हिटलर की खोपड़ी फिर बनी पहेली
५ अक्टूबर २००९एक ऐसी खोपड़ी को इस समय मीडिया में काफ़ी उछाला जा रहा है जिस के पिछले हिस्से में गोली लगने की वज़ह से छेद है. रूसी अधिकारियों का दावा था कि यह खोपड़ी जर्मनी के तानाशाह आडोल्फ हिटलर की है.
नए शोध के बाद सामने आया है कि बरसों तक लोग जिस खोपड़ी को हिटलर की खोपड़ी मान रहे थे वो दरअसल हिटलर की नहीं बल्कि किसी महिला की हो सकती है. यह कपाल बर्लिन के उस बंकर से मिला था जहां हिटलर ने-- और अंतिम क्षण में उसकी पत्नी बनी प्रेमिका एफ़ा ब्राउन ने-- एक साथ आत्महत्या की थी.
दोनों ने अप्रैल 1945 में आत्महत्या इसलिए की थी, क्योंकि जर्मनी दूसरा विश्व युद्ध हार गया था, सोवियत रूस के सैनिक बर्लिन में पहुँच गये थे और किसी भी क्षण हिटलर के बंकर में पहुँच कर उसे धर-दबोचते. आत्महत्या के एक ही सप्ताह बाद जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था.
ऐसे में हिटलर रूसी सैनिकों के हाथों बंदी बन कर अपनी नाक कटवाने या मारे जाने से बचना चाहता था. यह भी कहा जाता है कि आत्महत्या के बाद हिटलर के अंतिम सेवकों ने उस के शरीर को जला देने की कोशिश की थी. समझा जाता है कि सोवियत सैनिकों को जो कुछ मिला, प्रमाण के तौर पर वे उसे लेते गये.
इस खोपड़ी को सन 2000 से मास्को स्थित सोवियत राजकीय अभिलेखागार में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए लिए रखा गया था. इस संग्रहालय में खून के धब्बे से रंजित वह सोफा भी है जिस पर बैठकर हिटलर ने पहले साइनाइड की गोली खाई और बाद में गोली मार कर आत्महत्या की थी.
ऐसे हुआ खुलासा
अमेरिका में कनैटिकट विशवविद्दालय के वैज्ञानिक हिस्ट्री चैनल के लिए हिटलर की मौत पर एक डॉक्युमेंट्री फिल्म बना रहे थे. इसके लिए विश्वविद्दलय के पुरातत्वविदों को रूस के संग्रहालय में रखी हिटलर की खोपड़ी के साथ-साथ सोफ़े पर के रक्त के धब्बों की जांच करने को भी कहा गया. खोपड़ी के एक छोटे टुकड़े और रक्त की प्रारंभिक फोरेंसिक जांच से बात सामने आई कि ये नमूने हिटलर की शारीरिक संरचना से मेल नहीं खाते.
इस जांच में शामिल पुरातत्वविद निक बेलानटोनी ने बताया कि इस खोपड़ी की हड्डी बहुत पतली और छोटी लग रही है. "सामान्य तौर पर देखें तो किसी पुरूष की खोपड़ी चौड़ी और मज़बूत होती है, खासकर जर्मन पुरूषों की तो यह अनुवांशिक विशेषता होती है. मुझे इस खोपड़ी को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह किसी औरत या कम उम्र के किसी पुरूष की हो." बेलानटोनी ने इस खोपड़ी के टुकड़े से लिये गये छोटे कणों और रक्त के धब्बों के विश्लेषण के लिए उन्हें कनैटिकट विश्वविद्दलय के पुरातत्वविदों के पास भेजा.
इस जांच के लिए आणविक और कोषिका जीवविज्ञान की प्रोफेसर लिंडा स्ट्राउसबॉग़ ने न्यूयार्क शहर के चिकित्सा परीक्षक के दो पुराने छात्रों की मदद ली जो पहले वहां काम कर चुके थे. उन्हों ने बताया कि ये दोनों छात्र -- क्रेग ओ'कॉनर और हीथर नेल्सन -- डी. एन. ए. के नमूनों की जांच में माहिर हैं.
