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एक फोन और प्रेस की आजादी

२६ अक्टूबर २०१२

जर्मन टेलीविजन के न्यूजरूम में आए एक टेलीफोन ने देश में मीडिया पर नेताओं के प्रभाव और प्रेस की आजादी पर बहस छेड़ दी है. बवेरिया की सीएसयू के प्रवक्ता पर एसपीडी के सम्मेलन की रिपोर्ट रुकवाने के लिए फोन करने के आरोप हैं.

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तस्वीर: Fotolia/picsfive

बवेरिया में सत्तारूढ़ क्रिश्टियन सोशल यूनियन पार्टी के प्रवक्ता हंस मिषाएल श्ट्रेप ने टेलीफोन कांड पर हुए हंगामे के बाद इस्तीफा दे दिया है. श्ट्रेप पर आरोप है कि उन्होंने पिछले रविवार को सार्वजनिक टेलीविजन चैनल जेडडीएफ के न्यूजरूम में फोन किया और ड्यूटी कर रहे एडीटर से मांग की कि बवेरिया में विपक्षी एसपीडी पार्टी के सम्मेलन पर रिपोर्ट प्रसारित नहीं हो. जेडडीएफ का न्यूड डिपार्टमेंट इसे रिपोर्टिंग पर असर डालने की कोशिश बता रहा है तो श्ट्रेप इससे इनकार कर रहे हैं. तो क्या सारा कुछ सिर्फ गलतफहमी है.

CSU Seehofer Affäre Hans Michael Strepp ZDF Anfruf
श्ट्रेप और मुख्यमंत्री जेहोफरतस्वीर: dapd

टेलीफोन पर क्या बातचीत हुई, यह सामने नहीं आया है. लेकिन टेलीफोन होना और प्रवक्ता का इस्तीफा दिखाता है कि फिर एक राजनीतिज्ञ ने अपनी सीमाएं लांघी हैं और पूर्व राष्ट्रपति वुल्फ के कांड से कुछ नहीं सीखा है. छह महीने पहले क्रिस्टियान वुल्फ को राष्ट्रपति पद इसलिए छोड़ना पड़ा था कि उन्होंने बिल्ड दैनिक को अपने बारे में नकारात्मक रिपोर्ट छापने से रोकने की कोशिश की थी. हालांकि इस घटना से पहले से ही मीडिया और पत्रकार रिपोर्टिंग को प्रभावित करने की कोशिशों पर कड़ी प्रतिक्रिया दिखाते रहे हैं, लेकिन वुल्फ कांड के बाद वे ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं.

हमलों से बचाव

चांसलर अंगेला मैर्केल के सत्ताधारी मोर्चे में शामिल सीएसयू पार्टी प्रमुख हॉर्स्ट जेहोफर ने कहा है कि पार्टी मामले की जांच की कोशिश कर रही है. इस्तीफा देकर खुद श्ट्रेप ने खुद को हमलों से बचा लिया है. लेकिन इस्तीफे के साथ बहस खत्म नहीं हुई है, क्योंकि मामला पत्रकारों पर दबाव और प्रेस की आजादी का है. जर्मन पत्रकार संघ डीजेवी के हेंडरिक सोएर्नर कहते हैं, "यह रिपोर्टिंग की आजादी पर हमला करने की बड़ी कोशिश थी."

हैम्बर्ग के मीडिया कॉलेज के प्रोफेसर श्टेफान वाइषर्ट भी श्ट्रेप के बर्ताव को अत्यंत फूहड़ बताते हैं. वे कहते हैं, "हमें खुद को बेवकूफ नहीं बनाना चाहिए. मीडिया को प्रभाव में लेने की कोशिश हमेशा से होती आई है, और हमेशा होती रहेगी. यदि हम बर्लिन में राजनीति और मीडिया संरचना को देखें, तो हमेशा दोनों के बीच सांठगांठ रही है." इस बीच यह आम हो गया है, कुछ छुपा कर करते हैं तो कुछ दिखाकर करते हैं. मीडिया विशेषज्ञ वाइषर्ट का कहना है, "दोनों ही प्रेस स्वतंत्रता के लिए नुकसानदेह हैं."

