क्रिस्टीन लगार्द बनीं आईएमएफ प्रमुख
२९ जून २०११वॉशिंगटन में क्रिस्टीन लगार्द के नाम पर मुहर लगाई गई. आईएमएफ की प्रमुख बनने वाली वह पहली महिला होंगी और पांच जुलाई से अगले पांच साल के लिए जिम्मेदारी संभालेंगी. लगार्द ने बेहद नाजुक दौर में आईएमएफ की बागडोर अपने हाथ में ली है. ग्रीस कर्ज संकट से जूझ रहा है और बेल आउट पैकेज की किस्त के लिए उसे बचत योजना को संसद में पास कराना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसके दिवालिया होने की आशंका है.
आईएमएफ ने एक बयान जारी कर बताया, "कार्यकारी बोर्ड में हर उम्मीदवार से जुड़ी जानकारी पर विचार हुआ और उसके बाद आम राय से क्रिस्टीन लगार्ड को प्रमुख बनाने का फैसला लिया गया." क्रिस्टीन लगार्द के अलावा मेक्सिको के केंद्रीय बैंक के गवर्नर ऑगस्टीन कार्स्टन्स भी मैदान में थे लेकिन जीत लगार्द की ही पक्की मानी जा रही थी. अमेरिका ने लगार्द को अपने समर्थन का भरोसा दिया था जबकि चीन, भारत, ब्राजील और रूस भी उन्हें आश्वस्त कर चुके थे.
आईएमएफ बोर्ड ने क्रिस्टीन लगार्द के खिलाफ दायर एक अनसुलझे केस को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. लगार्ड का कहना है कि वह इस केस से ज्यादा चिंतित नहीं है. लगार्ड पर आरोप है कि फ्रांसीसी व्यवसायी और सरकार के बीच मामले को सुलटाने के लिए पैसे का लेन देन हुआ. फ्रांस की अदालत इस मामले में 8 जुलाई तक फैसला टाल चुकी है. ऐसी संभावना है कि जब तक इस केस का फैसला नहीं आ जाता तब तक आईएमएफ क्रिस्टीन लगार्द को कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ाएगी.
55 वर्षीय लगार्द डोमिनिक स्ट्रॉस कान का स्थान लेंगी जो बलात्कार की कोशिश के आरोप में आईएमएफ प्रमुख के पद से इस्तीफा दे चुके हैं. हालांकि उन्होंने खुद पर लगे आरोपों से इनकार किया है. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने क्रिस्टीन लगार्ड के चुने जाने को फ्रांस की जीत बताया है. वहीं लगार्द ने कहा है कि वह बेहद सम्मानित महसूस कर रही हैं.
आईएमएफ प्रमुख बनने के कुछ देर बाद ही उन्होंने ग्रीस को सलाह दी कि अलोकप्रिय साबित हो रही बचत योजना के रास्ते पर उसे तेजी से आगे बढ़ना चाहिए. आईएमएफ और यूरोपीय संघ कह चुके हैं कि वित्तीय मदद के लिए बचत योजना को अमल में लाना जरूरी है.
आईएमएफ और विश्व बैंक की स्थापना के समय से ही यह परंपरा रही है कि वर्ल्ड बैंक का प्रमुख अमेरिकी नागरिक होता है जब आईएमएफ प्रमुख की जिम्मेदारी किसी यूरोपीय नागरिक को सौंपी जाती है. लेकिन तेजी से उभरते देश अमेरिका और यूरोपीय देशों की इस परंपरा को चुनौती दे चुके हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ओ सिंह