अफगानिस्तान में टकराते भारत और पाक के हित
१८ जून २०११दक्षिण एशिया की दोनों परमाणु ताकतों भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी अफगानिस्तान की युद्धभूमि को भी बख्श नहीं रही है. अफ-पाक-भारत सैंडविच में पाकिस्तान का रुख और हित क्या हैं, इसके बारे में वामपंथी साप्ताहिक डेयर फ्राइटाग ने लिखा हैः
पाकिस्तान ने 1947 में अपने गठन के बाद से भारत को प्रतिद्वंद्वी के ही रूप में नहीं, बल्कि जानी दुश्मन के रूप में देखा है और उसी तरह व्यवहार किया है. अनौपचारिक तौर पर पाक सेना के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि वे तालिबान से सहयोग करते हैं, अफगानिस्तान में उन्हें ऐसे सहयोगियों की जरूरत है जिन पर भरोसा किया जा सके. इस्लामाबाद के नजरिए में इससे दो विकल्प पैदा होते हैं, एक तो कब्जा करने वाले सैनिकों के खिलाफ अफगान प्रतिरोध का समर्थन और काबुल में उन ताकतों का समर्थन जिनका भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके.
इस रणनीति की व्याख्या करते हुए आईएसआई के पूर्व प्रमुख ले. जनरल असद दुर्रानी ने डेयर फ्रायटाग को बतायाः
जब यह विरोधी ताकत, यानी नया तालिबान, ये मुल्ला उमर का तालिबान नहीं है, मजबूत रहेगा तभी संभव होगा कि विदेशी सेना अफगानिस्तान से वापस हटे, अन्यथा वे वहीं रहेंगे. भले ही यह 2001 से पाकिस्तान सरकार की आधिकारिक नीति न हो, लेकिन तालिबान अफगानिस्तान में हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं. यदि वे सफल रहते हैं तो विदेशी सेनाएं हट जाएंगी. यदि वे विफल रहते हैं और अफगानिस्तान विदेशी प्रभाव में रहता है, तो हमारी समस्या बनी रहेगी. यदि विश्व की सबसे ताकतवर सत्ता नाटो आर्थिक और भूराजनीतिक हितों के लिए पाकिस्तान की सीमा पर बनी रहे तो यह पाकिस्तान में व्यापक विरोध पैदा करेगा."
कहां हैं मुखबिर
पाकिस्तान में अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मारे जाने के छह सप्ताह बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने सीआईए के पांच स्थानीय मुखबिरों को गिरफ्तार कर लिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार उन्होंने बिन लादेन पर नजर रखने में अमेरिका की मदद की. म्यूनिख का दैनिक ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग इसके बारे में लिखता है
गिरफ्तार लोगों में एक पाकिस्तानी सेना का मेजर भी है. उसने उन कारों के नंबर नोट किए जो एबटाबाद में छुपे ओसामा के घर जाती थीं. अखबार लिखता है कि मुखबिर किस हालात में हैं, इसके बारे में कुछ पता नहीं है. वैसे सीआईए प्रमुख और नामजद अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पैनेटा ने पिछले सप्ताह इस्लामाबाद के दौरे पर गिरफ्तार मुखबिरों का मामला उठाया. आईएसआई की कार्रवाई वॉशिंगटन के साथ पाकिस्तान के रिश्तों को और मुश्किल बनाती है और दिखाती है कि बिन लादेन के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी सेना कितने दबाव में है. पाकिस्तानी सेना पर दबाव सिर्फ अमेरिका की ओर से नहीं है, हाल के दिनों में देश के अंदर भी दबाव बढ़ रहा है. अमेरिकी कार्रवाई के बाद सेना प्रमुख जनरल कयानी को रावलपिंडी, सियालकोट और खारियान के सैनिक अड्डों का दौरा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. वहां उन्होंने अपने अफसरों को शांत करने की कोशिश की जो बिन बताए हुई अमेरिकी कार्रवाई के कारण अपमानित महसूस कर रहे थे.
गुरुदेव की याद
रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत के राष्ट्रीय गान की रचना की थी. जब 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ तो उसने भी रवींद्रन्द्रनाथ के ही एक गीत को अपना राष्ट्रगान चुना. फ्रांकफुर्टर अल्गेमाइने त्साइटुंग ने लिखा है कि इसीलिए महाकवि की 150 वीं जयंती के सरकारी समारोहों में भारत और बांग्लादेश के सांस्कृतिक रिश्तों का जश्न उच्चतम स्तर पर मनाया गया.
भारत और बांग्लादेश की बंगाली जनता से नैसर्गिक प्रतिभा के मालिक रवींद्रनाथ टैगोर को लेकर ईर्ष्या होती है. अलबर्ट श्वाइत्सर ने उन्हें भारत का गोएथे बताया था. अपने विषयों और विचारों के साथ वे हमारे समय पर भी प्रभाव डालते हैं और अपने पाठकों और दर्शकों को अस्मिता की खोज में प्रेरणा देते हैं. दूसरी ओर बहुत से लोग अब भी उनके आदर्शवादी सम्मान के स्तर से बाहर नहीं निकले हैं, वे उनके कामों को और विकसित करने के बदले नकल में खो जाते हैं. हालांकि उनकी रचनाओं की समृद्धि निरंतर नई खोज की चुनौती देती है.
नाबालिग शादियों की समस्या
मेडिकल पत्रिका लांसेट के अनुसार भारत में अब भी 44.5 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र पूरा होने से पहले ही कर दी जाती है. हालांकि नाबालिगों की शादी पर 1929 से ही प्रतिबंध है.
एक अध्ययन के अनुसार भारी आर्थिक प्रगति के बावजूद नाबालिग दुल्हनों की संख्या में बहुत धीमी कमी हुई है. बहुत से इलाकों में स्थिति अत्यंत खराब है, जिनमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है. यहां 56 फीसदी औरतों की शादी बचपन में ही हो जाती है और आधी से अधिक लड़कियां 19 साल की उम्र से पहले ही गर्भवती हो जाती हैं. इस प्रथा की मुख्य वजह पुरानी परंपरा, अज्ञान और गरीबी है. होबीपुर जैसे गांवों में अधिकांश औरतों की शादी बचपन में ही हो गई, इसलिए वहां के निवासी इसे बहुत सामान्य बात मानते हैं. इसके अलावा भारत में लड़कियों को आर्थिक बोझ समझा जाता है. बेटों के विपरीत, जो शादी के बाद परंपरागत रूप से मां बाप के घर में ही रहते हैं और बुढ़ापे में उनकी देखभाल करते हैं, बेटियां दूसरे घरों में चली जाती हैं और अपने मां बाप की जिंदगी से गायब हो जाती हैं.
संकलन: अना लेमन/मझा
संपादन: एस गौड़