खतरे में धर्मशाला की पहचान
२४ अक्टूबर २०१२आज से कुछ दशक पहले का धर्मशाला का चेहरा ऐसा नहीं था. पहले धर्मशाला को मैक्लॉडगंज कहा जाता था. हिमालय की तलहटी पर बसे इस कस्बे का मिजाज तब बेहद शांत हुआ करता था. लेकिन आज घरेलू पर्यटकों की भीड़ और विदेशी युवाओं की आवाजाही ने धर्मशाला की गलियों को भीड़ से भर दिया है. अब इस शहर में जहां तहां वाहनों की रेलमपेल है. खूब शोरगुल है.
कुछ लोगों के लिए धर्मशाला की ये तस्वीर निराश करने वाली है. आज से 35 साल पहले यहां बसने वाले तेनजिंग सोनम कहते है, "पहले यहां लोगों के पास इतने निजी वाहन नहीं थे. इसलिए हर कोई पहाड़ी रास्ते से ही नीचे जाता था. तब यह जगह काफी छोटी थी और यहां के निवासियों में तिब्बत से आए शरणार्थियों की पहली पीढ़ी थी."
बदल गई तस्वीर
दलाई लामा के निकटतम परिवार से संबंधित सोनम जाने माने फिल्म निर्माता भी हैं. वो बताते हैं, "धर्माशाला में बढ़ रही चहल पहल की आलोचना करना ठीक नहीं क्योंकि लोगों को कहीं न कहीं आर्थिक गतिविधियों से फायदा तो होता ही है. लेकिन पहाड़ की तलहटी पर इस तरह का विकास लंबे समय तक संभव नहीं है." बकौल सोनम सबसे ज्यादा समस्या तो गैर कानूनी निर्माण और कब्जे की है. "ऊंचाई पर घर बनाने के कुछ नियम कायदे हैं. लेकिन कुछ लोग घूस देकर अपना काम करा लेते हैं."
पिछले कुछ सालों में धर्मशाला की सूरत तेजी से बदली है. पहले यहां वातावरण में शांति थी लेकिन अब यहां शोर गुल है. जैसे जैसे होटल और रेस्त्रां का व्यवसाय जोर पकड़ता गया है यहां की शांति छिनती चली गई. अब यहां बहुमंजिला कार पार्किंग भी हैं. चप्पल पहने बौद्ध भिक्षु और लंबे लहंगे वाली तिब्बत की महिलाएं अभी भी कस्बे में पर्याप्त संख्या में दिख जाते हैं लेकिन अब कारों और वाहनों की भीड़ भाड़ ने उनकी पहचान को संकट में डाल दी है.
बिजली पानी की समस्या
धर्मशाला का कोनोर हाउस लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है. हॉ़लीवुड के जाने माने अभिनेता रिचर्ड गियर यहां अक्सर आते रहे हैं. लेकिन अब इस घर के मालिक को भी बिजली पानी की समस्या अखरने लगी है.
यहां पानी का संकट पिछले कई सालों से है. इसीलिए बाथ टब की जगह अब शॉवर लगाए जा रहे हैं. इसके मैनेजर करमा कहते है, "यहां इतने बड़े पैमाने पर काम चल रहा है कि पानी की समस्या हो गई है. हर दिन एक के बाद एक होटल खुलते जा रहे हैं. और पानी का पता ही नहीं."
करमा कहते हैं कि उनके ज्यादातर मेहमान विदेशी जोड़े हुआ करते थे जो कि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान से आते थे. वियतमान और थाईलैंड से आने वाले लोग कुछ दूर होटल में रुका करते थे.
आजकल यहां ज्यादातर होटलों में जनरेटर चलाया जाता है. इसकी वजह है बिजली की पर्याप्त सप्लाई न होना. इसकी वजह से धुआं होता है और इलाके में प्रदूषण भी फैलता है. कचरे का निपटारा भी एक अहम समस्या है. ज्यादातर लोग सड़क के किनारे ही कचरा फेंक देते हैं.
एक का संकट, दूसरे का फायदा
हिमाचल प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग का कहना है कि पिछले साल 10 लाख 80 हजार भारतीय और 99 हजार विदेशी पर्यटक धर्मशाला आए. पिछले 10 सालों के मुकाबले ये संख्या बहुत अधिक है. जाहिर है इससे सरकारी खजाने को फायदा होता है. कांगड़ा पर्यटन के उप निर्देशक अश्वनी सूद कहते हैं, "यहां पर्यटकों की संख्या इसलिए बढ़ी है क्योंकि मैदानी इलाका ज्यादा गर्म हो जाता है. इसके अलावा यहां पहाड़ी में चढ़ाई करने के, खेल कूद के और धार्मिक स्थान भी काफी हैं."
हाल के दिनों में यहां आने वालों में युवाओं की तादाद काफी बढ़ गई है. अक्सर दिल्ली और चंड़ीगढ़ से युवा यहां छुट्टी मनाने के लिए आते हैं. आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) के दौरान भी यहां पर्यटकों की आवाजाही बढ़ जाती है. पर इन सबका असर तिब्बत से आए शरणार्थियों पर पड़ रहा है. उनको डर है कि कहीं बढ़ते व्यवसायीकरण की वजह से स्थानीय लोगों से उनके संबंध खराब न हो जाएं.
वीडी/ओएसजे (एएफपी)