स्वात में शरीया के फ़ैसले पर चिंता
१७ फ़रवरी २००९ख़ूबसूरत वादियों और पहाड़ों के बीच बसी स्वात घाटी इन दिनों चरमपंथी तालिबान की पनाहगाह बनी हुई है. इलाक़े में शरीया यानी इस्लामी क़ानून पर समझौते के बाद पाकिस्तान ने तालिबान के साथ हाथ मिलाने की कोशिश की है ताकि यहां हिंसा पर क़ाबू पाया जा सके. लेकिन पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत रिचर्ड हॉलब्रुक इसे एक ख़तरा मानते हैं. भारत दौरे पर पहुंचे हॉलब्रुक ने कहा कि स्वात में जो कुछ हो रहा है, उससे भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए एक बड़ी मुश्किल सामने आई है.
स्वात में शरीया लगाए जाने पर भारत ने आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन समझा जाता है कि वह इससे ख़ासा चिंतित है. ऊंची पहाड़ियों, ख़ूबसूरत घाटियों और सुंदर स्वात नदी किनारे बसी यह घाटी 1969 तक अलग रियासत थी. बाद में इसे पाकिस्तान के सूबाई सरहद यानी एनडब्ल्यूएफ़पी में मिला लिया गया. 1990 से यहां अलगाव के नाम पर हिंसा हो रही है, जो हाल के सालों में परवान चढ़ गई. इसे तालिबान का गढ़ समझा जाता है. पिछले साल से यहां लगातार अफ़ग़ानिस्तान में तैनात संदिग्ध अमेरिकी मिसाइल हमले भी हो रहे हैं. अलग अलग मुश्किलें झेल रही पाकिस्तान सरकार ने बीच बचाव का रास्ता निकाला है और शरीया क़ानून लागू करने पर रज़ामंदी जता दी है.
समझौते से ठीक पहले तालिबान ने यहां एकतरफ़ा संघर्ष विराम का भी एलान किया था. जानकारों की राय है कि अपनी बात मनवाने के लिए ही यह क़दम उठाया गया. पाकिस्तान की सूचना मंत्री शेरी रहमान का कहना है कि अदालत की एक नई बेंच पेशावर में बनाई जाएगी और इलाक़े के लोगों को तेज़ी से इंसाफ़ मिल पाएगा. लेकिन देखना है कि दुनिया भर के देश इस बारे में क्या राय रखते हैं.