'कार्बन कटौती पर पश्चिम का भाषण नहीं सुनेगा भारत'
१० अप्रैल २०११जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बैंकॉक में तीन से आठ अप्रैल तक हुए 131 देशों के सम्मेलन से लौटकर रमेश ने कहा, ''मैं आपको भरोसा दिला सकता हूं कि हम अंतरराष्ट्रीय दबाव में कोई कानूनी बाध्यकारी समझौता नहीं करेंगे. हमें सिर्फ आश्वासन देना चाहिए क्योंकि यह हमारे भी हित में है. लेकिन यह भी देखा जाएगा कि अन्य देश अपने वादों की खातिर क्या क्या करते हैं.''
अब तक नाकाम रहे हैं सम्मेलन
जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए 2009 में कोपेनहेगन और 2010 में कानकुन में संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं. लेकिन दोनों ही सम्मेलन नाकाम रहे. भारत, अमेरिका और चीन किसी भी तरह के बाध्यकारी समझौते को मानने से इनकार कर चुके हैं. अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला देश है. चीन और भारत भी ज्यादा पीछे नहीं हैं.
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर यूरोपीय देशों और भारत, अमेरिका और चीन के बीच मतभेद खुलकर सामने आते रहे हैं. यूरोपीय देश चाहते हैं कि क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए तुरंत बाध्यकारी कदम उठाए जाएं.
योजना सिर्फ कागजों में
लेकिन रमेश ने पश्चिमी जगत को आगाह करते हुए कहा है कि कार्बन कटौती के मुद्दे पर भारत पश्चिम का भाषण नहीं सुनेगा. शनिवार को रमेश ने कहा, ''कूटनीतिक ढंग से भारत की स्थिति में बदलाव आएगा ताकि हम सकारात्मक ढंग से समस्या सुलझाने वाले बन सकें.''
भारत ने कानकुन सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रहे गरीब और द्वीपीय देशों को आर्थिक मदद देने की योजना में हो रही देरी की भी निंदा की है. नई दिल्ली का कहना है कि मदद के हकदार देशों को पैसा देने की योजना अब भी सिर्फ कागजों में है. रमेश के मुताबिक आर्थिक मदद कोष में भारत अपनी हैसियत के हिसाब से पैसा देगा.
रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: ईशा भाटिया