैक बुरी तरह से भ्रष्टाचार के जाल में फंस गया और इसकी वजह से कुछ अधिकारियों को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी. चीन इस बात को मान चुका है कि उसके किसी भी स्टेडियम से उसे मुनाफा नहीं हुआ है.

उनका कहना है कि अब छोटे प्रांतों में भी बड़े स्टेडियम बनाने का चलन चल पड़ा है. चांगकिंग, कुनमिंग और झियान जैसे शहर बड़े मुकाबले आयोजित करने में खुद को सक्षम मान रहे हैं. उनका कहना है, "केंद्र सरकार को ऐसे प्रस्ताव अच्छे लगते हैं. पेइचिंग शहर पिछले 60 साल में पूरी तरह से बदल चुका है. वे स्टेडियम भी इस बदलाव की वजह हैं."

ब्राउन का कहना है कि चीन के इस बदलाव को 1980 के पेरिस के बदलाव से तुलना कर सकते हैं. उस वक्त वहां बन रही इमारतें बेहद विवादित थीं लेकिन बाद में वह शहर की धरोहर बन गईं. लेकिन उनका भी मानना है कि इन विशालकाय स्टेडियमों का ज्यादा इस्तेमाल होता नहीं दिख रहा है. ये सिर्फ रईसी दिखाने के औजार भर बन कर रह गए हैं. उनका कहना है, "अगर आप ओलंपिक के स्टेडियमों में जाएं, तो वे अभी से खंडहर की तरह लगने लगे हैं."

रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल

संपादनः आमिर अंसारी

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