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अफगानिस्तान की जनता के लिए घातक रहा 2011

४ फ़रवरी २०१२

2001 से चल रहे अफगान युद्ध में 2011 में सबसे ज्यादा आम लोग मारे गए हैं. शनिवार को संयुक्त राष्ट्र ने रिपोर्ट के जरिए यह जानकारी आई. इस खुलासे से अफगान सरकार और पश्चिमी साझेदारों के बीच एक बार फिर अनबन पैदा हो सकती है.

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तस्वीर: DW

जब आम लोग रणक्षेत्र में गोलियों की बौछारों का निशाना बनते हैं, तो आम तौर पर अफगानिस्तान में ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी जनता दस साल से चल रही कार्रवाई के खिलाफ होती दिखती है. जनता की मौत पहले भी अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई और अमेरिका की अगुवाई में अतंरराष्ट्रीय सैन्य दल आईसैफ के बीच मतभेद की वजह बनी है.

हमलों में हताहत आम लोग

अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहयोग मिशन यूनामा के मुताबिक बम हमलों में इस साल सबसे ज्यादा अफगान बच्चे, महिलाएं और पुरुषों की मौत हुई है. 2011 में करजई सरकार और आईसैफ के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों के हमलों में 2,332 आम लोग मारे गए. 2010 से यह संख्या 14 फीसदी ज्यादा है. विद्रोहियों पर हमला कर रहे सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 410 आम लोग मारे गए हैं. पिछले साल से यह आंकड़ा चार प्रतिशत कम है. साथ ही, इस साल 967 लोगों ने बारूदी सुरंगों की वजह से अपनी जान गवाईं. पिछले साल अफगानिस्तान में 3,021 आम लोग मारे गए. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि आम लोगों पर हमलों के पीछे तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का हाथ लगता है.

Afghanistan Konferenz Hamid Karzai
आम नागरिकों की मौत से करजई नाराजतस्वीर: dapd

हालांकि पिछले साल नवंबर में तालिबान नेता मुल्लाह उमर ने अपने लड़ाकों से आम लोगों पर हमला रोकने की बात कही. लेकिन कुछ ही दिनों बाद एक आत्मघाती हमलावर ने एक मस्जिद के बाहर खुद को उड़ा दिया. कई लोग मारे गए. यूनामा का कहना है कि आतंकवादी गुट अब पहले से ज्यादा आम लोगों पर हमला कर रहे हैं. लेकिन साथ ही, नाटो के हवाई हमलों ने भी लोगों की जानें ली हैं. 187 लोग इसमें मारे गए हैं. 2007 से लेकर 2011 के अंत तक 12,000 आम लोगों की इस युद्ध में बलि चढ़ी है.

तालिबान से बातचीतः एक अफवाह?

इस बीच, अफगान तालिबान और अमेरिका सहित नाटो देशों के बीच बातचीत को लेकर भी कोई निश्चितता नहीं दिख रही. तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने संदेश को लेकर अफवाहों को "आरोप" करार दिया है. एक ईमेल में मुजाहिद ने लिखा, "इस्लामी अमीरात अफगानिस्तान की सरकार इन सारी अफवाहों और आरोपों का खंडन करता है." तालिबान शासन के दौरान अफगानिस्तान को इस्लामी अमीरात के तौर पर जाना जाता था. मुजाहिद के मुताबिक, इन रिपोर्टों से देश के नागरिक असमंजस में पड़ गए हैं.

समाचार एजेंसी एपी ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से बताया है कि मुल्लाह उमर से पिछले साल जुलाई में मिले संदेश में कोई हस्ताक्षर नहीं था. तालिबान के एक मध्यस्थ ने इसे व्हाइट हाउस तक पहुंचाया था. हालांकि इससे पहले कई अधिकारियों का मानना था कि यह संदेश वाकई तालिबान से आया है. ओबामा सरकार का कहना है कि उसने संदेश का सीधे तौर पर जवाब नहीं दिया है लेकिन इसके बाद उमर के आदमियों से उनका संपर्क पहले से आसान हो गया है.

Taliban in Bamiyan Afghanistan
तालिबान के इरादों पर शंकातस्वीर: AP

तालिबान से दोस्ती?

अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि संदेश में लिखी गई बातें तालिबान और अमेरिकी प्रतिनिधियों के बीच हुई गुप्त बातचीत से मिलती हैं. अब अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत सार्वजनिक हो गई है. उमर की तरफ से एक संदेश का मतलब है कि तालिबान के वरिष्ठ सदस्य भी अमेरिका के साथ सुलह करने में दिलचस्पी ले रहे हैं. हालांकि अमेरिकी सरकार अब भी तालिबान के असली मकसद को लेकर चिंतित है.

मुल्लाह उमर तालिबान का धार्मिक नेता है और उसकी रणनीति तय करता है. 2001 में अमेरिकी हमले से पहले वह अफगानिस्तान के तालिबान शासन का प्रमुख था. ओबामा सरकार इस बीच ग्वांतानामो से पांच तालिबान कैदियों को रिहा करने की सोच रही है. इन्हें कतर भेजा जाएगा जहां तालिबान पश्चिमी देशों से बातचीत के लिए अपना दफ्तर खोल रहा है.

रिपोर्टः एपी, रॉयटर्स/एमजी

संपादनः ओ सिंह

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