कथक की मोहब्बत ले आई क्रोएशिया से भारत
२३ अप्रैल २०१२पहली नजर में हुई मोहब्बत इनेस को कथक की कक्षा में ले आई. और अब वह इसी के साथ अपना जीवन बिताना चाहती हैं. इनेस ने अपना नाम राधा माधवी रखा है. वह भारतीय दर्शन और हिंदू धर्म से बेहद प्रभावित हैं.
"कथक पहला क्लासिकल नृत्य था जो मैंने लाइव देखा. यह पहली नजर की मोहब्बत थी. एक डांसर के तौर पर मुझे नृत्य की कठिन तकनीक बहुत भा गई. जिसके लिए आपको ताल की समझ, सुंदर मूवमेंट्स की बहुत जरूरत है, साथ ही तेज चक्कर और फुटवर्क की भी." 27 साल की इनेस कहती हैं, "मुझे कथक सीखने का बहुत जुनून था. लेकिन जल्द ही पता लगा कि यह शिक्षा कभी खत्म नहीं होती है. यह आजीवन यात्रा है. इसके लिए कड़े अनुशासन, अभ्यास और धैर्य की जरूरत है." इनेस इस साल नई दिल्ली की नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कथक में एडमिशन लेने वाली हैं. "अपना सपना सच कर पाना बहुत ही अच्छा अहसास है लेकिन इसमें त्याग और कड़ी मेहनत भी शामिल है. काफी निराशा और दर्द भी शामिल है. लेकिन यह कुछ समय के लिए है. क्योंकि जल्द ही समझ में आ जाता है कि आप जो कर रहे हो वह आपको खुशी दे रहा है. कथक सिर्फ डांस नहीं है, यह जीवन है."
वह कहती हैं कि अगर पंडित बिरजू महाराज से उन्होंने नहीं सीखा होता तो वह शायद कथक को कभी अपना व्यवसाय न बनाती. "पंडितजी ने मुझे कथक की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. उनकी सादगी और व्यक्तित्व ने मुझे बहुत प्रभावित किया. उनके साथ काम करना बहुत ही अच्छा था."
जागरेब में पैदा डांसर इनेस कंटेंपररी डांस और बैले की जानकार हैं और 2005 में उन्होंने कथक सीखना शुरू किया. हालांकि वह मानती हैं कि दूर देश क्रोएशिया में कथक का प्रचार करना मुश्किल था. "मैंने क्रोएशिया में कई बार कथक के कार्यक्रम किए हैं और कई संगीत और नृत्य महोत्सव में भी शिरकत की है."
'मोहब्बतें' फिल्म के म्यूजिक पीस पर या 'दिल तो पागल है' में माधुरी की कॉपी करने वाले अपने बच्चों की लोग बहुत तारीफ करते हैं और कहते हैं कि मेरा बच्चा कथक जानता है. यह कुछ ऐसा ही है कि कोई बैले के जूते पहन अंगूठे पर खड़ा हो जाए और कहे कि उसे बैले आता है. अंधाधुंध दौड़ और तेजी से स्टेज स्टार बनने की चाह जहां भारतीय बच्चों को 'मास्टर ऑफ नन' यानी थोड़ा थोड़ा सब किया लेकिन महारथ किसी में भी नहीं, बना रही है. ऐसे दौर में लगातार विदेशी कलाकारों का भारत आना और शास्त्रीय संगीत, नृत्य की शिक्षा लेना एक अच्छा परंपरा बन रही है.
रिपोर्टः आभा मोंढे (पीटीआई)
संपादनः ओ सिंह