क्रांति से ओलंपिक तक
८ अगस्त २०१२ओलंपिक में भारी भरकम संख्या में भले ही तमगे न जीते गए हों लेकिन इसमें हिस्सा लेना ही बड़ी बात है. खास तौर पर तब, जबकि देश लंबे समय तक एक राष्ट्रपति के हवाले रहने के बाद लोकतंत्र के मायने तलाश रहा हो. सगीर की टीम को भले ही ग्रीको रोमन कुश्ती में कोई पदक न मिला हो लेकिन देश को तो मिला है. एक रजत और एक कांस्य.
सगीर ओलंपिक के साथ साथ अपने देश की इसलिए भी तारीफ करते हैं कि उनके देश ने ही अरब देशों में क्रांति की अलख जगाई, "हमने क्रांति की. हमने सबसे पहले की. हमने तेजी से की." उन्होंने बताया कि इसके बाद खिलाड़ियों के साथ क्या हुआ, "सातवें दिन से हमने ट्रेनिंग दोबारा शुरू कर दी. माहौल बहुत डराने वाला था. लेकिन मैंने लड़के लड़कियों को बुलाया. वे आने को तैयार हो गए और सब कुछ चल पड़ा. शुक्र है खुदा का कि ट्यूनीशिया में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. फिर से सैलानी भी आने लगे हैं."
ट्यूनीशिया की एक महिला पुलिस अधिकारी ने जब सड़क पर खोमचे लगाने वाले मोहम्मद बूअजीजी का दिसंबर, 2010 में सामान जब्त कर लिया, तो उसने खुद को आग लगा ली. इसके अगले महीने उसकी मौत हो गई और वहीं से इस देश में क्रांति की शुरुआत हुई. फिर तो आग ऐसी भड़की कि 30 साल से सत्ता पर बैठे जीने अल आबेदीन बेन अली को कुर्सी छोड़ कर भागना पड़ा. इसके बाद अरब के दूसरे देशों मिस्र, लीबिया, यमन और सीरिया में भी क्रांति की आग भड़की.
अपने देश की सुर्ख लाल जर्सी पहने सगीर इन बातों का मतलब अपनी तरह से बताते हैं, "आज मैं आपके साथ खुल कर बात कर सकता हूं. पहले मैं ऐसा नहीं कर सकता था. आज मैं जो सोच रहा हूं बोल सकता हूं, यह बहुत अच्छा है. यह विशाल बदलाव है. एथलीटों को भी नहीं पता कि लोकतंत्र का क्या मतलब है लेकिन वे अपने दिल की बात कर सकते हैं. वे अपनी आजादी को महसूस कर सकते हैं."
हालांकि वह मानते हैं कि अभी पूरी तरह बदलाव में काफी वक्त लगेगा, "यह कुछ महीनों की बात नहीं है. अभी लंबा वक्त लगना है. लेकिन नेता बदल गए हैं, आप यह देख सकते हैं." वह कहते हैं कि इस पूरे बदलाव में खेलों की भी भूमिका है क्योंकि यह लोगों को जोड़ता है.
ट्यूनीशिया को महिलाओं की 300 मीटर स्टीपलचेज में रजत, जबकि पुरुषों की 1500 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में कांस्य पदक मिले हैं.
एजेए/एमजी (एएफपी)