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गुटके की पुड़िया से मुंह में घुलता कैंसर

१६ जुलाई २०१२

भारत में करोड़ों लोग गुटका चबाते हैं और यह मुंह के कैंसर की एक बहुत बड़ी वजह है. अब महाराष्ट्र की सरकार लोगों की जान बचाने के लिए इसे राज्य से प्रतिबंधित कर रही है.

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तस्वीर: DW

करोड़ों भारतवासियों की तरह अनिल कनाड़े भी रोजाना गुटका की पैकेट खरीदते और चबाते. कहते हैं, "मुझे नशा होता था, मुझे अच्छा लगता था," लेकिन अब वह अपनी इस बुरी आदत के बुरे नतीजे भी झेल रहे हैं. 35 साल के कनाड़े की गाल सूज गई है और डॉक्टरों का कहना है कि यह कैंसर है. महाराष्ट्र के एक गांव से कनाड़े के भाई उनके साथ शहर आए हैं. कहते हैं कि उनके इलाके में 11 साल से ही बच्चे गुटका चबाना शुरू कर देते हैं. उनका भी मानना है कि सरकार को किसी तरह इसे प्रतिबंधित करना होगा.

भारतीय कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चे गुटका नहीं खरीद सकते. हर साल भारत में 75 से लेकर 80 हजार लोग गुटका खाने से मुंह के कैंसर का शिकार बनते हैं. यह संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है. मध्य प्रदेश, बिहार और केरल में गुटका बेचना वर्जित किया गया है. इससे पहले गोवा में राज्य सरकार ने गुटका बेचने पर रोक लगा दी थी. हालांकि गुटका बेचने पर पूरी तरह रोक लगा पाना मुश्किल है दूसरी तरफ, अरबों रुपये के गुटका कारोबार में लगी तंबाकू कंपनियां भी सरकार के फैसले का विरोध कर रही हैं.

Rauchen in Indien
तस्वीर: DW

कनाड़े के डॉक्टर पंकज चतुर्वेदी मुंबई में गुटका के खिलाफ एक मुहिम चला रहे हैं. कहते हैं कि मुंह के कैंसर से बीमार आधे से ज्यादा उनके मरीज बीमारी का पता लगने के एक साल के अंदर मारे जाते हैं. बाकी लोग जिंदगी भर के लिए इसका असर झेलते हैं. चतुर्वेदी का कहना है कि गुटका में लेड, आर्सेनिक, तांबा, क्रोमियम और निकेल जैसी खतरनाक धातुएं हैं जो आम तौर पर जहर मानी जाती हैं. "गुटका समाज के हर स्तर में है, गरीबों में और अमीरों में. युवाओं को लुभाने के लिए खास तौर पर प्रचार किया जाता है." उनका सबसे छोटा मरीज 13 साल का था, जिसकी मुंह के कैंसर से मौत हो गई.

2010 में हुए एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक भारत में पांच लाख बच्चे तंबाकू के नशे के जाल में हैं. करीब 20 करोड़ भारतीय सिगरेट के अलावा तंबाकू का सेवन करते हैं. राज्य सरकारें अब कोशिश कर रहे हैं कि तंबाकू को खाद्य पदार्थों से प्रतिबंधित किया जाए. पिछले साल भारत के खाद्य सुरक्षा और मापदंड प्रांधिकरण ने एक कानून पारित किया था जिससे तंबाकू को किसी भी खाद्य पदार्थ में नहीं डाला जा सकता. अब तंबाकू कंपनियां इसका विरोध कर रही हैं.

लेकिन गुटका के पक्ष में स्मोकलेस टोबैको फेडरेशन के प्रमुख संजय बेचन का कहना है कि भारत में ज्यादातर लोग सिगरेट से मारे जाते हैं और न कि गुटका से. साथ ही गुटका उद्योग में काम कर रहे करोड़ों लोगों के रोजगार पर इससे नुकसान होगा. यह कारोबार करीब दो अरब डॉलर का है.

गुटका पर अब भी भारत के ज्यादातर राज्यों में रोक नहीं है. मध्य प्रदेश में फूड कमिश्नर अश्विनी कुमार राय कहते हैं कि गुटका के वर्जित होने के बाद से अब गैर कानूनी काम शुरू हो गए हैं. लेकिन स्वास्थ्य कार्यकर्ता मानते हैं कि इससे गुटका के दाम बढ़ेंगे और कम से कम युवा इसको खरीदने से पहले दस बार सोचेंगे.

एमजी/एनआर (एएफपी)

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