कतर में तालिबान का दफ्तर और अफगानिस्तान की शांति
६ जनवरी २०१२अमेरिका सालों से तालिबान के साथ बातचीत से बचता आया है. लेकिन जबसे नाटो सेनाओं की अफगानिस्तान से वापसी की बात शुरू हुई है तब से अमेरिका को यह बात समझ आ गई है कि अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए तालिबान के साथ शांति वार्ता बेहद जरूरी है. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जो बिडेन ने पिछले महीने कहा, "तालिबान अपने आप में हमारे दुश्मन नहीं हैं."
वहीं अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की तालिबान से बातचीत की कोशिशें लम्बे समय से विफल रही हैं. करजई चाहते रहे कि तालिबान बातचीत के लिए अफगानिस्तान में दफ्तर खोले. लेकिन 2010 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकना पड़ा और अफगानिस्तान के बाहर तालिबान के दफ्तर की बात पर सहमत होना पड़ा.
शांतिवार्ता की दिशा में पहला कदम
तालिबान ने अफगान सरकार का प्रस्ताव मानते हुए अफगानिस्तान के बाहर कतर में दफ्तर खोलने का एलान किया है. पर साथ ही यह भी सुना दिया कि देश में उनकी मौजूदगी बरकरार है, "हम विदेश में अपना राजनैतिक कार्यालय खोलने के लिए सहमत जरूर हो गए हैं, लेकिन देश में अब भी हमारी मौजूदगी बनी हुई है."
इसे शांतिवार्ता की दिशा में एक छोटा सा कदम ही माना जा सकता है. तालिबान ने इस बात पर जोर दिया है कि वह अब भी अपनी मांगों पर कायम है और वार्ता तभी सफल होगी जब सभी विदेशी सैनिक देश छोड़ कर चले जाएंगे. एक बयान में तालिबान ने कहा है, "हम भले ही कतर में अपना दफ्तर खोल रहे हैं, लेकिन हम देश में सैन्य कार्रवाई को नहीं रोकेंगे."
समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह लड़ाई का अंत नहीं है और "धर्म की यह लड़ाई" आगे भी चलती रहेगी. इसके अलावा तालिबान की यह भी मांग है कि अमेरिका द्वारा ग्वांतानामो बे में कैद किए गए उनके साथियों को रिहा किया जाए.
आतंकवाद अब भी जारी
अफगानिस्तान में हो रहे हमले दिखाते हैं कि तालिबान कतर में दफ्तर खोलने के बाद भी देश में सक्रिय है और हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. मंगलवार को कंधार में रॉकेट से हमला किया गया. एक पुलिस अधिकारी के अनुसार इस हमले में कम से कम बारह लोगों की जान गई और करीब तीस जख्मी हुए. इसके आलावा शहर में हुए एक आत्मघाती हमले में चार बच्चों और एक पुलिसकर्मी की जान गई.
इन हमलों को देखते हुए अमेरिका ने कहा है कि शांतिवार्ता तभी मुमकिन है जब तालिबान हमले करना बंद कर दे. खास तौर से नागरिकों के खिलाफ हिंसा को लेकर अमेरिका तालिबान से काफी नाराज है. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जो बिडेन ने एक इंटरव्यू में स्पष्ट तौर पर कहा कि तालिबान को अल कायदा से संबंध खत्म करने होंगे.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी इस पर शर्तें रखी हैं. तालिबान को बातचीत से पहले खुद को आतंकवाद से अलग करना होगा और अफगानिस्तान के संविधान का पालन करना होगा तथा मानवाधिकारों का सम्मान करना होगा. दिसंबर में जर्मनी के बॉन शहर में हुई अफगानिस्तान कॉन्फरेंस में इन बातों पर चर्चा की गई.
अफगानिस्तान की प्रतिक्रिया
अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जनन मुसजई ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि अफगानिस्तान तालिबान द्वारा राजनैतिक कार्यालय खोले जाने के कदम का स्वागत करता है, "यह शांति प्रक्रिया की दिशा में एक बेहद व्यावहारिक कदम है." पर साथ ही उन्होंने शांति प्रक्रिया में "विदेशियों के हस्तक्षेप" के खिलाफ चेतावनी भी दी है.
वहीं अफगानिस्तान के लोगों में इसे ले कर मिली जुली प्रतिक्रियाएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि अगर तालिबान के लिए देश की राजनीति के दरवाजे खोल दिए गए तो इस से मानवाधिकारों का हनन हो सकता है. काबुल में रहने वाली एक महिला ने इस बारे में कहा, "केवल एक राजनैतिक कार्यालय खोलने से कोई हल नहीं निकल जाएगा. आप तालिबान के नेताओं को नहीं जानते." दूसरी ओर कुछ लोग देश में बह रहे खून को देख इतना थक चुके हैं कि शांति के हर प्रयास का स्वागत कर रहे हैं. एक अन्य निवासी ने कहा, "राजनैतिक कार्यालय के होने से यह फायदा मिलेगा कि अफगान सरकार को पता होगा कि अपने प्रस्ताव कहां भेजने हैं. अब तक तो उनका कोई सही ठिकाना ही नहीं था."
रिपोर्ट: रोडियोन एबिगहाउजन/ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा