अमेरिका के एशियाई रुख से यूरोप चिंतित
४ जून २०१२दूसरे विश्व युद्ध के बाद वामपंथी और पूंजीवादी देशों में विभाजित दुनिया में अमेरिका और पश्चिमी यूरोप अहम साझेदार बने. 1949 में अमेरिका सहित पश्चिमी यूरोप के देशों ने नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑरगनाइजेशन यानी नाटो का गठन किया. इसका मकसद बाहर से आने वाले हर खतरे का मुंह तोड़ जवाब देना और सदस्य देशों की रक्षा करना था. इस वक्त नाटो में 28 यूरोपीय देश शामिल हैं.
नाटो में अमेरिका पर यूरोपीय देशों की निर्भरता हमेशा ज्यादा रही है. अमेरिकी लड़ाकू विमान, युद्धपोत और हथियार यूरोपीय देशों के काम आते हैं और बड़े फैसलों में ज्यादातर अमेरिका का अपने सैनिकों की संख्या और हथियारों की वजह से प्रभाव रहता है. अफगानिस्तान और लीबिया के मामले में भी ऐसा देखा गया.
अब अमेरिका अपना ध्यान एशिया प्रशांत के देशों की ओर करना चाहता है. इस सिलसिले में अमेरिका, फिलीपींस, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने एक साथ समुद्री अभ्यास भी किए हैं और धीरे धीरे इलाके के लिए सुरक्षा समझौते की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पैनेटा ने इस सिलसिले में शनिवार को सिंगापुर में हो रहे शांग्री ला सम्मेलन के दौरान एशिया प्रशांत में 60 प्रतिशत अमेरिकी युद्धपोतों को तैनात करने की बात कही.
अमेरिका की एशिया में दिलचस्पी चीन को खल रही है, जो सोचता है कि इलाके पर उसके अपने दावे फीके पड़ जाएंगे. लेकिन चीन से ज्यादा परेशानी अब यूरोपीय देशों को हो रही है. शांग्री ला के फैसले का मतलब है, यूरोप के आसपास अटलांटिक महासागर में तैनात अमेरिकी युद्धपोत अब एशिया का रुख करेंगे. फ्रांस के रक्षा मंत्री जां-ईव ले द्रियां ने कहा कि यूरोप के सुरक्षा ढांचे पर दोबारा सोचने की जरूरत है. "आने वाले 10 सालों में अमेरिकी रक्षा बजट में 500 अरब डॉलर की कमी आएगी. ऊपर से अमेरिका ने कहा है कि वे एशिया प्रशांत को प्राथमिकता देना चाहता है. कहीं न कहीं कमी आएगी. और यह यूरोप में होगा."
इस वक्त अमेरिका के 50 फीसदी लड़ाकू जहाज अटलांटिक में और 50 प्रतिशत एशिया प्रशांत में तैनात हैं. ले द्रियां का कहना है कि यूरोप को जल्द ही अपनी सुरक्षा रणनीति में बदलाव लाने होंगे, खासकर नाटो की प्रतिबद्धताओं को देखते हुए. यूएस आर्मी यूरोप में इटली से लेकर रूस और डेनमार्क से लेकर अजरबैजान और इस्राएल में सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालती है. रोमेनिया, पोलैंड और तुर्की में इस वक्त मिसाइल सुरक्षा कवच को स्थापित किया जा रहा है. लेकिन अमेरिका की बदलती सुरक्षा नीति को देखते हुए यूरोपीय देशों में इन योजनाओं को बदलने की जरूरत पड़ सकती है. यह बदलाव रूस और अमेरिका के बीच संबंधों के बेहतर होने का भी संकेत हो सकते हैं.
एमजी/ओएसजे (एएफपी)