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स्वर्ग से आया था हत्यारा परमाणु बम

गेरो श्लीस६ अगस्त २०१५

मैनहटन प्रोजेक्ट चंद्र अभियान जैसा महंगा था. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वहां 125,000 लोग काम कर रहे थे ताकि वे जर्मनों से पहले परमाणु बम बना सकें. किसी के मन में कोई संदेह नहीं था.

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तस्वीर: Imago/United Archives International

किसी को पता नहीं कि रोबर्ट ओपेनहाइमर कितनी बार सांता फे के रास्ते लॉस अलामोस गए हैं. वह न्यू मेक्सिको के सबसे खूबसूरत रास्तों में एक है और ओपेनहाइमर का मानना था कि वह वैज्ञानिकों को प्रेरणा देगा. नीले आसमां के नीचे आप पहाड़ी चोटियों के बीच से गुजरते हैं और बार बार घाटियों में रोमांचक नजारा दिखता है.

मेधावी वैज्ञानिक

लॉस अलामोस स्वर्ग जैसा है और साथ ही पहले जनसंहारक हथियार के विकास की जगह भी. इस खूबसूरत जगह पर रोबर्ट ओपेनहाइमर मैनहटन प्रोजेक्ट चला रहे थे जिसकी मदद से अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट हिटलर जर्मनी के खिलाफ पहला परमाणु बम बनाने की प्रतियोगिता जीतना चाहते थे. वहां की इतिहास म्यूजियम की डाइरेक्टर हीदर मैकक्लेनाहन बताती हैं कि भौतिकशास्त्री ओपेनहाइमर ने इस सैन्य प्रोजेक्ट के लिए मेधावी वैज्ञानिकों का जखीरा यहां जमा किया.

उनमें एनरिको फेर्मी, नील्स बोर और हंस बेदे जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता भी थे. अंत में यहां 6000 वैज्ञानिक और उनके परिवार के लोग रहते थे. पूरे देश में फैली प्रयोगशालाओं में सवा लाख से ज्यादा लोग मैनहटन प्रोजेक्ट के लिए काम करते थे. लॉस एलामोस के प्रसिद्ध रैंट स्कूल की मुख्य इमारत से उनपर नियंत्रण होता था. स्कूल को 1943 में इस काम के लिए खाली करा दिया गया था.चूंकि इस प्रोजेक्ट का विचार न्यूयॉर्क के मैनहटन में तैयार हुआ था, इसे मैनहटन प्रोजेक्ट का नाम मिला.

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लॉस अलामोस में रैंच स्कूलतस्वीर: DW/G. Schließ

सबसे महंगा प्रोजेक्ट

मैनहटन प्रोजेक्ट अमेरिकी सरकार की प्राथमिकता थी. संसाधनों की कोई कमी नहीं थी. 1940 में 6000 डॉलर के बजट से शुरू हुआ प्रोजेक्ट पांच साल बाद 2 अरब डॉलर का हो गया. हीदर मैकक्लेनाहन कहती हैं, "चंद्रमा पर उतरने वाले प्रोजेक्ट के बाद सबसे महंगा प्रोजेक्ट." इस प्रोजेक्ट के अलावा लॉस अलामोस का एक और काम था. वह इस प्रोजेक्ट का कारखाना था. चुनौती थी कि यूरेनियम संवर्धन और प्लूटोनियम पर उपलब्ध जानकारियों की मदद से काम करने लायक हथियार बनाना. एक साथ यूरेनियम और प्लूटोनियम बम बनाने पर काम चल रहा था.

16 जुलाई 1945 को वह घड़ी आ गई. इस दिन परमाणु बम का परीक्षण होना था. इसके लिए प्लूटोनियम बम का चुनाव किया गया. परीक्षण स्थल 200 किलोमीटर दूर व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज में था. इसके लिए 60 लोगों को अपनी जमीनें अमेरिकी सेना को देनी पड़ी थी. ग्राउंड जीरो तक पहुंचने में 45 मिनट लगते हैं. इस जगह को साल में एक बार खोला जाता है. जहां बम फूटा था वहां आज उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता एक पत्थर है. सेना की पीआरओ लीजा ब्लेविन कहती हैं कि रेडियोएक्टिव किरणों का अनुपात अभी भी सामान्य से दस गुणा है.

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ओपेनहाइमर और जनरल ग्रोव्सतस्वीर: Getty Images/Keystone

कामयाबी पर ताज्जुब

विस्फोट से पैदा गड्ढा नहीं दिखता. चारों ओर लगे बाड़े में धमाके की तस्वीरें लगी हैं. इसे ओपनहाइमर और प्रोजेक्ट इंचार्ड जनरल लेस्ली ग्रोव्स ने सुरक्षित दूरी से देखा था. उस समय प्रत्यक्षदर्शियों ने परमाणु धमाके से पैदा हुए गुबार की सुंदरता और धमाके की चमक की तारीफ की थी. आज इस जगह को देखने आया भौतिकी का 23 वर्षीय छात्र कोडी समर्स कहता है, "यह बस धमाके का गड्ढा है. उससे ज्यादा कुछ नहीं, लेकिन इसे देखना कूल था." जर्मनी से आया छात्र मैक्स कहता है कि उसे परमाणु बम पसंद नहीं. अच्छा होता यदि वह नहीं बनाया गया होता.

टेस्ट धमाके के सिर्फ एक महीने बाद अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराया. इसके विकास में शामिल रहे बहुत से वैज्ञानिकों को इसके बारे में रेडियो से पता चला और वे आश्चर्यचकित थे. कुछ लोगों को तो अंत तक संदेह था कि बम काम करेगा. प्रयोगशाला के माहौल के बारे में विलियम हजेंस कहते हैं कि लोगों ने राहत की सांस ली थी लेकिन कोई पार्टी नहीं हुई थी, "हमें उसके बाद पार्टी करने का मन नहीं था जिसमें इतने सारे लोग मारे गए थे." लेकिन वे बहुते से वैज्ञानिकों की राय में एकमत हैं कि युद्ध की अवधि छोटी कर उसने लाखों दूसरे लोगों की जान बचाई. रोबर्ट ओपनहाइमर ने बाद में राषट्रपति ट्रूमैन को कहा बताते हैं कि उनके हाथों पर खून लगे हैं. इस अपराधबोध से वे जीवन के अंत तक मुक्त नहीं हो पाए.