'अफगानिस्तान में आतंकवाद जीत सकता है'
२४ जनवरी २०१२तालिबान के साथ अमेरिका की बातचीत पर प्रतिक्रिया देते हुए वॉशिंगटन में तैनात भारत की राजदूत निरुपमा राव ने कहा, "हम इस बात पर सहमत हैं कि इसका एक राजनीतिक समधान होना चाहिए. हम यही भी मानते हैं इसे हर कीमत पर जरूरत से ज्यादा बड़ा उद्देश्य नहीं बनाया जाना चाहिए. इसकी वजह से इलाके को लंबे अर्से से अपनी चपेट में लेने वाली आतंकवादी काली ताकतों और धार्मिक कट्टरवाद पर विजय जोखिम में पड़ जाएगी."
दरअसल बीते हफ्ते अमेरिका के दूत मार्क ग्रोसमान अफगानिस्तान गए. वहां ग्रोसमान ने अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात की और शांति प्रयासों का दृढ़ता से समर्थन किया. खबरें हैं कि तालिबान कतर में एक दफ्तर खोलने जा रहा है. कतर से दफ्तर के जरिए ही तालिबान अमेरिका से बातचीत करेगा. ग्रोसमान अफगानिस्तान के बाद भारत भी गए. हालांकि अमेरिकी दूत ने पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि पहले अमेरिका पाकिस्तान से अपने संबंधों की समीक्षा करेगा.
तालिबान से बातचीत
अमेरिका का कहना है कि बातचीत से पहले तालिबान को हिंसा बंद करनी होगी और अल कायदा से संबंध तोड़ने होंगे. 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों की फौजें अफगानिस्तान में घुसी. अमेरिका और अन्य देशों ने अफगानिस्तान में अल कायदा को निशाना बनाया. लेकिन पश्चिमी देशों को इस जंग की भारी कीमत चुकानी पड़ी. बड़ी संख्या में सैनिक भी मारे गए और भी खजाना खाली हुआ.
अफगानिस्तान में हालात अब भी जोखिम से भरे हुए हैं. बीते छह महीनों में आतंकवादी हमलों में तेजी आई है. देश के प्रभावशाली लोगों के साथ साथ विदेशी फौजियों पर ही हमले बढ़े हैं. अमेरिका को उम्मीद थी कि वह अफगानिस्तान में आतंकवाद को जड़ से मिटाने के बाद फौज को वापस बुला लेगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. आर्थिक मंदी, युद्ध के खर्चे और सैनिकों की मौत की वजह से अमेरिका को सब कुछ शांत होने से पहले अपनी फौज 2014 में अफगानिस्तान से वापस बुलानी पड़ रही है.
फौज की वापसी के बाद अफगानिस्तान में हालात शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए अब तालिबान से बातचीत की कोशिश की जा रही है.
भारत की चिंता
तालिबान और भारत के संबंध बहुत कड़वे हैं. 1996 से 2001 तक भारत ने अफगानिस्तान में नॉर्दन एलायंस का समर्थन किया. नॉर्दन एलायंस तालिबान और पाकिस्तान विरोधी थे. इसी दौरान 1999 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने तालिबान की मदद से इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा किया. विमान को तालिबान के हथियारबंद लड़ाकों की निगरानी में कंधार में रखा गया. भारतीय जेल से कुख्यात आतंकवादियों को छोड़ने के बाद विमान रिहा हुआ.
2001 में विदेशी फौजों के अफगानिस्तान में घुसने के बाद भारत ने भी वहां फिर कदम रखे. अफगानिस्तान में स्कूल, अस्पताल, सड़कें और रेलवे ट्रैक बनाने में भारत दो अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर चुका है. भारत ने अफगान बलों को प्रशिक्षित भी किया है. भारत की यह कोशिशें पाकिस्तान की आंखों में खटकती है. इस्लामाबाद को लगता है कि नई दिल्ली अफगानिस्तान के साथ मिलकर उसके खिलाफ मोर्चा बना रहा है.
वहीं भारत की चिंता है कि अगर विदेशी फौजों के निकलने के बाद अफगानिस्तान फिर तालिबान के नियंत्रण में चला गया तो उसकी सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी.
रिपोर्ट: एएफपी/ओ सिंह
संपादन: एन रंजन