अपने नाम बदल रही हैं सैकड़ों लड़कियां
२१ अक्टूबर २०११ऐसी 200 से ज्यादा लड़कियां हैं जिनका नाम है नकुसा. मराठी में नकुसा का मतलब है अनचाही. यानी जिसकी किसी को चाह नहीं. यह नाम उन्हें उनके माता पिता ने ही दिया है. महाराष्ट्र के सतारा जिले की इन लड़कियों में से लगभग 150 अपना नाम बदल रही हैं. इसके लिए बाकायदा एक अभियान शुरू किया गया है. इस अभियान को चलाने वाले जिला स्वास्थ्य अधिकारी भगवान पवार बताते हैं, "हमने 222 नाकुसा ढूंढी हैं. ये नाम रखे जाने के पीछे मुझे तो यही वजह समझ आती है कि ये लड़कियां अपने घर में दूसरा, तीसरा या चौथा बच्चा थीं जबकि उनके माता पिता लड़के चाहते थे."
बोझ है नाम
लेकिन नाम रखे जाने का बहुत असर पड़ता है. पवार कहते हैं, "हमें जो लड़कियां मिली हैं, उन्हें अपना नाम पसंद नहीं. उन्हें अपना नाम बुरा लगता है. इसलिए इसका मानसिक असर बहुत गहरा है."
नाम बदलने के इस अभियान के तहत लड़कियों को जिला कलेक्टर के दस्तखत वाला एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इसके आधार पर स्कूल और बाकी सरकारी दफ्तरों के सारे रिकॉर्ड भी बदले जाएंगे.
यह सिर्फ महाराष्ट्र की कहानी नहीं है. हरियाणा पंजाब में भी लड़कियों के ऐसे नाम मिल जाएंगे. भतेरी या बोहती (यानी बस बहुत, और नहीं चाहिए) उत्तर भारत में अक्सर सुनने को मिल जाते हैं. और ये नाम ज्यादातर गरीब परिवारों की लड़कियों के मिलते हैं जहां लड़की का होना एक बोझ है. हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ गरीब ही लड़की नहीं चाहते. पंजाब, हरियाणा और दिल्ली को आर्थिक रूप से मजबूत माना जाता है और लड़कियों की तादाद यहां पूरे देश में सबसे कम है.
भारत में गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच कराना अवैध है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग कन्या भ्रूण की हत्या कर देते हैं ताकि लड़की पैदा ही न हो. हाल ही में द लान्सेट नाम के मेडिकल जर्नल में छपी एक रिसर्च के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 5 लाख भ्रूण हत्याएं होती हैं. इसी साल अप्रैल में पटना में 15 कन्या भ्रूण एक कचरे के ढेर में पड़े मिले.
कहीं कुछ गड़बड़ है
मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के सतारा में एक हजार लड़कों पर 881 लड़कियां हैं. राष्ट्रीय औसत 914 से काफी कम. राष्ट्रीय औसत भी लगातार घट रहा है. 1947 में जब देश गरीब था, तब से यह अब तक का सबसे खराब औसत है. अंतरराष्ट्रीय औसत 952 है. वैज्ञानिक कहते हैं कि कुदरती तौर पर यह अनुपात 943 से 962 के बीच होता है. और जनसंख्या विशेषज्ञ कहते हैं कि इस अनुपात में थोड़ा बहुत भी ऊपर नीचे होना बताता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है.
महाराष्ट्र में सेव गर्ल चाइल्ड नाम से एक संस्था चलाने वालीं सुधा कांकरिया भी नाम बदलने की इस परियोजना से जुड़ी हैं. वह कहती हैं कि सतारा की नकुसा लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव का सच जाहिर करती हैं. वह कहती हैं कि अपने नाम की वजह से ये लड़कियां शर्मसार होती हैं और इन्हें भेदभाव झेलना पड़ता है. और फिर यही भावना अगली पीढ़ी तक चली जाती है. कांकरिया कहती हैं, "यह एक कुचक्र है और हमें इसे तोड़ना होगा. नाम बदलने के अपने इस अभियान के जरिए दो लोगों को फायदा होगा, नकुसाओं को और भविष्य की नकुसाओं को."
कांकरिया तो इस कोशिश में हैं कि हिंदू शादियों में ही एक तरह की रस्म शामिल हो जाए जहां दूल्हा दुल्हन लड़की पैदा होने पर खुशी मनाने की कसम खाएं.
कांकरिया बताती हैं कि पिछले कुछ हफ्तों के दौरान काफी लड़कियों ने अपने नाम बदल भी लिए हैं. उनमें से एक ने अपना नाम सुनीता रखा है और दूसरी ने ऐश्वर्या. आठ साल की ऐश्वर्या कहती हैं, "मैंने अपना नाम नहीं चुना, लेकिन यह अच्छा है. लेकिन मेरे दोस्त अब भी मुझे नकुसा कहते हैं क्योंकि उन्हें इसकी आदत पड़ी हुई है. पर जब भी कोई मुझे नकुसा कहता है तो मैं उसे ठीक कर देती हूं."
रिपोर्टः एएफपी/वी कुमार
संपादनः ए कुमार