एफडीआई के रूप में आखिरी दांव
१६ सितम्बर २०१२वित्तीय घाटे को कम करना है और शंका में डूबे विदेशी निवेशकों का भरोसा एक बार फिर जीतना है. इसके लिए सरकार ने ऐसे फैसले किए हैं, जो आम जनता और विपक्ष के तेवर कड़े क सकता है लेकिन शायद इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं बचा था.
जानी मानी विश्लेषक नीरजा चौधरी का कहना है, "यह एक बड़ा दांव है. लेकिन उन्हें यह चांस लेना ही था." भारत सरकार ने 24 घंटों के अंदर दो बड़े काम किए. एक तो डीजल के दाम करीब 12 फीसदी बढ़ा दिए गए, जबकि दूसरे पिछले साल हुए हो हल्ले के बावजूद मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई को मंजूरी दे दी. इसके अलावा विमानन और ब्रॉडकास्ट मीडिया में विदेशी निवेश की इजाजत के अलावा चार सरकारी कंपनियों का कुछ हिस्सा निजी करने पर भी फैसला हो गया.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदा सरकार बुरी तरह भ्रष्टाचार के मामलों में घिरी है. 2009 में दोबारा सरकार बनाने के बाद से ही इसे अपना बचाव करना पड़ रहा है. एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं, जिसमें टेलीकॉम और कोयला घोटाला सबसे बड़ा साबित हो रहा है. कुछ दिनों पहले तक पूरी दुनिया भारत की जय जयकार कर रही थी. लेकिन अब मामला बदलता नजर आ रहा है.
वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा का कहना है कि भारत को बदनाम करने के लिए खास तौर पर योजना बना कर काम किया जा रहा है लेकिन देश ने आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है. उन्होंने ही विदेशी निवेश का एलान किया.
लंबे वक्त से मांग
अर्थशास्त्री, बड़े कारोबारी, रेटिंग एजेंसियों और यहां तक कि घरेलू मीडिया की भी लंबे वक्त से मांग रही है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बड़े फैसले करने चाहिए. उन्हीं की अगुवाई में भारत ने 1991 में आर्थिक सुधार किया था, जिसका नतीजा यह निकला कि विश्व बाजार में भारत अचानक से छा गया. भारत के प्रमुख उद्योगपति और इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति कह चुके हैं कि "अब इंडिया की उस स्टोरी को विदेश में बेचना आसान नहीं रह गया है."
अब इस हफ्ते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने चुनौती इस बात की होगी कि क्या वह ट्रेड यूनियन, विरोध प्रदर्शन और अपने ही गठबंधन की तृणमूल कांग्रेस का विरोध झेल पाएंगे. ममता बनर्जी की अध्यक्षता वाली पार्टी ने पहले भी कई बार सिंह के लिए मुश्किल खड़ी की है. इस बार भी उन्होंने 72 घंटे की सीमा में सरकार से इन फैसलों को वापस लेने को कहा है.
मुश्किल दौर शुरू
भारत के प्रमुख समचारपत्र इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, "गठबंधन सरकार ने ऐसे वादों का रिकॉर्ड बना दिया है, जिसे वह पूरा नहीं कर सकती है. इसलिए सरकार का सबसे मुश्किल वक्त अब शुरू हो गया है." आनंद शर्मा पहले ही कह चुके हैं कि चाहे जो भी हो अब नीतियों में बदलाव नहीं किया जाएगा.
इन सबके बीच नजरें सोमवार को रिजर्व बैंक पर भी होंगी कि क्या वह ब्याज दर में कटौती करता है. बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव कह चुके हैं कि सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जिससे सब्सिडी घटाई जा सके और निवेश को उकसाया जा सके. तभी ब्याज दर में कमी संभव है.
लेकिन इन बदलावों के बीच आर्थिक जानकार भी कुछ कहने से बच रहे हैं. बार्कलेज कैपिटल के सिद्धार्थ सान्याल इसे तेजी से बदल रहा माहौल बता रहे हैं, "यहां बहुत सी चीजें बहुत तेजी से एक साथ बदल रही हैं और इसमें कुछ भी कहना मुश्किल है. लेकिन अब रिजर्व बैंक खामोश नहीं रह सकता है. इसे कुछ फैसले तो करने ही होंगे नहीं तो विकास दर पर असर पड़ेगा."
विकास पर असर
कुछ दिनों पहले तक भारत का आर्थिक विकास लगभग दोहरे आंकड़े में पहुंच गया था. लेकिन आखिरी तिमाही में यह सिर्फ 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा और इस बीच अमेरिकी रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर ने भारत की रैंकिंग घटा कर "जंक" श्रेणी में कर देने की चेतावनी भी दे रखी है.
भारत सरकार ने जो नए आर्थिक सुधार किए हैं, उसके तहत रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश की इजाजत 51 फीसदी तक कर दी गई है. हालांकि इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी, जिनमें कम से कम 10 करोड़ डॉलर का निवेश भी शामिल है. सरकार ने पिछले साल नवंबर में भी ऐसा ही फैसला किया था. लेकिन बीजेपी सहित विपक्षी पार्टियों और अपनी ही सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के खासे विरोध के बाद उस फैसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
विमानन क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को घरेलू कंपनियों के 49 प्रतिशत शेयर तक खरीदने की इजाजत मिल गई है. ताजा फैसलों के साथ सरकार ने आक्रमकता से जवाब देने का फैसला किया है. कोयला घोटाले की वजह से पिछले सत्र में संसद की कार्यवाही नहीं हो पाई थी और सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में जवाब देने में असमर्थ साबित हो रही है.
एजेए/एएम (एएफपपी)