ओबामा के आने से भी नहीं बदली नस्ली सोच
१० दिसम्बर २०१०अमेरिका में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि ओबामा के पहला अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आए हैं. जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकॉलजी में छपा यह अध्ययन बताता है कि मिश्रित नस्ल के लोगों के मामले में अमेरिकी लोगों का रवैया अब भी वैसा ही है, जैसा 17वीं सदी में हुआ करता था.
अध्ययन के लेखक बताते हैं कि 1662 के वर्जीनिया कानून में तय किया गया कि मिश्रित नस्ल के लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार होना चाहिए. जिन लोगों के माता पिता अलग नस्ल के हैं, उन्हें अल्पसंख्यक नस्ल का ही माना जाता था. इसे वन ड्रॉप रूल कहा जाता था. अध्ययन बताता है कि अब भी लोग इस नियम को मानते हैं
हार्वर्ड में साइकॉलजी पढ़ाने वाले प्रोफेसर जेम्स सिदानियूस इस अध्ययन में सह लेखक हैं. वह बताते हैं, "काले लोगों के बारे में वन ड्रॉप रूल अमेरिकी समाज में आज भी उतना ही ताकतवर है."
अध्ययन में पता चलता है कि अमेरिका में आज भी समाज का बंटवारा नस्ल के आधार पर ही होता है. इस बंटवारे में श्वेत लोग सबसे ऊपर आते हैं. उसके बाद एशियाई लोगों को जगह मिली है. तीसरे नंबर पर लैटिनो हैं और सबसे आखिर में काले लोगों का नंबर आता है. अध्ययन के लेखक कहते हैं कि आज भी काले लोग अमेरिकी समाज में सबसे निचले पायदान पर हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः एक कुमार