अफगान घुसपैठ से जूझता पाकिस्तान
४ जुलाई २०११पाकिस्तान में अफगान घुसपैठी हमलों की संख्या ऐसे समय में बढ़ रही है जब अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत की कोशिशें हो रही हैं और अधिकारी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं. इसी वजह से पाकिस्तान के रिश्ते अमेरिका और तालिबान, दोनों के साथ जटिल हो रहे हैं.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा के दोनों तरफ तालिबान के ठिकाने बताए जाते हैं. अमेरिका दबाव बढ़ा रहा है कि पाकिस्तान अपने कबायली इलाकों में सैन्य कार्रवाई कर चरमपंथी ठिकानों को खत्म करे.
सोमवार को हुए हमले के बारे में पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल अतहर अब्बास ने कहा कि बाजौड़ में एक सुरक्षा चौकी पर हुए हमले में एक सैनिक मारा गया है और एक घायल हुआ है. यह इलाका अफगान सीमा से तीन किलोमीटर दूर है. अब्बास ने कहा, "बाजौड़ से सभी उग्रवादियों को भगा दिया गया है और सेना इस इलाके में मौजूद है. इसीलिए हमले सीमापार से हो रहे हैं."
पाकिस्तान बराबर दावा करता है कि उसने बाजौड़ से उग्रवादियों का सफाया कर दिया है. बाजौड़ उन सात कबायली जिलों में से एक है जिन्हें अमेरिकी सरकार आतंकवादी संगठन अल कायदा की पनाहगाह समझता है. लेकिन पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर लगातार हमले हो रहे हैं. एबटाबाद में 2 मई को अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद ऐसे हमले बढ़ गए हैं.
उधर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तानी सेना कई उग्रवादियों गुटों का समर्थन करती है जिनके जरिए वह अफगानिस्तान में स्थानीय सरकार और अमेरिका के खिलाफ परोक्ष लड़ाई छेड़ रहा है. एक पूर्व उग्रवादी कमांडर के हवाले से अखबार ने कहा है कि लश्कर ए तैयबा, हरकत उल जिहाद और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों को पाकिस्तानी सेना 15 साल से ट्रेनिंग, रणनीतिक योजना में मदद और संरक्षण दे रही है.
वहीं पाकिस्तानी सरकार बराबर अमेरिकी सरकार को भरोसा दिला रही है कि उसने उग्रवादी गुटों से अपने रिश्ते खत्म कर लिए हैं. अखबार का कहना है कि अमेरिकी सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए पाकिस्तान को सरकार 20 अरब डॉलर दे चुकी है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एस गौड़