दोनों ने हड्डी के टुकड़े से डी एन ए नमूने निकालकर उनकी फोरेंसिक जांच की. उन्होंने पाया कि ये डी. एन. ए. 20 से 40 साल की किसी महिला के हैं. संभव है कि यह कपाल एफ़ा ब्राउन का हो. मृत्यु के समय उसकी आयु 33 साल थी. लेकिन यह जानते हुए कि इसे साबित करने के लिए प्रयोगशाला को एफ़ा ब्राउन के भी डी. एन. ए. के नमूनों की ज़रूरत होगी, स्ट्राउसबॉग़ ने सफाई देते हुए कहा कि डी. एन. ए. के ये नमूने बहुत विकृत हैं, जिस की वजह से पूरी तरह प्रमाणिक पहचान करना मुश्किल है.
इतिहास में कहीं भी एफ़ा ब्राउन के खुद अपने सिर पर गोली मार कर आत्महत्या करने की कोई चर्चा नहीं है. ऐसा माना जाता है कि उसकी मृत्यु साइनाइड की गोली खाने से हुई थी.
स्ट्राउसबॉग़ के अनुसार यह कपाल जिस व्यक्ति का है, गोली लगने की वज़ह से उसके सिर के पीछे छेद बन गया है. संभव है गोली सामने की ओर से आ कर उसके चेहरे, मुंह या ठुड्डी से हो कर पीछे से निकली हो. हालांकि खून के दाग़ की जांच में यह पाया गया कि दाग़ किसी पुरूष का हो सकता है. "यहां भी डी. एन. ए. के नमूनों में विकृति है और हमारे पास इसकी पूरी जांच से संबंधित मार्कर रेंज नहीं हैं जो कि इस तरह के परीक्षण के लिए जरूरी होते हैं", लिंडा स्ट्राउसबॉग़ कहती हैं.
रूसी अधिकारियों के अनुसार हिटलर और एफ़ा ब्राउन की म़ौत के तुरंत बाद ही उनके शरीरों को बंकर के बाहर एक गड्ढे से निकाल लिया गया था.
हिटलर के शव परीक्षण में उसके शरीर से कपाल का हिस्सा कथित रूप से ग़ायब पाया गया था. जब एक सोवियत टीम 1946 में बंकर में दुबारा गई तब उसे वहां यह कपाल मिला, जिसकी जांच अब कनैटिकट विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कर रहे थे.
रूसी अधिकारियों के अनुसार पूर्वी जर्मनी के माग्डेबुर्ग शहर में सोवियत सेना के परेड मैदान में हिटलर के शरीर को दफ़ना दिया गया था और बाद में 1970 में उस जगह को खोदकर बचे अवशेषों को जलाकर शहर की सीवर प्रणाली की नालियों में बहा दिया गया.
स्ट्राउसबर्ग और बेलानटोनी, दोनो का कहना है कि हालांकि अभी तक इस बात को चुनौती देने के पक्के सब़ूत नहीं मिले हैं कि हिटलर की म़ौत बंकर में ही हुई थी, तब भी ऐसा लगता है कि हिटलर ने बंकर में आत्महत्या की थी और संभव है कि हमें खून के जो दाग मिले हैं वो उसी के हैं. बस, सवाल यह है कि यदि यह कपाल हिटलर का नहीं है तो फिर किसका है? वहां आखिर क्या हुआ था जो आज सबके सामने पहेली बना हुआ है?
हिटलर के साथ क्या हुआ, यह भले ही पहेली लगे, हिटलर ने क्या किया, वह कोई पहेली नहीं है. उसने द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू किया जिसने 60 लाख यहूदियों, दो करोड़ जर्मन नागरिकों और लाखों-करोड़ों अन्य देशवासियों की बलि ली. जर्मनी बुरी तरह हारा, विभाजित हो गया और 40 साल तक अपने एकीकरण के लिए तरसता रहा. इन तथ्यों के आगे इस बात का कोई महत्व नहीं है कि एक अकेले हिटलर के साथ क्या हुआ? य़ा फिर मॉस्को में रखी खोपड़ी उसी की है या किसी और की?
रिर्पोट: एजेंसी/सरिता झा
संपादन: राम यादव