आपदाओं का वार बीमा कंपनियों की जेब पर
२३ दिसम्बर २०१०इस साल दुनिया भर में आई आपदाओं की कीमत करीब 222 अरब अमेरिकी डॉलर के नुकसान के रूप में आंकी गई है. 2009 में ये रकम 63 अरब डॉलर थी. पिछले साल के मुकाबले आपदाओं से होने वाले नुकसान साढ़े तीन गुने से भी ज्यादा बढ़ गया है. दुनिया भर की इंश्योरेंस कंपनियों ने इस साल 36 अरब डॉलर आपदाओं से हुए नुकसान के लिए चुकाए. पिछले साल की तुलना में ये रकम 34 फीसदी ज्यादा है.
एक अनुमान के मुताबिक इस पूरे साल आपादाओं ने 2 लाख 60 हजार लोगों की जान ली और 1976 के बाद ये तादाद सबसे ज्यादा है. जनवरी में हैती में आए भूकंप से ही आपदाओं की शुरूआत हो गई. अकेले इस भूकंप ने ही करीब 2 लाख 22 हजार लोगों की जान ले ली. इसके बाद रूस की गर्म हवाओं में 15 हजार लोग मारे गए जबकि चीन और पाकिस्तान की बाढ़ ने 6,225 लोगों की जीवनलीला खत्म कर दी.
फरवरी में चिली में आए भूकंप ने 800 लोगों को जमींदोज कर दिया. अप्रैल भी खाली नहीं रहा चीन के चिंघाई प्रांत में आए शक्तिशाली भूकंप में 3000 लोग मारे गए. अक्तूबर के महीने में एक बड़ा भूकंप इंडोनेशिया के पश्चिमी इलाके सुमात्रा में भी आया जिसमें 500 लोग मारे गए. नवंबर में मेरापी का ज्वालामुखी फट पड़ा और सैकड़ों लोगों की जान गई.
इन आपदाओं ने ये भी दिखा दिया कि प्रभावित देशों में बीमा कंपनियां किस तरह काम कर रही हैं साथ ही ये भी कि आपदाओं से लड़ने में इन कंपनियों की भूमिका कितनी अहम है. चिली, न्यूजीलैंड के भूकंप और पश्चिमी यूरोप में आंधी के ज्यादातर पीड़ितों को बीमा कंपनियों से पैसा मिला जबकि हैती के भूकंप और एशिया की बाढ़ से प्रभावित लोगों के पास कोई बीमा सुरक्षा नहीं थी. बीमा कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा खर्चीला साबित हुआ चिली का भूकंप. इस एक भूकंप ने इन कंपनियों को 8 अरब डॉलर के खर्चे में डाला.
आर्थिक नुकसान पहुंचाने में दूसरी घटनाओं ने भी कम भूमिका नहीं निभाई. अप्रैल में ज्वालामुखी फटने से उड़ी राख ने उत्तरी और पश्चिमी यूरोप में कई हफ्तों के लिए विमान सेवाओं को ठप्प कर दिया. इसी महीने मेक्सिको की खाड़ी में बीपी कंपनी का एक तेल कुएं से भारी रिसाव हुआ और ये अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा तेल रिसाव साबित हुआ. अप्रैल में शुरू हुआ रिसाव बड़ी मुश्किलों के बाद जुलाई में जाकर बंद हुआ.
वर्ल्ड बैंक और संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि पहले से कदम उठा कर प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान को कम किया जा सकता है. 1970 से 2008 तक इन आपदाओं में 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई. इस रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि अगर पर्यावरण बदलाव से होने वाले नुकसानों को छोड़ भी दिया जाए तो केवल मौसम में बदलाव आने से ही हर साल 185 अरब डॉलर का नुकसान होगा. गरीब देशों के लिए भी पहले से बचाव के कदम उठा लेना ही ज्यादा बेहतर है. इस रिपोर्ट में बांग्लादेश का हवाला देकर कहा गया है कि मौसम बिगड़ने के बारे में पहले से चेतावनी देने वाले उपकरण लगाने के बाद यहां पिछले साल आए चक्रवात में मरने वाले लोगों की संख्या काफी कम रही.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः आभा एम