Hendrik Zörner Pressesprecher DJV
सोएर्नरतस्वीर: DW

सामाजिक सहमति

जर्मन पत्रकार संघ के सोएर्नर का कहना है कि मीडिया पर दबाव डालने की ताजा घटना को बढ़ा चढ़ाकर नहीं देखा जाना चाहिए. "वे अत्यंत बुरे हैं लेकिन रोजमर्रा की घटना नहीं हैं." जर्मनी कोई बनाना रिपब्लिक नहीं है बल्कि एक लोकतंत्र है जहां प्रेस स्वतंत्रता की गहरी जड़ें हैं. प्रेस की आजादी के लिए सार्वजनिक समर्थन पिछले पांच दशकों में सकारात्मक रूप से विकसित हुआ है. "पचास साल पहले श्पीगेल कांड के बाद से जनमत आलोचना करने वाला हो गया है जो पत्रकारिता पर सरकार के हमलों का समर्थन नहीं करता."

Stephan Weichert Macromedia Hochschule für Medien und Kommunikation
वाइषर्टतस्वीर: Kathrin Brunnhofer

1962 में डेअ श्पीगेल पत्रिका के एडीटरों पर आलोचनात्मक लेख के कारण देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया था. इस कांड की वजह से जर्मनी में प्रेस की आजादी मजबूत हुई. जेडडीएफ की टेलीविजन परिषद की सदस्य रहीं बारबरा थॉमस श्ट्रेप कांड पर लोगों की प्रतिक्रिया से संतुष्ट हैं. "मुझे राहत मिली है कि इस तरह की नाराजगी और लोगों में इतनी प्रतिक्रिया दिखी है. यह दिखाता है कि यह इलाका कितना संवेदनशील है. यह इस अफसोसजनक मामले में एक अच्छी बात है."

Prof. Dr. Barbara Thomaß
थॉमसतस्वीर: Bernd Schäfer

आजादी की रक्षा

जेडडीएफ जर्मनी का दूसरा सार्वजनिक चैनल है, जिसका खर्च करदाताओं से मिलने वाली रेडियो फीस के जरिए चलता है. उसकी निगरानी समितियों में सभी प्रमुख पार्टियों के प्रतिनिधि हैं. यदि राजनीतिज्ञ अपने प्रभाव का दुरुपयोग करने लगें तो ऐसी सार्वजनिक संस्थाओं की आजादी की गारंटी कैसे हो सकती है. जर्मन पत्रकार संघ की मांग है कि निगरानी समितियों में राजनीतिज्ञों की संख्या कम होनी चाहिए.  संघ के प्रवक्ता सोएर्नर कहते हैं कि उनका संघ इसकी मांग तब से कर रहा है जब से हेस्से के मुख्यमंत्री रोलांड कॉख के दबाव में जेडडीएफ के मुख्य संपादक निकोलाउस बेंडर का कॉन्ट्रेक्ट नहीं बढ़ाया गया था. "उस समय भी साफ था कि राजनीतिज्ञ एक आजाद चैनल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की बार बार कोशिश करते हैं. इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए."

मीडिया विशेषज्ञ बारबरा थॉमस मीडिया परिदृश्य के विकास पर चिंतित हैं. विभिन्न सर्वे यह दिखाते हैं कि पत्रकारों पर प्रभाव और दबाव डाला जाता है, चाहे तरीका दबा-छुपा हो या श्ट्रेप कांड की तरह भोंडा और प्रत्यक्ष, हर हाल में पत्रकारों को अक्सर इनका सामना करना पड़ता है.

रिपोर्ट: रायना ब्रॉयर/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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