स्पेन को वर्ल्ड चैंपियन देखना चाहते हैं आनंद
७ जुलाई २०१०विश्वनाथन आनंद स्पेन को अपना दूसरा घर भी कहते हैं क्योंकि वह स्पेन में महीनों रहना पसंद करते हैं. शतरंज के वर्ल्ड चैंपियन आनंद स्पेन को फुटबॉल का वर्ल्ड चैंपियन बनते देखना चाहते हैं. "मैं स्पेन के खेल को करीब से देख रहा हूं. मुझे उनके खेलने की शैली पंसद है."
वैसे आनंद अर्जेंटीना के भी प्रशंसक हैं और जर्मनी के हाथों उसकी हार से पहले वह उसका भी समर्थन कर रहे थे. आनंद लियोनेल मैसी को बेहद पसंद करते हैं. लेकिन अब तो उनका सारा समर्थन स्पेन को है.
"स्पेन मौजूदा यूरोपीय चैंपियन है और मुझे लगता है कि वर्ल्ड चैंपियन बनना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा." छह साल की उम्र से शतरंज को अपना करियर बनाने वाले आनंद ने पहला राष्ट्रीय खिताब 1983-84 में जीता और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा.
आनंद का संयम, समर्पण और लगन युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणादायी है और आनंद मानते हैं कि प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए जरूरी है कि आप उनके सामने शांत नजर आएं.
"मैं शांत रहने की कोशिश करता हूं, अंदर से मैं शांत रहता हूं या नहीं यह दूसरी बात है. मैच में शांत दिखना या रहना आसान नहीं है. दूसरे खिलाड़ी की बॉडी लैंग्वेज पर भी ध्यान देना जरूरी है ताकि यह पता चल सके कि वह कौन सी चाल चलने की कोशिश कर रहा है. इससे बड़ी मदद मिलती है." विश्वनाथन आनंद ने बुल्गारिया के वेसेलीन टोपालोव को मैराथन मुकाबले में हराकर कर लगातार तीसरी बार वर्ल्ड चैंपियन का खिताब हासिल किया.
शतरंज की दुनिया में आनंद वह मुकाम हासिल कर चुके हैं जो और कोई खिलाड़ी, यहां तक की गैरी कास्पारोव भी नहीं कर पाए. आनंद का कहना है कि इस साल वह पांच या छह टूर्नामेंट में हिस्सा लेंगे. भारत में शतरंज की स्थिति पर आनंद का कहना है कि यूथ ब्रिगेड बढ़िया प्रदर्शन कर रही है और किसी एक को सर्वश्रेष्ठ कह पाना आसान नहीं है.
"हमारे पास कई बेहतरीन खिलाड़ी हैं. लड़कियों में कोनेरू हम्पी, द्रोणावली हरिका, तानिया सचदेव जबकि लड़कों में अभिजीत गुप्ता, परिमार्जन नेगी और कई दूसरे खिलाड़ी. सभी बेहद प्रतिभाशाली हैं." आनंद एक लेखक भी हैं और उनकी पहली किताब माय बेस्ट गेम्स ऑफ चैस 1998 में प्रकाशित हुई थी. अब आनंद फिर से दूसरी किताब लिखने की सोच रहे हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ एस गौड़
संपादनः एन रंजन