अंतरिक्ष में छिपा है समंदर का राज
२५ अक्टूबर २०११शोधकर्ता सामान्य तौर पर इस बात से सहमत हैं कि दुनिया के सागरों में 1.3 अरब क्यूबिक किलोमीटर पानी है. इसमें अगर कई हजार गुना ज्यादा पानी वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष में मिला है और वह भी सिर्फ 175 प्रकाश वर्ष दूर. एक प्रकाश वर्ष एक हजार अरब किलोमीटर के बराबर होता है.
यह पानी टीडब्ल्यू हाइड्रे (TW Hydrae) नाम के तारे के पास है. खगोलशास्त्रियों का मानना है कि सिर्फ यही तारा नहीं है जिसके आस पास इतना पानी है.
नीदरलैंड्स में लाइडन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली टीम को उम्मीद है कि अगले दो साल में तीन और पानी से भरी हुई डिस्क मिलेंगी.
दूरबीन से देखा
शुक्रवार को साइंस पत्रिका में प्रकाशित पेपर में वैज्ञानिकों ने बताया है कि कैसे उन्होंने हर्षल दूरबीन से अंतरिक्ष में पानी का पता चला. इसमें बहुत संवेदनशील परा बैंगनी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. इसके जरिए टी डब्ल्यू हाइड्रे नाम के तारे के पास ठंडे पानी की भाप देखी गई. पानी की भाप से पता चलता है कि वहां पानी भी मौजूद है जिसे धरती के सारे सागर भरे जा सकते हैं.
डॉयचे वेले से बातचीत के दौरान इस रिपोर्ट को लिखने में शामिल खगोल विज्ञान के प्रोफेसर कार्स्टन डोमिनिक ने बताया, "जब आप पानी में बर्फ देखते हैं तो आप उसका बहुत छोटा हिस्सा देखते हैं. यही अंतरिक्ष में भी होता है. पानी के भंडार घूमती हुई प्रोटो प्लानेटरी डिस्क में काफी नीचे होते हैं."
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह पानी बर्फीले धूमकेतू बनाते हैं जो नई दुनियाओं में जा गिरते हैं और अपने साथ इतना पानी लाते हैं कि ये समंदर बना सकते हैं. और इस दौरान वह तारा उस प्रणाली का सौर मंडल बन जाता है.
सवाल अभी भी हैं
शोधकर्ताओं की इस टीम के सामने कई सवाल हैं. लाइडन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एविने फान डिशोएक और जर्मनी के गार्चिंग में एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल फिजिक्स के लिए माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ने दो सवाल उठाए हैं. "हमारे शरीर और समंदर में पानी आया कहां से और वे धरती जैसे किसी ग्रह पर कैसे पहुंचा?" एविने फान डिशोएक ने डॉयचे वेले से बातचीत के दौरान बताया, "हम जानते हैं कि यह घूमते हुए डिस्क गैस और धूल से बने हैं और एक सवाल जो हमेशा से था वह ये कि इन डिस्कों का पानी कैसा पानी है."
बादलों में धूल के कण तट पर रेत की ही तरह होते हैं लेकिन उनसे करीब 10 हजार गुना छोटे. और ये छोटे छोटे कण मिल कर बड़े होते जाते हैं और उनसे एक पूरा ग्रह बना जाता है.
लेकिन इन डिस्कों में सिर्फ धूल नहीं होती. इनमें पानी के भी अणु होते हैं. ये कण तारे से जितने दूर होते जाते हैं उतने ही ठंडे होते हैं.
कहां से आया पानी
फान डिशोएक ने बताया कि वैज्ञानिकों को तारे के केंद्र के आस पास गरम पानी के भी प्रमाण मिले हैं. लेकिन पानी ही सिर्फ नए सौर मंडल का निर्माण नहीं कर सकता. हेटेरोडिन इंस्ट्रूमेंट फॉर फार इन्फ्रारेड यानी हिफी नाम के उपकरण के कारण वह तारों के नजदीक इस ठंडे पानी की भाप को देख सके. फान डिशोएक ने बर्फीले पानी के बारे में कहा, "यह नए ग्रहों के लिए माहौल बनाने जैसा है. इनमें धरती जैसे ग्रहों से लेकर वॉटर वर्ल्ड या फिर बृहस्पति जैसे ग्रह."
टीम ने इस खोज के लिए हिफी उपकरण को श्रेय दिया है. टीम के सदस्य डोमिनिक ने बताया, "हम देख सकते हैं कि कुछ अणु इधर उधर घूम रहे हैं और रेडिएशन का उत्सर्जन कर रहे हैं. अचानक वे एक दूसरे से टकरा जाते हैं और चिपक जाते हैं. अगर ज्यादा टक्कर होती है तो और बर्फीले धूमकेतू बनते हैं."
धरती पर समन्दर के निर्माण के बारे में एक थ्योरी यह भी कहती है कि इस तरह के पानी भरे धूमकेतुओं के कारण ही धरती और नए ग्रहों पर समन्दर का निर्माण होता है. कुछ खगोलविज्ञानियों का मानना है कि इन धूमकेतूओं के कारण धरती पर पानी के भंडार बने हैं.
डोमिनिक कहते हैं, "बहुत संभव है कि धरती पर आया पानी बर्फ के रूप में आया. लेकिन सवाल यह है कि यह कहां का है." उनका कहना है कि दोनों तरह की संभावनाएं हैं. क्षुद्रग्रह और बर्फीले धूमकेतू, दोनों से ही पानी आया हो सकता है.
रिपोर्टः अमांडा प्राइस, आभा मोंढे
संपादनः ए कुमार