एशिया में खतरे में हैं बाघ
१३ फ़रवरी २०१२ज्यादातर एशियाई संस्कृतियों में बाघ को शक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस बीच वे खुद सुरक्षा के मोहताज हैं. पहले वे एक दूसरे से जुड़े जंगलों में रहा करते थे जो आज के पाकिस्तान से रूस के सुदूर पूर्व तक जाता था. अनुमान है कि सौ साल पहले उनकी तादाद लाखों में हुआ करती थी. आज वे कुछेक इलाकों में ही बच गए हैं. पशु विशेषज्ञ इसे आबादी का द्वीप कहते हैं. उनमें से सबसे छोटे में सिर्फ 30 बाघों के जीने की जगह है. दक्षिण चीन का बाघ समाप्त हो जाने वाली ताजा प्रजाति साबित हो सकता है. पर्यावरण संगठन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के रोलांड ग्रेमलिंग कहते हैं, "बाघ पहले से कहीं ज्यादा खतरे में हैं."
बाघ की हड्डी से गठिया का इलाज
उसकी ताकत ही उसे सबसे ज्यादा खतरे में डाल रही है. शिकारियों के लिए बाघ का शिकार फायदे का सौदा है क्यों कि उसकी हड्डियों का इस्तेमाल ताकत बढ़ाने और बीमारी से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है. उसके खाल के अलावा शरीर के दूसरे हिस्सों की भी मांग है. बाघ के अंगों से बने उत्पादों को एशिया में शारीरिक व्याधियों से छुटकारे के लिए रामबाण समझा जाता है. थूथ मिर्गी के खिलाफ, हट्टी गठिये के खिलाफ और मूछें दांत की बीमारी कैरीस के खिलाफ. खासकर चीन में इन उत्पादों की भारी मांग है. बढती अमीरी की वजह से काला बाजार फल फूल रहा है.
अरबों डॉलर के इस कारोबार खिलाफ प्रभावी कदम उठाने में अब तक सफलता नहीं मिली है. जिन देशों में अभी भी बाघ जीवित हैं, उन 13 देशों के पुलिस और कस्टम प्रमुख थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में इस कारोबार पर काबू पाने के उपायों पर चर्चा कर रहे हैं. अमेरिकी शोध संस्थान के एक अनुमान के अनुसार यह अवैध कारोबार 8 से 10 अरब डॉलर का है. अफ्रीकी हाथी के दांतों, तिब्बत के चिकारों की खाल और रीनो के शेरों के साथ साथ बाघ की हड्डियां सबसे फायदेमंद उत्पाद हैं.
यूं अब चीन की परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इस तरह की सामग्रियों का जिक्र नहीं होता. बर्लिन के चैरिटी मेडिकल कॉलेज में चीनी चिकित्सा पर शोध करने वाले पॉल उनशुल्ड कहते हैं कि अब कोई भी डॉक्टर बाघ की हड्डियों का नुस्खा नहीं लिखता. तब भी कुछ इलाकों में इनके अचूक प्रभाव पर भरोसा बना हुआ है. उनशुल्ड कहते हैं कि अचूक क्षमता के लिए बाघ का शिकार किए जाने के दोषी वे अमीर हैं जो समझते हैं कि वे इस तरह की चीजों से अपनी जिंदगी संवार सकते हैं.
सिकुड़ते अभयारण्य
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार इस समय खुले जंगलों में सिर्फ 3,200 बाघ रहते हैं. उनमें से 1,500 के करीब भारत में हैं, लगभग 1,000 दक्षिण पूर्व एशिया में और कुछ सौ मलेशिया, सुमात्रा और रूस में. अवैध शिकार के अलावा उनके कम होने की एक वजह उन जंगलों का समाप्त होना है जहां वे रह सकते हैं. उसकी जरूरतें ज्यादा नहीं होतीं. रोलांड ग्रेमलिंग कहते हैं, "बाघ बहुत ही सीधा सादा होता है." बाघ बांग्लादेश के दलदली इलाकों में रहते हैं, रूस के जंगलों में और सुमात्रा के वर्षावनों में. उन्हें सिर्फ ऐसी जगह की जरूरत होती है जहां उन्हें खाने पीने के लिए पर्याप्त सामान मिल सके. लेकिन यही कम होता जा रहा है. रूस को छोड़कर बाघ ऐसे देशों में रहते हैं जहां की आबादी बहुत ज्यादा है. जंगलों को बचाकर रखना इस देशों की प्राथमिकता में शामिल नहीं है.
पशु संरक्षकों और नए जंगल लगाने के कार्यक्रमों के जरिए बाघों के लिए जीवनदायी इलाकों को बचाने की कोशिश की जा रही है. साथ ही यह शोध भी किया जा रहा है कि कितने बाघ अभी भी जीवित बचे हैं. इसके लिए जंगलों में कैमरे लगाए जा रहे हैं और साइबेरिया में बर्फ पर बाघ के निशान गिने जा रहे हैं. यदि बाघों का सफाया रोका जा सकेगा और उनके जीने लायक जंगल बचाए जा सकेंगे तभी बाघ बचेंगे. उनका प्रजनन चक्र तेज होता है, उनके बच्चे जल्दी से बढ़ते हैं. यदि उनकी रक्षा नहीं हो पाती है तो फिर वे हमें सिर्फ चिड़ियाघरों में ही दिखेंगे. अभी ही सरकारी और गैरसरकारी चिड़ियाघरों में प्रकृति से ज्यादा बाघ रहते हैं. अमेरिका में बाघों की सबसे ज्यादा आबादी रहती है. वहां के गैरसरकारी चिड़ियाघरों में ही दसियों हजार बाघों के होने का अनुमान है.
रिपोर्ट: मथियास बोएलिंगर/मझा
संपादन: ओ सिंह