ऐतिहासिक पाकिस्तानी चुनाव
११ मई २०१३तालिबान लड़ाके उदारवादी पार्टियों पर निशाना साध रहे हैं तो धार्मिक और रुढ़िवादी पार्टियों को अपना प्रचार आराम से करने दे रहे हैं. पाकिस्तान की सबसे बड़ी पार्टी फिर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी है जिसके युवा नेता बिलावल भुट्टो जरदारी दुबई से चुनाव प्रचार कर रहे हैं क्योंकि वहां सुरक्षा हालात बेहतर हैं. वह अपनी मां बेनजीर भुट्टो की तरह मारे नहीं जाना चाहते, जिनकी 2007 में चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई थी.
एक वीडियो में बिलावल ने कहा, "मैं आप लोगों के साथ चुनाव प्रचार करना चाहता हूं और पाकिस्तान की सड़कों पर घूमना चाहता हूं. लेकिन शहीद बेनजीर भुट्टो के हत्यारे मेरा इंतजार कर रहे हैं. कई साल की सैनिक तानाशाही के बाद बेनजीर भुट्टो देश में लोकतंत्र लाईं."
बम और बुलेट
हालांकि पीपीपी बेनजीर भुट्टो का नाम चुनाव प्रचारों में इस्तेमाल कर रही है लेकिन जो नेता अभी जिंदा हैं उनका कहीं अता पता नहीं है. इसका जिम्मेदार पिछले पांच साल में हुए भ्रष्टाचार के मामले हैं जिनमें कई नेता फंसे हैं. मुख्य कारण हालांकि कुछ और है- गोलियों और बमों ने तय किया है कि चुनाव प्रचार किस दिशा में जाएगा.
पाकिस्तान तालिबान ने वहां की तीन उदारवादी पार्टियों के खिलाफ जंग छेड़ दी है. इसमें पीपीपी, आवामी नेशनल पार्टी और मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट एमक्यूएम शामिल हैं. एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब कोई किसी हमले का शिकार नहीं होता हो.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के निदेशक आईए रहमान कहते हैं, "इसके कारण चुनावों की निष्पक्षता खतरे में पड़ रही है." वह कहते हैं कि समान मौके आजाद और निष्पक्ष चुनावों का हिस्सा होते हैं लेकिन यहां निष्पक्षता है ही नहीं, यहां सिर्फ डर है." उन्हें आशंका है कि देश धार्मिक दक्षिणपंथ की ओर बढ़ सकत है. कहते हैं, "मेरे विचार में यह एक हार होगी." चुनाव आयोग ने आधे से ज्यादा निर्वाचन इलाकों को संवेदनशील करार दिया है.
नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग या फिर इमरान खान की मूवमेंट फॉर जस्टिस जैसी रूढ़िवादी और धार्मिक पार्टियों का चुनाव प्रचार निर्बाध जारी है. और उनकी तालिबान कोई आलोचना नहीं कर रहा है. दोनों ने ही कहा है कि अगर वो जीत जाते हैं तो कट्टरपंथियों से बातचीत करेंगे. रहमान का मानना है कि यह खतरनाक नीति है. "हमारी राजनीतिक पार्टियां इतनी बचकानी हैं कि वह सिर्फ अदूरदर्शी लाभ देख रही हैं." रहमान चेतावनी देते हैं कि वह समझ नहीं पा रहीं कि पाकिस्तान चरमपंथियों के हाथ पड़ सकता है. पाकिस्तान का अस्तित्व दांव पर लगा है.
उधर चुनाव आयोग ने पहले ही 70 हजार में से आधे निर्वाचन क्षेत्रों को संवेदनशील घोषित कर दिया है. हालांकि जिन पार्टियों पर हमले हो रहे हैं वह भी चुनाव रद्द करने के पक्ष में नहीं है. इतिहासकार आयशा जलाल कहती हैं, "मुझे लगता है कि हमें इस अफरा तफरी को झेलना ही होगा." वह कहती हैं कि यह समस्या ऐसे ही नहीं जाएगी बल्कि और बड़ी होकर राक्षस की तरह लौट आएगी. उनका कहना है कि देश अक्षम और अन्यायपूर्ण है. "लेकिन पाकिस्तानियों के पास इसे फिर से खड़ा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है."
चुनाव के नतीजे भी मतदाताओं की हिम्मत पर निर्भर करेंगे कि हिंसा के बाद कितने लोग वोट देने आएंगे. पांच साल पहले 44 फीसदी लोगों ने वोट डाला था.
- रिपोर्टः सांद्रा पेटर्समन/एएम
- संपादनःमानसी गोपालकृष्णन